वाणिज्य मंत्रालय के सूत्रों को भरोसा है कि सितंबर के दूसरे सप्ताह तक अच्छी खबर आएगी। एक वरिष्ठ राजनयिक का कहना है कि अमेरिका भारत को इस तरह से नहीं छोड़ सकता। इसलिए जल्दबाजी में नतीजे पर पहुंचना ठीक नहीं है।
By: Sandeep malviya
Aug 30, 202510:57 PM
तियानजिन । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन के तियानजिन शहर में ह्यएससीओह्ण शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के बहाने अग्निपरीक्षा देने पहुंच गए हैं। सात साल बाद प्रधानमंत्री मोदी चीन में हैं और समय भारत को ऐसे मोड़ पर ले आया है, जहां राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, राष्ट्रपति शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री मोदी की गुफ्तगू पर अमेरिका के साथ-साथ दुनिया की निगाहें होंगी। पूर्व विदेश सेवा के अधिकारी एसके शर्मा कहते हैं कि भारत अमेरिका को छोड़ नहीं सकता, चीन को खुलकर अपना नहीं सकता और रूस से मुंह मोड़ना मुश्किल है। देखना है कि तियानजिन में प्रधानमंत्री कितने कदम आगे बढ़ाते हैं।
प्रधानमंत्री की चीन और जापान की यात्रा को लेकर भारत ने अपने पूरा कौशल लगा रखा है। अमेरिका के साथ भी भारत की बैक चैनल डिप्लोमेसी जारी है। वाणिज्य मंत्रालय के सूत्रों को भरोसा है कि सितंबर के दूसरे सप्ताह तक अच्छी खबर आएगी। एक वरिष्ठ राजनयिक का कहना है कि अमेरिका भारत को इस तरह से नहीं छोड़ सकता। इसलिए जल्दबाजी में नतीजे पर पहुंचना ठीक नहीं है। प्रयास चल रहा है और सफल होगा। पूर्व विदेश सचिव शशांक भी अमेरिका में हैं। शशांक भी आशावान हैं। भारत इस बार वॉशिंगटन से सब साध लेने में कोई चूक नहीं चाहता, जबकि वॉशिंगटन की निगाह चीन के तियानजिन शहर पर टिकी है। चीन और अमेरिका इस समय दो बड़े अंरराष्ट्रीय ह्यप्लेयरह्ण हैं। दोनों पर अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप प्रशासन के दबाव का कोई असर नहीं है। यहां भारत के प्रधानमंत्री की रूस के राष्ट्रपति और चीन के राष्ट्रपति से द्विपक्षीय वार्ता होनी है। पुतिन, जिनपिंग, मोदी मिलकर रणनीति तय कर सकते हैं।
चीन और भारत
चीन दुनिया में आर्थिक विकास के क्षेत्र में पहिया की तरह हैं। उसके पास तकनीक, कच्चा माल और किसी देश के विकास में योगदान देने की क्षमता है, लेकिन भारत के साथ उसके रिश्ते में सीमा विवाद के कारण भरोसे का संकट है। भारत और चीन को संवाद की पटरी पर लाने में रूस का बड़ा योगदान रहा है। पहले रूस-चीन-भारत का फोरम आरआईसी फिर ब्रिक्सऔर अब एससीओ में रूस बड़ा कारक रहा है। द्विपक्षीय व्यापार के मामले में चीन के साथ व्यापारिक असंतुलन काफी बड़ा है, लेकिन भारतीय उद्योगों को प्रतिस्पर्धा के लिए चीन के साथ मधुर संबंध की आवश्यकता है। 2020 से दोनों देशों के रिश्ते गलवां घाटी में खूनी संघर्ष के बाद पटरी से उतरे हैं। चीन को भारत का बाजार चाहिए। पूर्व एयर वाइस मार्शल कहते हैं कि इस समय जो स्थिति है, उसमें भारत को चीन के साथ कामकाजी रिश्ता बढ़ाना ही होगा। यह बात अलग है कि थोड़ा संभलकर। इसे भारतीय रणनीतिकार और विदेश मंत्री एस जयशकंर की टीम भली भांति समझती है।
भारत और रूस
पुराने सामरिक और रणनीतिक साझेदार हैं। अमेरिका भारत के रूस से ईंधन तेल के आयात से चिढ़ा है। मॉस्को को पता है कि भारत ने उसके कठिन समय में अमेरिका के नाराजगी की परवाह न करते हुए उसका साथ दिया। भारत ने भी साफ कह दिया कि वह रूस से तेल आयात नहीं रोकेगा। जहां से भारत को सस्ता तेल मिलेगा, खरीदना जारी रखेगा। राष्ट्रपति ट्रंप और उनके सलाहकार लगातार कह रहे हैं कि भारत इसकी कीमत चुका रहा है। रूस सैन्य साजो-सामान की आपूर्ति में लगातार भारत का विश्वसनीय सहयोगी है। भारत की परमाणु उर्जा की जरूरतों और परमाणु संयंत्र में भी रूस भारत के साथ खड़ा रहता है। रूस चाहता है कि भारत, चीन, ब्राजील समेत अन्य सहयोगी डॉलर के मुकाबले में क्षेत्रीय मुद्रा लाएं। इसमें कारोबार करें और ब्रिक्स के फोरम को नई ऊचाई दें। ब्रिक्स और एससीओ दोनों की मौजूदगी अमेरिकी रणनीतिकारों को खलती है। राष्ट्रपति ट्रंप भी इसके बाबत भारत को चेता चुके हैं।
भारत और अमेरिका का साथ कितना कदम आगे, कितना कदम पीछे?
प्रधानमंत्री पहले जापान क्यों गए? इसका उत्तर, बस इतना है कि जापान भारत का आर्थिक क्षेत्र में बड़ा साझीदार और क्वाड का सदस्य है। क्वाड, अमेरिका की अगुआई में जापान और आस्ट्रेलिया के साथ बना फोरम है। इस बार इसकी मेजबानी भारत कर रहा है। हालांकि, अमेरिका से खबर आ रही है कि क्वाड शिखर सम्मेलन में राष्ट्रपति ट्रंप नहीं आएंगे। क्वाड के गठन और इसकी सक्रियता से चीन भड़कता है। क्वाड में ट्रंप न आने संबंधी सूचना अभी न्यूयॉर्क टाइम्स के हवाले से है। अभी इस पर अमेरिका ने कोई अधिकारिक बयान नहीं दिया है। दूसरी तरफ वाशिंगटन में भारतीय दूतावास ने अमेरिका के साथ टैरिफ को लेकर बढ़ मतभेद कम करने की पहल को तेज कर दिया है। अमेरिका मेंह्यलाबिंगह्णफर्म की मदद लेने से लेकर कई उपाय किए जा रहे हैं। दरअसल, अमेरिका को भारत का बाजार चाहिए। भारत को अमेरिका में अपना सामान बेचना है। सूचना प्रौद्योगिकी से जुड़े कारोबार में भी अमेरिका अहम है। उसके संवेदनशील सैन्य उपकरण भारतीय सैन्य बलों के पास हैं और भारत का सामरिक, रणनीतिक साझेदार देश है। इसलिए भारत अमेरिका के टैरिफ से तंग जरूर है, लेकिन इसके समाधान के लिए पूरी कोशिश कर रहा है।