हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने पारिवारिक विवाद के केस में महीने में 73 हजार वेतन पाने वाली पत्नी को पति से प्रतिमाह गुजारा दिलाने से इंकार कर दिया। हालांकि, कोर्ट ने पति को, विवाह के बाद पैदा हुए बच्चे को 25 हजार प्रतिमाह देने का आदेश दिया। न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की एकल पीठ ने यह आदेश पति द्वारा दाखिल पुनरीक्षण याचिका पर दिया।
By: Arvind Mishra
Sep 01, 2025just now
लखनऊ। स्टार समाचार वेब
हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने पारिवारिक विवाद के केस में महीने में 73 हजार वेतन पाने वाली पत्नी को पति से प्रतिमाह गुजारा दिलाने से इंकार कर दिया। हालांकि, कोर्ट ने पति को, विवाह के बाद पैदा हुए बच्चे को 25 हजार प्रतिमाह देने का आदेश दिया। न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की एकल पीठ ने यह आदेश पति द्वारा दाखिल पुनरीक्षण याचिका पर दिया। दरअसल, लखनऊ हाईकोर्ट की बेंच ने एक अहम पारिवारिक विवाद मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने साफ कहा कि अगर पत्नी खुद अच्छी कमाई कर रही है तो उसे पति से गुजारा भत्ता नहीं मिल सकता। हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने उस आदेश को पलट दिया, जिसमें पारिवारिक न्यायालय ने पति को पत्नी को हर महीने 15 हजार भरण-पोषण के लिए देने का निर्देश दिया था।
पति ने लखनऊ के पारिवारिक न्यायालय के 18 मार्च 2024 के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें पति को सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पत्नी को 15 हजार प्रतिमाह और नाबालिग बच्चे को हर महीने 25 हजार रुपए भरण पोषण के लिए देने का निर्देश दिया गया था। पारिवारिक विवाद की वजह से पत्नी, वर्ष 2023 से बच्चे के साथ अलग रह रही है।
पति सॉफ्टवेयर इंजीनियर है और 1.75 लाख रुमहीना कमाता है, जबकि पत्नी भी सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। उसे 73 हजार महीने की सैलरी मिलती है। इतना ही नहीं, पत्नी ने बख्शी का तालाब इलाके में 80 लाख कीमत का फ्लैट भी खरीदा है। पति का कहना था कि ऐसे में पत्नी, सक्षम होने के नाते, उससे भरण पोषण की रकम पाने की हकदार नहीं है।
हालांकि, कोर्ट ने इस पूरे मामले में बच्चे के अधिकार को सबसे ऊपर रखा। अदालत ने कहा कि पति को अपने नाबालिग बच्चे का भरण-पोषण करना ही होगा। इसी आधार पर कोर्ट ने पति को आदेश दिया कि वह हर महीने 25 हजार रुपए बच्चे के खर्च के लिए देता रहेगा। न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की एकल पीठ ने यह फैसला सुनाते हुए साफ कहा कि पत्नी के लिए गुजारा भत्ता का आदेश त्रुटिपूर्ण था, लेकिन बच्चे के लिए भरण-पोषण देना पति की जिम्मेदारी है। कोर्ट का यह फैसला भविष्य में ऐसे कई पारिवारिक विवादों के लिए नजीर साबित हो सकता है।