साधु-संतों और गुरुजनों द्वारा दीपावली पर किया जाने वाला लक्ष्मी पूजन, सामान्य गृहस्थों की पूजा से भिन्न और अधिक आध्यात्मिक, साधनात्मक एवं प्रतीकात्मक होता है। उनकी पूजा का प्राथमिक उद्देश्य धन-संपत्ति की बजाय ज्ञान, आत्मिक शुद्धि और परमार्थ (जगत कल्याण) की प्राप्ति होता है।
By: Ajay Tiwari
Oct 19, 20252 hours ago
स्टार समाचार वेब. धर्म डेस्क
साधु-संतों और गुरुजनों द्वारा दीपावली पर किया जाने वाला लक्ष्मी पूजन, सामान्य गृहस्थों की पूजा से भिन्न और अधिक आध्यात्मिक, साधनात्मक एवं प्रतीकात्मक होता है। उनकी पूजा का प्राथमिक उद्देश्य धन-संपत्ति की बजाय ज्ञान, आत्मिक शुद्धि और परमार्थ (जगत कल्याण) की प्राप्ति होता है। विभिन्न संप्रदायों और आश्रमों में इसकी विधियाँ थोड़ी अलग हो सकती हैं, लेकिन इसका मूल लक्ष्य आंतरिक और आध्यात्मिक उत्थान ही होता है।
साधना और आत्म-शुद्धि पर विशेष बल
संतजन दीपावली पर बाहरी दिखावे या भव्यता के बजाय हृदय और मन की शुद्धि पर बल देते हैं। उनके लिए भौतिक सफाई से अधिक महत्वपूर्ण मन से वैर, ईर्ष्या, काम, क्रोध और लोभ जैसी नकारात्मक वृत्तियों को दूर करना होता है।
ज्ञान के दीये: वे मिट्टी के दीयों के साथ-साथ ज्ञान के दीये जलाने पर जोर देते हैं। यह आत्मज्ञान, सत्य और ईश्वर-प्रेम के प्रकाश को अपने भीतर और समाज में फैलाने का प्रतीक है।
सादगी और ब्रह्मचर्य: अधिकांश साधु-संत सादगीपूर्ण तरीके से, केवल मूलभूत पूजन सामग्री का उपयोग करते हुए, बिना किसी आडंबर के पूजा करते हैं।
विशिष्ट पूजन सामग्री और संकल्प
साधु-संतों के लिए, लक्ष्मी पूजन ज्ञान की देवी सरस्वती और सिद्धि के देवता गणेश की पूजा के बिना अधूरा है, क्योंकि आत्मिक उन्नति के लिए ज्ञान और सिद्धि अनिवार्य हैं।
गुरु पादुका पूजन: कई संप्रदायों में, दीपावली पर गुरु पादुका या गुरु चित्र का विशेष पूजन किया जाता है। गुरु को आध्यात्मिक ज्ञान और दिव्य संपदा (लक्ष्मी) का दाता माना जाता है।
जैन परंपरा और मोक्ष कल्याण: जैन साधु-संतों के मार्गदर्शन में दीपावली का महत्व भगवान महावीर स्वामी के मोक्ष से जुड़ा है। इसलिए, जैन धर्म में ज्ञान, विद्या और व्यापार से संबंधित बही-खातों पर स्वास्तिक बनाकर, सरस्वती और तीर्थंकरों का पूजन मोक्ष कल्याण की भावना से किया जाता है।
कलश/वरुण पूजन: जल तत्व की शुद्धि और समस्त देवताओं के आवाहन के लिए कलश/वरुण पूजन किया जाता है।
मंत्र, जप और अनुष्ठान का महत्व
संत और साधक महालक्ष्मी के मंत्रों, जैसे "ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नमः" का लंबे समय तक मंत्र जप और अनुष्ठान करते हैं। कई संत इस दिन विशेष हवन या तांत्रोक्त (सिद्ध) लक्ष्मी साधना करते हैं, जिसका उद्देश्य समाज और विश्व की शांति व कल्याण होता है। पूजा के अंत में पूर्णाहुति और शांति मंत्रों का पाठ कर आरती की जाती है।
साधु-संतों के लिए 'लक्ष्मी' का अर्थ
साधु-संतों के लिए 'लक्ष्मी' केवल भौतिक धन नहीं है, बल्कि यह एक दिव्य संपदा है, जिसमें ये उच्च आध्यात्मिक मूल्य शामिल हैं:
आत्मिक शांति और सद्बुद्धि
सत्यनिष्ठा और ईश्वर-प्रेम
वास्तविक ज्ञान की प्राप्ति
समाज के परोपकार और कल्याण की शक्ति
गृहस्थ सुख-समृद्धि और भौतिक धन की कामना से लक्ष्मी पूजन करते हैं, तो साधु-संत दीपावली का पूजन ज्ञान-साधना, परमार्थ और आत्मिक उत्थान को मुख्य लक्ष्य मानकर करते हैं।