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27 अक्टूबर: पैदल सेना दिवस – शौर्य, बलिदान और राष्ट्र रक्षा की गाथा

27 अक्टूबर को भारत में पैदल सेना दिवस क्यों मनाया जाता है? जानें 1947 के उस ऐतिहासिक दिन का महत्व जब भारतीय पैदल सैनिकों ने कश्मीर को घुसपैठियों से बचाया। भारतीय सेना की 'युद्ध की रानी' को समर्पित।

By: Ajay Tiwari

Oct 24, 20256:28 PM

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27 अक्टूबर: पैदल सेना दिवस – शौर्य, बलिदान और राष्ट्र रक्षा की गाथा

फीचर डेस्क. स्टार समाचार वेब
भारतीय सेना के इतिहास में हर साल 27 अक्टूबर का दिन  अहम है। यह दिन 'पैदल सेना दिवस' (Infantry Day) के रूप में मनाया जाता है। यह उन वीर पैदल सैनिकों के अदम्य साहस, समर्पण और सर्वोच्च बलिदान को श्रद्धांजलि देने का दिन है, जो युद्ध के मैदान में सबसे आगे रहकर देश की संप्रभुता और अखंडता की रक्षा करते हैं। पैदल सेना को भारतीय सेना की 'युद्ध की रानी' (Queen of the Battle) भी कहा जाता है, जो हर तरह के इलाके और मौसम में दुश्मन से सीधे लोहा लेती है।


पैदल सेना दिवस का ऐतिहासिक महत्व
27 अक्टूबर को पैदल सेना दिवस मनाने का कारण 1947 के उस ऐतिहासिक घटनाक्रम से जुड़ा है, जो स्वतंत्र भारत का पहला सैन्य ऑपरेशन था।

  • पृष्ठभूमि: 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, जम्मू और कश्मीर के तत्कालीन शासक महाराजा हरि सिंह ने रियासत को भारत में शामिल करने का फैसला किया। उन्होंने 26 अक्टूबर, 1947 को 'विलय पत्र' (Instrument of Accession) पर हस्ताक्षर किए।
  • पाकिस्तानी आक्रमण: महाराजा हरि सिंह के विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने से पहले ही, 22 अक्टूबर, 1947 को, पाकिस्तान ने अपनी सेना के समर्थन से कबायली हमलावरों (Tribal invaders) को जम्मू-कश्मीर पर कब्ज़ा करने के लिए भेज दिया था। हमलावर तेजी से श्रीनगर की ओर बढ़ रहे थे।
  • भारतीय सेना की त्वरित कार्रवाई: विलय पत्र पर हस्ताक्षर होते ही, भारत सरकार ने तुरंत सैन्य हस्तक्षेप का निर्णय लिया। 27 अक्टूबर, 1947 की सुबह, भारतीय वायु सेना के विमानों ने सेना की '1 सिख रेजिमेंट' की पहली बटालियन को लेकर दिल्ली से श्रीनगर के लिए उड़ान भरी।
  • श्रीनगर हवाई अड्डे पर लैंडिंग: लेफ्टिनेंट कर्नल दीवान रंजीत राय के नेतृत्व में, पैदल सैनिकों की इस टुकड़ी ने श्रीनगर हवाई अड्डे पर लैंडिंग की और तुरंत हवाई अड्डे को सुरक्षित किया। यह आजाद भारत का पहला सैन्य अभियान था। इन सैनिकों ने सीमित संसाधनों के बावजूद पाकिस्तानी समर्थित घुसपैठियों को सफलतापूर्वक रोक दिया और जम्मू-कश्मीर को उनके चंगुल में जाने से बचाया। इस निर्णायक कार्रवाई ने 1947-48 के युद्ध की दिशा बदल दी।

लेफ्टिनेंट कर्नल दीवान रंजीत राय ने इस ऑपरेशन में असाधारण वीरता का परिचय दिया और वीरगति को प्राप्त हुए। उन्हें मरणोपरांत पहले महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।

पैदल सेना का महत्व
पैदल सेना भारतीय सेना का सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण अंग है। यह वह शक्ति है जो ज़मीन पर दुश्मन से आमने-सामने की लड़ाई लड़ती है।

सर्वव्यापी उपस्थिति: चाहे बर्फीले पहाड़ हों, घने जंगल हों, तपते रेगिस्तान हों या दलदली क्षेत्र, पैदल सैनिक हर जगह तैनात रहते हैं।

अंतिम निर्णायक बल: युद्ध में किसी भी क्षेत्र पर अंतिम कब्ज़ा और नियंत्रण पैदल सेना द्वारा ही सुनिश्चित किया जाता है।

शौर्य और बलिदान: पैदल सेना ने 1947-48, 1965, 1971 के युद्धों, कारगिल संघर्ष (1999) और विभिन्न आतंकवाद विरोधी अभियानों में अभूतपूर्व शौर्य और सर्वोच्च बलिदान दिए हैं।

पैदल सेना दिवस कैसे मनाया जाता है?
हर साल, 27 अक्टूबर को देश भर में पैदल सेना के वीर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है।

  • श्रद्धांजलि समारोह: नई दिल्ली में राष्ट्रीय युद्ध स्मारक (National War Memorial) और विभिन्न रेजीमेंटल केंद्रों पर वीर शहीदों को माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि दी जाती है।
  • सैन्य कार्यक्रम: सेना द्वारा शौर्य यात्राओं, मैराथन और अन्य कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है ताकि नागरिकों में पैदल सेना के योगदान के प्रति जागरूकता बढ़ाई जा सके।
  • वीरों का सम्मान: इस दिन पूर्व सैनिकों और उनके परिवारों को सम्मानित किया जाता है।

27 अक्टूबर का 'पैदल सेना दिवस' केवल एक औपचारिक दिन नहीं है, बल्कि यह राष्ट्र के उन बेटों को याद करने का दिन है, जो अपने प्राणों की परवाह किए बिना देश की सीमाओं की रक्षा के लिए हर चुनौती का सामना करते हैं। यह दिन हमें भारतीय सेना की अटूट भावना, शौर्य और बलिदान की महान परंपरा की याद दिलाता है। हम इन वीर सैनिकों के प्रति सदैव ऋणी रहेंगे।



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