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शेख हसीना मामले में ट्रिब्यूनल की कार्यवाही न निष्पक्ष-न न्यायसंगत : मानवाधिकार

मानवाधिकार से जुड़े मामलों में सबसे अग्रणी संस्थाओं के तौर पर शुमार एमनेस्टी इंटरनेशनल ने बांग्लादेश में शेख हसीना को फांसी की सजा सुनाए जाने के फैसले का विरोध किया है। 

By: Sandeep malviya

Nov 18, 20256:34 PM

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शेख हसीना मामले में ट्रिब्यूनल की कार्यवाही न निष्पक्ष-न न्यायसंगत : मानवाधिकार

ढाका ।  मानवाधिकार से जुड़े मामलों में सबसे अग्रणी संस्थाओं के तौर पर शुमार एमनेस्टी इंटरनेशनल ने बांग्लादेश में शेख हसीना को फांसी की सजा सुनाए जाने के फैसले का विरोध किया है। ब्रिटेन आधारित इस संस्था ने कहा है कि हसीना और उनके कार्यकाल में गृह मंत्री की भूमिका निभाने वाले असदुज्जमां खान के खिलाफ ट्रिब्यूनल की कार्यवाही न तो निष्पक्ष थी और न ही न्यायसंगत थी।  दूसरी तरफ हसीना की सजा को लेकर संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की मानवाधिकार एजेंसी- यूएनएचआरसी ने चिंता जताई है। यूएनएचआरसी ने इस मामले में तय प्रक्रिया, निष्पक्ष सुनवाई के मानकों पर जोर दिया और साथ ही मौत की सजा का पूर्ण विरोध किया है। 

एमनेस्टी इंटरनेशनल का बयान?

गौरतलब है कि बांग्लादेश में सोमवार को अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (आईसीटी) ने अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना और असदुज्जमां को मौत की सजा सुनाई थी। उन्हें पिछले साल जुलाई में हुए विद्रोह के दौरान मानवता के खिलाफ अपराधों का दोषी करार दिया गया। हालांकि, मौत की सजा सुनाए जाने के कुछ घंटों बाद जारी एक बयान में, एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा- "शेख हसीना को मौत की सजा सुनाने से 2024 के नरसंहार के पीड़ितों को न्याय नहीं मिलेगा।"

एजेंसी की महासचिव एग्नेस कैलामार्ड ने कहा, "जुलाई और अगस्त 2024 में छात्रों के नेतृत्व वाले विरोध प्रदर्शनों के दौरान हुए घोर उल्लंघनों और मानवता के विरुद्ध अपराधों के आरोपों के लिए व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार लोगों की जांच की जानी चाहिए और निष्पक्ष सुनवाई के जरिए उन पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए। हालांकि, न तो यह कार्यवाही और न ही सजा कहीं से भी निष्पक्ष और न्यायोचित है।"

मानवाधिकार संगठन ने इस मामले की जांच-सुनवाई की अभूतपूर्व गति का हवाला देते हुए शेख हसीना की ट्रायल के दौरान गैरमौजूदगी पर भी सवाल उठाया और कहा कि न्यायाधिकरण का फैसला इस स्तर और जटिलता के मामले में निष्पक्ष जांच पर चिंता और संदेह पैदा करता है। बयान में आगे कहा गया, "शेख हसीना का प्रतिनिधित्व अदालत की ओर से नियुक्त एक वकील ने किया था, फिर भी बचाव पक्ष को तैयार करने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया गया। हसीना के खिलाफ अनुचित मुकदमे का संदेह उन रिपोर्ट्स से और भी बढ़ जाता है, जिनमें कहा गया है कि बचाव पक्ष को विरोधाभासी माने जाने वाले सबूतों पर जिरह करने की इजाजत नहीं दी गई।"

एमनेस्टी के मुताबिक, यह निष्पक्ष सुनवाई नहीं थी। जुलाई 2024 को हुई हिंसा के पीड़ितों को बेहतर नतीजे मिलने थे। संस्था ने कहा कि उन पीड़ितों को न्याय मिलना चाहिए था, लेकिन मौत की सजा सीधे तौर पर मानवाधिकारों का उल्लंघन है। 

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