देश आज प्रदूषण के ऐसे भंवर में फंस चुका है, जहां सांस लेना तक मुश्किल हो गया है। हवा में घुला जहर अब केवल आंकड़ों का खेल नहीं रहा, यह हर उम्र के लोगों के स्वास्थ्य को चुपचाप निगल रहा है। सबसे अधिक खतरे में हैं वो मासूम, जिनका इस प्रदूषण में कोई दोष नहीं।
By: Arvind Mishra
Nov 23, 202511:36 AM
नई दिल्ली। स्टार समाचार वेब
देश आज प्रदूषण के ऐसे भंवर में फंस चुका है, जहां सांस लेना तक मुश्किल हो गया है। हवा में घुला जहर अब केवल आंकड़ों का खेल नहीं रहा, यह हर उम्र के लोगों के स्वास्थ्य को चुपचाप निगल रहा है। सबसे अधिक खतरे में हैं वो मासूम, जिनका इस प्रदूषण में कोई दोष नहीं। परिणामस्वरूप शारीरिक ही नहीं, बल्कि मानसिक बीमारियां भी उनके जीवन का हिस्सा बनती जा रही हैं। इधर, देश की राजधानी दिल्ली से लगे राज्य हरियाणा में वायु प्रदूषण का असर अब गर्भवती व नवजात शिशुओं पर भी पड़ने लगा है। प्रीमेच्योर डिलीवरी की संख्या बढ़ने लगी है। यह दावा पीजीआई रोहतक के गायनी विभाग की अध्यक्ष डॉ. पुष्पा दहिया ने किया है।
सांसों से शरीर में जा रहा प्रदूषण
डॉ. पुष्पा दहिया ने दावा किया है कि हरियाणा में एक साल में 13,500 की डिलीवरी हुई। इनमें से 18 प्रतिशत यानि 2430 बच्चे प्रीमेच्योर हुए। इसका मुख्य कारण प्रदूषण भी है, क्योंकि हवा में घुला जहर सांसों के जरिए शरीर में जा रहा है। यह खून में मिलकर गर्भस्थ शिशु तक पहुंच रहा है। हवा की खराब गुणवत्ता के कारण खांसी-जुकाम व अस्थमा की समस्या बढ़ गई हैं।
गर्भवती के लिए नुकसानदायक
यह स्थिति गर्भवती के लिए नुकसानदायक है। ज्यादा खांसी का भी गर्भ पर असर पड़ता है। ये सभी कारण बच्चे के समय से पहले जन्म लेने का कारण बनते हैं। इसके अलावा हाई ब्लड प्रेशर, मधुमेह, मलेरिया, डेंगू होने पर भी समय से पहले बच्चे के जन्म लेने की संभावना रहती है।
बच्चा जल्दी पैदा होगा, तो ज्यादा जोखिम
डॉ. दहिया के मुताबिक 36 सप्ताह से पहले जन्म लेने वाले बच्चे को प्रीमेच्योर कहा जाता है। कई बच्चे 28 सप्ताह से पहले, 28 से 32 सप्ताह के बीच और 37 सप्ताह से पहले जन्म ले रहे हैं। इनमें से सिर्फ 34 से 36 सप्ताह के बीच पैदा होने वाले बच्चों को ज्यादा समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है। बच्चा जितना जल्दी पैदा होगा, जोखिम उतना ही अधिक होगा।
यह सावधानी बरतें
डॉ. दहिया ने बताया कि नियमित जांच व डॉक्टर की सलाह से दवाई लेकर प्रीमेच्योर डिलीवरी को कम किया जा सकता है। एनिमिया ग्रस्त महिलाओं के जागरूक होने से प्रीमेच्योर डिलीवरी से बचा जा सकता है। हरी सब्जियां, दूध, लस्सी के सेवन से पोषण की कमी पूरी की जा सकती है।
बच्चों को आती हैं ये समस्याएं
समय पूर्व जन्मे बच्चे बाहरी तापमान सहन नहीं कर पाते हैं। उनमें हाइपोथेरेमिया, हाइपरग्लेसेमिया, पीलिया व इंफेक्शन होने का खतरा अधिक रहता है। इन्हें अधिक देखभाल की आवश्यकता पड़ती है। कमजोर होने के कारण उनके रेटिना यानि देखने की शक्ति में भी कमी आ सकती है। इंफेक्शन जल्दी होने की आशंका रहती है। बाल्यावस्था में ध्यान न देने पर आईक्यू कम हो सकता है।
भारत में हर साल 1.7 लाख बच्चों की मौत
द लैंसेट की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल पांच साल से कम उम्र के लगभग 1.7 लाख बच्चों की मौत केवल प्रदूषण के कारण होती है। पिछले एक महीने में दिल्ली-एनसीआर की वायु गुणवत्ता लगातार गंभीर श्रेणी में बनी हुई है।