जुड़वां बच्चों को जन्म देने के 19 दिन बाद चल बसी मां कमजोर जन्मे राम-लखन को बचाने में डॉक्टर्स सफल
एक महिला की मां बनने की ख्वाहिश तो पूरी हो गई, लेकिन बच्चों के लालन-पालन का सुख वह नहीं उठा पाई। मातÞृत्व सुख हासिल करने की जिद पर अड़ी यह मां जुड़वा बच्चों को जन्म देने के 19 दिन बाद चल बसी ।
मातृत्व सुख की खातिर महिला ने गवाई जान, मप्र का पहला केस
नरेश मेवाड़ा
भोपाल।एक महिला की मां बनने की ख्वाहिश तो पूरी हो गई, लेकिन बच्चों के लालन-पालन का सुख वह नहीं उठा पाई। मातत्व सुख हासिल करने की जिद पर अड़ी यह मां जुड़वा बच्चों को जन्म देने के 19 दिन बाद चल बसी । बंसल अस्पताल में मात्र 500-500 ग्राम वजन के जन्मे इन शिशुओं के बचने की संभावनाएं क्षीण थीं, लेकिन परिजनों का परमात्मा पर पूर्ण विश्वास देख डॉक्टर भी मासूमों को जिलाने में जुट गए। करीब 100 दिन की मशक्कत के बाद जुड़वा बच्चे सही सलामत हंै और उनका सर्वांगीण विकास होने लगा है। अब यह राम-लखन दो-दो किलो के स्वस्थ्य शिशु बन गए है। शनिवार को यह अपने पिता और नानी के साथ अपने घर में पहुंच जाएंगे, लेकिन अफसोसजनक यह है कि वे मां की ममता से महरूम रहेंगे।
यह किसी कहानी का कथानक नहीं बल्कि भोपाल की वास्तविक घटना है। जो शहर के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. राहुल अग्रवाल की मेहनत, लग्न और काबिलियत को जाहिर करती है। दरअसल शाहपुरा निवासी शैलेंद्र ने अपनी प्रेमिका गायक कलाकार दीप्ति से 2012 में शादी की थी। जिसके तीन साल बाद दीप्ति की किडनी खराब हो गई। दिसंबर 2015 में अपनी लाड़ली बेटी दीप्ति को बचाने के लिए मां इंद्रा गेडाम ने अपनी किडनी डोनेट की।
शैलेंन्द्र को पिता बनने का सुख तो मिला, लेकिन पत्नी को खोना पड़ा
शैलेंद्र ने बताया कि बंसल अस्पताल में पत्नी की किडनी ट्रांसप्लांट होने के बाद डॉक्टरों ने कहा था कि दीप्ति अब मां बनी तो उसकी जान पर बन आएगी। ऐसे ही आपरेशन के बाद कुछ महिलाएं मां बन चुकी थीं। उनसे प्रेरित होकर दीप्ति ने भी मातृत्व सुख पाने का सपना संजोया। पति और परिजनों की सहमति से दीप्ति ने मां बनने का फैसला लिया। गर्भवती होने के बाद चार माह तक तो दीप्ति को कोई समस्या नहीं हुई। उसका कहना था कि मैं रहूं न रहूं लेकिन अपने जिगर के टुकड़ों को कुछ नहीं होने दूंगी। जन्म से पहले ही मां ने अपने बच्चों के नाम भी सोच लिए थे। लेकिन ईश्वर को जुड़वा बच्चे देने थे। इसी दौरान उसे पीलिया हो गया था। महिला के पति ने बताया कि दीप्ती ने सातवें माह के पहले सप्ताह में 14 नवंबर 2022 को बंसल अस्पताल में 500-500 ग्राम के दो जुड़वा बच्चों को जन्म दिया। जिनका नाम Lavik & Lavish है। डिलेवरी के 19 दिन बाद 2 दिसंबर 2022 की रात दीप्ति की मौत हो गई। इसके बाद बेहद कमजोर जन्म बच्चों को बचाने की कवायद शुरू हुई। परिजन किसी भी कीमत पर बच्चों की जिंदगी चाहते थे। लिहाजा डॉक्टर भी जी जान से जुट गए।
परिजनों की जिद के आगे डॉक्टरों ने इलाज किया शुरू
10 दिसंबर 2022 को बॉम्बे चिल्ड्रन अस्पताल में लाए गए बच्चों की हालत बहुत नाजुक थी। डॉक्टर ने कहा लंबा इलाज चलेगा, खूब पैसा खर्च होगा इसके बाद भी कोई गारंटी नहीं की बच्चे बचेंगे या नहीं। लेकिन बच्चों के पिता और नानी की जिद पर डॉ. राहुल अग्रवाल और उनकी टीम ने इस कार्य को चुनौती के रूप में लिया और उनकी टीम दिन-रात बच्चों के इलाज में जुट गई। चिकित्सकों के प्रयत्न और परिजनों की प्रार्थना के आगे ईश्वर को रहम करना पड़ा। अंतत: फेफड़े, आंत और आंखों के रेटिना को बचाने में कामयाबी मिल गई। 32 दिन वेंटीलेटर पर रखने के बाद हालत में सुधार आना शुरू हुआ। 100 दिन की सक्रियता से शिशुओं की सेहत सुधर गई। जन्म के पश्चात चार गुना वजन बढ़ाकर डॉक्टरों ने स्वस्थ्य हुए इन शिशुओं को उनके घर ले जाने की इजाजत दे दी है। दो दिन निगरानी में रखने के बाद इन बच्चों को उनके परिजनों को सौंप दिया जाएगा।
32-32 दिन वेंटीलेटर पर रखा
दोनों बच्चों को 32-32 दिन वेंटीलेटर लगाया। इस दौरान बच्चे कई बार सीरीयस हुए। लेकिन मैं और मेरी टीम 24 घंटे उनकी निगरानी करते रहे। और उनके इलाज में पूरी तरह से जुटे रहे। इतने छोटे बच्चों में जो सबसे कठिन काम होता है। इनके लंग्स एवं शरीर को इंफेक्शन से बचाना। बहुत लंबे समय तक वेंटीलेटर एवं इंटेसिप मैंनेजमेंट में 400-400 ग्राम के बच्चे को संभालना। उनकी एक-एक सांस, दिल की धड़कन, ब्लड प्रेशर पर पल-पल नजर रखना। कई सारी बाधाओं को पार करते हुए बच्चों का इलाज करते रहे और 100 दिनों बाद बच्चे अब दो माह के हो गए है और भरपूर दूध पी रहे है। बच्चे के पिता शैलेंद्र परमार और नानी इंद्रा गेडाम उनका भरपूर ख्याल रखकर मां की तरह बच्चे को पाल रहे है। शनिवार को दोनों बच्चों की छुट्टी हो जाएगी।
प्रमुख बातें
समय से पहले महिला की डिलेवरी होने से बच्चे के फेफडेÞ अविकसित है। इलाज के माध्यम से फेफड़े विकसित किए। इसके बाद आंतों को ठीक कर बच्चे की पाचन क्रिया ठीक की उसके बाद बच्चे दूध पीने लगे। छोटे बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता नहीं होती इसलिए इंफेक्शन से बचाया। ऐसे बच्चों की आंखों के रेटीना अविकसित होते हैं फिर दोनों बच्चों की लेजर थैरिपी कर आंखों का रेटीना ठीक किया।
मप्र का पहला केस
भारत में सबसे पहली बार 400 ग्राम के साढ़े 23 हफ्ते के एक बच्चे को बचाया था और अब मप्र में पहली बार डॉक्टर राहुल अग्रवाल और उनकी टीम ने 400-400 ग्राम के जुड़वां बच्चे को नया जीवनदान दिया है यहां किसी चमत्कार से कम नहीं है। मप्र के मेडिकल इंडवायमेंट के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि है। उनका कहना है कि पूरे मिशन में 24 घंटे लगे रहे। ये खुशियां बच्चे के पिता को हमारे अस्पताल से मिली यहां हमारे लिए बहुत बड़ी बात है। हमें बच्चे के पिता और नानी का पूरा सपोर्ट मिला। और उनके उस विश्वास के साथ हम बच्चों को नया जीवनदान दे सके। इस दौरान मैं और मेरी टीम ने एक भी दिन छुट्टी नहीं ली।