×

गुरु तेग बहादुर शहादत दिवस: धर्म, बलिदान और हिन्द की चादर का इतिहास

24 नवंबर को गुरु तेग बहादुर शहादत दिवस क्यों मनाया जाता है? जानिए सिखों के नौवें गुरु, 'हिन्द की चादर' कहे जाने वाले तेग बहादुर जी के जीवन, धर्म रक्षा के लिए उनके अद्वितीय बलिदान और भारतीय इतिहास पर उनके प्रभाव के बारे में।

By: Ajay Tiwari

Nov 19, 20253:44 PM

view8

view0

गुरु तेग बहादुर शहादत दिवस: धर्म, बलिदान और हिन्द की चादर का इतिहास

गुरु तेग बहादुर जी

फीचर डेस्क. स्टार समाचार वेब

सिख धर्म के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर जी, का जन्म 1 अप्रैल, 1621 को अमृतसर में हुआ था। वह छठे सिख गुरु, गुरु हरगोबिंद साहिब जी, और माता नानकी जी के सबसे छोटे पुत्र थे। उनका बचपन का नाम त्याग मल था।

एक बालक के रूप में, तेग बहादुर जी ने अपने पिता, गुरु हरगोबिंद साहिब, से न केवल आध्यात्मिक शिक्षा, बल्कि सैन्य प्रशिक्षण भी प्राप्त किया। 1634 में करतारपुर के युद्ध में उन्होंने अपनी असाधारण तलवारबाजी और बहादुरी का प्रदर्शन किया। उनकी वीरता से प्रभावित होकर ही उनके पिता ने उनका नाम 'त्याग मल' से बदलकर 'तेग बहादुर' रखा, जिसका अर्थ है 'तलवार का धनी' या 'तलवार का बहादुर'।

युद्ध के बाद, गुरु तेग बहादुर जी अपने परिवार के साथ अमृतसर के पास बकाला चले गए, जहाँ उन्होंने अगले लगभग 20 वर्षों तक गहन ध्यान और त्यागपूर्ण जीवन व्यतीत किया।

आठवें गुरु, गुरु हरकिशन सिंह जी की अकाल मृत्यु 1664 में हुई। उन्होंने अपने उत्तराधिकारी के लिए केवल इतना कहा, "बाबा बकाले।" इसका अर्थ यह था कि अगला गुरु बकाला में है। इस घोषणा के बाद, 22 दावेदार सामने आ गए।

सही गुरु की पहचान एक व्यापारी, बाबा माखन शाह लबाना, ने की। उन्होंने एक मन्नत पूरी करने के लिए प्रत्येक दावेदार को 500 मोहरें (सोने के सिक्के) भेंट करने का निर्णय लिया। जब उन्होंने तेग बहादुर जी को केवल पाँच मोहरें भेंट कीं, तो गुरु जी ने कहा कि उन्होंने तो 500 मोहरों की मन्नत मांगी थी। इस ईश्वरीय पहचान के बाद, माखन शाह लबाना ने छत पर चढ़कर घोषणा की: "गुरु लाधो रे! गुरु लाधो रे!" (गुरु मिल गया! गुरु मिल गया!)। गुरु तेग बहादुर जी ने 1665 में पंजाब के शिवालिक पहाड़ियों में चक्क नानकी नामक एक नए शहर की स्थापना की, जो बाद में आनंदपुर साहिब के नाम से विख्यात हुआ। यह स्थान सिख इतिहास में एक प्रमुख आध्यात्मिक और राजनीतिक केंद्र बना।

गुरु तेग बहादुर जी का गुरुकाल भारत के इतिहास के सबसे कठिन दौर में से एक था। उस समय, दिल्ली पर मुगल बादशाह औरंगजेब का शासन था। औरंगजेब एक कट्टरपंथी शासक था जिसका उद्देश्य भारत को एक इस्लामिक राज्य में बदलना था। उसने गैर-मुस्लिम आबादी पर अत्यधिक अत्याचार शुरू कर दिए, जिसमें जबरन धर्म परिवर्तन, मंदिरों को तोड़ना और जजिया कर लगाना शामिल था।

इस धार्मिक उत्पीड़न का सबसे अधिक दंश कश्मीरी पंडितों को झेलना पड़ा। औरंगजेब के सूबेदार, इफ्तिखार खान, के नेतृत्व में कश्मीर में पंडितों को धमकी दी गई कि या तो वे इस्लाम स्वीकार करें या मौत के लिए तैयार रहें। निराश और डरे हुए कश्मीरी पंडितों का एक प्रतिनिधिमंडल, पंडित कृपाराम के नेतृत्व में, मई 1675 में आनंदपुर साहिब में गुरु तेग बहादुर जी के पास पहुँचा। उन्होंने गुरु जी से अपनी और अपने धर्म की रक्षा के लिए गुहार लगाई।

कश्मीरी पंडितों की व्यथा सुनकर गुरु तेग बहादुर जी ने गहरा विचार किया। उसी समय, उनके नौ वर्षीय पुत्र, गोबिंद राय (जो बाद में गुरु गोबिंद सिंह बने), ने पूछा कि इस संकट का हल क्या है। गुरु जी ने उत्तर दिया कि इस अत्याचार को रोकने के लिए किसी महान पुरुष के बलिदान की आवश्यकता है। बालक गोबिंद राय ने तुरंत कहा: "आपसे महान पुरुष और कौन हो सकता है, पिता जी?"

अपने पुत्र की बात और कश्मीरी पंडितों की धर्मनिष्ठा को देखकर, गुरु जी ने मानवता और धर्म की रक्षा के लिए स्वयं का बलिदान देने का निश्चय किया। उन्होंने कश्मीरी पंडितों से औरंगजेब के पास जाकर यह कहलवाने को कहा कि "यदि गुरु तेग बहादुर इस्लाम स्वीकार कर लें, तो हम सब भी धर्म परिवर्तन कर लेंगे। यदि वे इनकार करते हैं, तो हमें भी कोई मजबूर नहीं कर सकता।" औरंगजेब ने इस चुनौती को स्वीकार कर लिया और गुरु तेग बहादुर जी को गिरफ्तार करने का आदेश दिया।

गुरु तेग बहादुर जी ने स्वयं को मुगल अधिकारियों के हवाले कर दिया। उन्हें उनके तीन शिष्यों—भाई मति दास, भाई दयाला, और भाई सती दास—के साथ गिरफ्तार करके दिल्ली लाया गया। दिल्ली में, गुरु जी और उनके शिष्यों को भयानक यातनाएँ दी गईं। भाई मति दास को सबके सामने आरे से चीर दिया गया। भाई दयाला को खौलते पानी की देग में उबाल दिया गया। भाई सती दास को कपास में लपेटकर जला दिया गया। इन भयावह दृश्यों का गुरु तेग बहादुर जी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। उन्होंने इस्लाम स्वीकार करने या कोई चमत्कार दिखाने से स्पष्ट इनकार कर दिया।

अंततः, 24 नवंबर, 1675 को, चांदनी चौक, दिल्ली में, काजी के आदेश पर जलाद जलालुद्दीन ने तलवार से गुरु तेग बहादुर जी का शीश धड़ से अलग कर दिया। इस प्रकार, उन्होंने दूसरे के धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया। इसीलिए गुरु तेग बहादुर जी को 'हिन्द की चादर' (भारत की ढाल) कहा जाता है। गुरु जी के धड़ का अंतिम संस्कार भाई लखी शाह वंजारा ने अपने घर को जलाकर किया, जहाँ आज गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब स्थित है। गुरु जी के शीश को उनके पुत्र गोबिंद राय के पास भाई जैता (बाद में भाई जीवन सिंह) लेकर गए, जहाँ आनंदपुर साहिब में उनका सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार किया गया। यह स्थान आज गुरुद्वारा शीश गंज साहिब के रूप में प्रसिद्ध है

गुरु तेग बहादुर जी का बलिदान भारतीय इतिहास में एक अद्वितीय घटना है।  यह बलिदान न केवल सिख धर्म के लिए था, बल्कि सनातन धर्म (कश्मीरी पंडितों) की रक्षा के लिए भी था। यह भारत की धर्मनिरपेक्ष और विविध संस्कृति की रक्षा के लिए एक सिख गुरु द्वारा दिया गया बलिदान था। यह दर्शाता है कि सच्चा धर्म केवल अपने अनुयायियों तक सीमित नहीं होता, बल्कि सभी के धर्म की स्वतंत्रता की रक्षा करता है। अत्याचार के विरुद्ध प्रतिरोध: गुरु जी की शहादत ने अत्याचारी मुगल शासन के विरुद्ध खड़े होने का साहस और प्रेरणा दी। इसने पंजाब और पूरे उत्तर भारत में प्रतिरोध की भावना को मजबूत किया। गुरु तेग बहादुर जी की शहादत ने उनके पुत्र, गुरु गोबिंद सिंह जी, को खालसा पंथ की स्थापना (1699) और सिखों को एक जुझारू (Warrior) समुदाय में संगठित करने के लिए प्रेरित किया। गुरु गोबिंद सिंह जी ने ही कहा था: "तेग बहादुर सी क्रिया करी, न किनहूं आन करी।" (तेग बहादुर जैसा कार्य किसी और ने नहीं किया)। आधुनिक संदर्भ में, गुरु तेग बहादुर जी का बलिदान मानवाधिकारों की रक्षा और विचार की स्वतंत्रता के लिए दिया गया पहला प्रमुख बलिदान माना जा सकता है।

प्रत्येक वर्ष 24 नवंबर को गुरु तेग बहादुर जी का शहादत दिवस पूरे विश्व में, विशेष रूप से सिखों द्वारा, श्रद्धा और सम्मान के साथ मनाया जाता है। यह दिन उनके महान त्याग, सिद्धांतों के प्रति उनकी अडिग निष्ठा और धार्मिक स्वतंत्रता के लिए उनके साहसी रुख को याद करने का अवसर है।

गुरु तेग बहादुर जी का जीवन और उनकी शहादत हमें यह सिखाती है कि सत्य, धर्म और मानवता के सिद्धांतों के लिए बड़े से बड़ा बलिदान भी छोटा है। 'हिन्द की चादर' के रूप में उनका स्मरण भारतीय सभ्यता के एक ऐसे स्तंभ के रूप में किया जाता रहेगा, जिसने धार्मिक सहिष्णुता और स्वतंत्रता के आदर्शों को अपने रक्त से सींचा। उनकी बाणी और शिक्षाएं आज भी लाखों लोगों को निडरता और धार्मिक सद्भाव का मार्ग दिखाती हैं।

COMMENTS (0)

RELATED POST

गुरु तेग बहादुर शहादत दिवस: धर्म, बलिदान और हिन्द की चादर का इतिहास

8

0

गुरु तेग बहादुर शहादत दिवस: धर्म, बलिदान और हिन्द की चादर का इतिहास

24 नवंबर को गुरु तेग बहादुर शहादत दिवस क्यों मनाया जाता है? जानिए सिखों के नौवें गुरु, 'हिन्द की चादर' कहे जाने वाले तेग बहादुर जी के जीवन, धर्म रक्षा के लिए उनके अद्वितीय बलिदान और भारतीय इतिहास पर उनके प्रभाव के बारे में।

Loading...

Nov 19, 20253:44 PM

जनजातीय गौरव दिवस: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अनलिखे अध्यायों को नमन

9

0

जनजातीय गौरव दिवस: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अनलिखे अध्यायों को नमन

15 नवंबर को पूरा देश जनजातीय गौरव दिवस मना रहा है। मध्यप्रदेश, जहां देश की सबसे बड़ी जनजातीय आबादी निवास करती है, इस दिवस को और भी गौरवपूर्ण तरीके से मना रहा है।

Loading...

Nov 14, 20254:24 PM

बाल दिवस (14 नवंबर): बचपन की मासूमियत का राष्ट्रीय उत्सव

72

0

बाल दिवस (14 नवंबर): बचपन की मासूमियत का राष्ट्रीय उत्सव

14 नवंबर को मनाए जाने वाले बाल दिवस का विस्तृत आलेख। जानें भारत के पहले प्रधानमंत्री, पंडित जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिन पर क्यों मनाया जाता है बाल दिवस, बच्चों के अधिकार, शिक्षा, और समाज में उनकी भूमिका का महत्व।

Loading...

Nov 11, 20254:45 PM

'वंदे मातरम' के 150 वर्ष: राष्ट्रीय गीत की ऐतिहासिक यात्रा और भारतीय राष्ट्रवाद पर इसका प्रभाव

7

0

'वंदे मातरम' के 150 वर्ष: राष्ट्रीय गीत की ऐतिहासिक यात्रा और भारतीय राष्ट्रवाद पर इसका प्रभाव

7 नवंबर 2025 को भारत के राष्ट्रीय गीत 'वंदे मातरम' की 150वीं वर्षगांठ है। जानें बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय की इस अमर रचना के प्रकाशन, स्वतंत्रता संग्राम में इसकी भूमिका, और राष्ट्रीय चेतना के प्रतीक के रूप में इसके महत्व के बारे में।

Loading...

Nov 07, 20254:10 PM

कैंसर : रोका जा सकता है एक तिहाई मामलों को जीवनशैली में बदलाव लाकर

3

0

कैंसर : रोका जा सकता है एक तिहाई मामलों को जीवनशैली में बदलाव लाकर

7 नवम्बर को राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस क्यों मनाया जाता है? कैंसर के लक्षण, रोकथाम के उपाय और शीघ्र पहचान के महत्व के बारे में विस्तार से जानें।

Loading...

Nov 04, 20255:02 PM