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लोकनायक जयप्रकाश नारायण जयंती (11 अक्टूबर): संपूर्ण क्रांति और लोकतंत्र में योगदान

11 अक्टूबर को लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयंती। जानें उनके 'संपूर्ण क्रांति' के आह्वान, समाजवादी विचारों और 1975 के आपातकाल के दौरान भारतीय लोकतंत्र की रक्षा में उनके ऐतिहासिक योगदान को।

By: Ajay Tiwari

Oct 09, 20254:04 PM

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लोकनायक जयप्रकाश नारायण जयंती (11 अक्टूबर): संपूर्ण क्रांति और लोकतंत्र में योगदान

स्टार समाचार वेब. फीचर डेस्क

11 अक्टूबर को लोकनायक जयप्रकाश नारायण (Jayaprakash Narayan) की जयंती मनाई जाती है। भारतीय राजनीति के इतिहास में 'जेपी' के नाम से विख्यात जयप्रकाश नारायण एक ऐसे क्रांतिकारी, दार्शनिक और दूरदर्शी नेता थे, जिन्होंने अपने सिद्धांतों से देश की दिशा बदल दी। उन्हें विशेष रूप से 'संपूर्ण क्रांति' के आह्वान और भारतीय लोकतंत्र की रक्षा में उनके ऐतिहासिक योगदान के लिए याद किया जाता है।

प्रारंभिक जीवन और वैचारिक आधार

जयप्रकाश नारायण का जन्म 11 अक्टूबर 1902 को बिहार के सिताबदियारा गाँव में हुआ था। उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने अमेरिका का रुख किया, जहाँ वे मार्क्सवादी विचारों से प्रभावित हुए। हालाँकि, भारत लौटने पर वे महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू के प्रभाव में स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए।

  • समाजवादी आस्था: जेपी ने कांग्रेस के भीतर रहते हुए कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी (CSP) के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका उद्देश्य भारत में लोकतांत्रिक समाजवाद की स्थापना करना था, जो समानता, न्याय और स्वतंत्रता पर आधारित हो।
  • गांधीवादी मोड़: स्वतंत्रता के बाद, जेपी ने चुनावी राजनीति से खुद को अलग कर लिया और विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में सक्रिय भागीदारी निभाई। इस दौर में उनका झुकाव धीरे-धीरे मार्क्सवाद से गांधीवाद और सर्वोदय दर्शन की ओर हो गया।

'संपूर्ण क्रांति' का आह्वान (1974)

भारतीय राजनीति में जेपी का सबसे निर्णायक हस्तक्षेप 1970 के दशक में हुआ। देश में भ्रष्टाचार, महंगाई और कुशासन से उत्पन्न हुए असंतोष के बीच, जेपी ने बिहार से एक छात्र आंदोलन का नेतृत्व संभाला। 5 जून 1974 को पटना के गांधी मैदान से उन्होंने 'संपूर्ण क्रांति' (Total Revolution) का ऐतिहासिक आह्वान किया।

'संपूर्ण क्रांति' का अर्थ केवल सत्ता परिवर्तन नहीं था, बल्कि समाज के हर पहलू— सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षणिक और आध्यात्मिक—में आमूल-चूल परिवर्तन लाना था। उनका नारा था: "सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।"

लोकतंत्र के रक्षक

जब 1975 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल (Emergency) लागू किया, तो जयप्रकाश नारायण ने इसे भारतीय लोकतंत्र पर सबसे बड़ा हमला बताया। उन्होंने एकजुट होकर आपातकाल का विरोध करने के लिए विपक्ष को एक मंच पर लाने में केंद्रीय भूमिका निभाई। उन्हें तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन उनके नेतृत्व ने पूरे देश में एक अभूतपूर्व जन-विरोध को प्रेरित किया।

आपातकाल की समाप्ति के बाद, जेपी ने ही जनता पार्टी के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने 1977 में चुनाव जीतकर पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनाई।

विरासत और प्रासंगिकता

यप्रकाश नारायण का निधन 8 अक्टूबर 1979 को हुआ, लेकिन उनकी विरासत आज भी प्रासंगिक है।

  • उन्हें 1999 में मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
  • उनका जीवन हमें सिखाता है कि नैतिकता और सिद्धांत राजनीति का आधार होने चाहिए।
  • 'संपूर्ण क्रांति' का उनका सपना आज भी भ्रष्टाचार मुक्त, अधिक न्यायपूर्ण और truly लोकतांत्रिक भारत के लक्ष्य को दर्शाता है।

लोकनायक जयप्रकाश नारायण जयंती हमें उनके आदर्शों को याद करने और लोकतंत्र, सामाजिक न्याय और नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष जारी रखने की प्रेरणा देती है।

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