14 जुलाई को 'स्वर सम्राट' मदन मोहन की पुण्यतिथि पर विशेष आलेख। जानें कैसे इस महान संगीतकार ने 'लग जा गले' जैसी कालजयी ग़ज़लों और गीतों से भारतीय सिनेमा को अमर बनाया। उनकी अद्वितीय संगीत यात्रा और विरासत का स्मरण।
By: Star News
Jul 14, 20251:06 AM
स्टार समाचार वेब. फीचर डेस्क
14 जुलाई का दिन भारतीय संगीत प्रेमियों के लिए एक विशेष महत्व रखता है। यह वो तारीख है जब हम भारतीय सिनेमा के महानतम संगीतकारों में से एक, मदन मोहन कोहली को याद करते हैं, जिनकी मधुर धुनें और भावपूर्ण रचनाएँ आज भी हमारे दिलों में बसी हुई हैं। उन्हें 'ग़ज़ल किंग' या 'स्वर सम्राट' के नाम से जाना जाता है, क्योंकि उन्होंने हिंदी सिनेमा को ऐसी कालजयी ग़ज़लें और गीत दिए, जो समय की सीमाओं से परे हैं।
एक अद्वितीय संगीत यात्रा
मदन मोहन का जन्म 25 जून 1924 को बगदाद में हुआ था। उनके पिता राय बहादुर चुन्नीलाल थे, जो फिल्म स्टूडियोज के मालिक थे। संगीत के प्रति उनका रुझान बचपन से ही था। उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो के लखनऊ और दिल्ली केंद्रों पर काम करते हुए संगीत की बारीकियों को समझा। उनका फिल्मी सफर 1950 में 'आँखें' फिल्म से शुरू हुआ, लेकिन उन्हें वास्तविक पहचान और सफलता 1950 और 60 के दशक में मिली।
मदन मोहन की खासियत यह थी कि वे हर गीत को एक आत्मा प्रदान करते थे। उनके संगीत में भारतीय शास्त्रीय संगीत की गहरी समझ और पश्चिमी धुनों का अनूठा संगम देखने को मिलता था। उन्होंने लता मंगेशकर, मोहम्मद रफ़ी, आशा भोसले जैसे महान गायकों के साथ काम किया और उनसे ऐसी प्रस्तुतियाँ निकलवाईं जो आज भी बेमिसाल हैं।
ग़ज़लों के बेताज बादशाह
उन्हें विशेष रूप से अपनी ग़ज़लों के लिए याद किया जाता है। 'लग जा गले', 'नयनों में बदरा छाए', 'आपकी नज़रों ने समझा', 'हम हैं मता-ए-कूचा-ओ-बाजार की तरह', 'ये दुनिया ये महफ़िल' - ये कुछ ऐसे नग़मे हैं जो उनकी असाधारण प्रतिभा का प्रमाण हैं। उनकी ग़ज़लें सिर्फ़ धुन और बोल का मेल नहीं थीं, बल्कि वे भावनाओं का एक सागर थीं जो श्रोताओं को गहराई तक छू जाती थीं। वे शब्दों के अर्थ और भावनाओं को संगीत के माध्यम से इस तरह पिरोते थे कि हर शब्द जीवंत हो उठता था।
विरासत और प्रभाव
हालांकि मदन मोहन ने अपने जीवनकाल में बहुत से पुरस्कार नहीं जीते, लेकिन उनकी रचनाएँ उन्हें अमर कर गईं। 14 जुलाई 1975 को मात्र 51 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया, लेकिन उनका संगीत आज भी जीवित है। उनकी धुनें नई पीढ़ी के संगीतकारों को प्रेरित करती हैं और श्रोताओं को भावविभोर करती हैं।
मदन मोहन केवल एक संगीतकार नहीं थे, बल्कि वे एक जादूगर थे जो अपनी धुनों से दिलों को जीत लेते थे। उनकी पुण्यतिथि पर हम उन्हें नमन करते हैं और उनके संगीत की अमूल्य विरासत के लिए कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। उनका संगीत भारतीय सिनेमा की धरोहर का एक ऐसा हिस्सा है, जिसकी चमक कभी फीकी नहीं पड़ेगी।