भारत की पांच पवित्र नदियों में से एक, नर्मदा का उद्गम स्थल अमरकंटक है। जानें भगवान शिव से इसकी उत्पत्ति की पौराणिक कथा, धार्मिक महत्व, और क्यों यह भारत की अन्य नदियों से विपरीत दिशा में बहती है।
By: Ajay Tiwari
Nov 21, 20255:49 PM
स्टार समाचार वेब. फीचर डेस्क
गंगा, यमुना, गोदावरी, और कावेरी और नर्मदा भारत की पांच पवित्र नदियां माना जाता है, कहा जाता है इनमें स्नान करने सभी पाप धुल जाते हैं। रामायण, महाभारत, वायु पुराण तथा स्कंद पुराण के रेवा खंड में मिलता है, जिस कारण इसे रेवा भी कहा जाता है। नर्मदा भारत की एकमात्र ऐसी नदी है जो अन्य नदियों की तुलना में उल्टी दिशा में बहती है।
हिंदू धर्म में पूजनीय नर्मदा नदी का उद्गम स्थल अमरकंटक है। यह पवित्र स्थान मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले में विंध्याचल और सतपुड़ा पर्वत श्रृंखलाओं के पूर्वी छोर पर स्थित है। अमरकंटक केवल नर्मदा ही नहीं, बल्कि सोन और ज्वालावती जैसी नदियों का भी स्रोत है। नर्मदा को भारत की सबसे प्राचीन नदियों में से एक माना जाता है। इसके तटों पर कई महान ऋषियों जैसे अगस्त्य, भृगु, कपिल आदि ने तपस्या की थी, जिससे यह एक पवित्र तीर्थ स्थल बन गया है, जहाँ श्रद्धालु आत्मिक शांति और मोक्ष की कामना से आते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, नर्मदा नदी की उत्पत्ति भगवान शिव से जुड़ी है, इसलिए इसे शंकर जी की पुत्री या शंकरी भी कहा जाता है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान भोलेनाथ मैकल पर्वत पर तपस्या में लीन थे, तो देवताओं की आराधना से प्रसन्न होकर उनके शरीर से पसीने की कुछ बूंदें गिरीं। इन्हीं बूंदों से एक सरोवर का निर्माण हुआ, जिससे एक अत्यंत सुंदर कन्या प्रकट हुईं। देवताओं ने उन्हें 'नर्मदा' नाम दिया, जिसका अर्थ है सुख (नर) देने वाली (मदा)। मैकल पर्वत से उत्पन्न होने के कारण इसे 'मेखला सुता' भी कहा जाता है। इसके प्रवाह से उत्पन्न ध्वनि 'रव' के कारण इसे 'रेवा' नाम से भी जाना जाता है।
नर्मदा को मध्य प्रदेश की जीवन रेखा कहा जाता है और यह उत्तर तथा दक्षिण भारत के बीच एक पारंपरिक सीमा का कार्य भी करती है।
नर्मदा नदी की एक और अनोखी विशेषता यह है कि इसके किनारों पर पाए जाने वाले पत्थर स्वयं शिवलिंग के आकार के होते हैं। इन पत्थरों को बाणलिंग या बाण शिवलिंग कहा जाता है और इन्हें हिंदू धर्म में दैनिक पूजा के लिए अत्यंत पूजनीय माना जाता है। उदाहरण के लिए, तमिलनाडु के तंजावुर में स्थित बृहदेश्वर मंदिर में सबसे बड़े बाणलिंगों में से एक स्थापित है।
नर्मदा के किनारे ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग, महेश्वर, नेमावर सिद्धेश्वर मंदिर जैसे कई महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल स्थित हैं, जो इसकी आध्यात्मिक महिमा को और बढ़ाते हैं।
नर्मदा नदी को 'जीवनदायिनी' कहा जाता है, जिसके तटों पर लगभग 10,000 तीर्थ स्थल स्थित हैं। जहाँ भारत की अधिकांश नदियाँ पूर्व की ओर बहकर बंगाल की खाड़ी में मिलती हैं, वहीं नर्मदा नदी पश्चिम दिशा की ओर बहती है और अरब सागर में विलीन हो जाती है।
इसके उल्टी दिशा में बहने के पीछे एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा है
नर्मदा राजा मेकल की पुत्री थीं। राजा ने यह शर्त रखी कि जो राजकुमार गुलबकावली का फूल लाएगा, नर्मदा का विवाह उसी से होगा। राजकुमार सोनभद्र ने यह शर्त पूरी की और उनका विवाह तय हुआ। विवाह से पहले, नर्मदा ने अपनी सहेली जोहिला को गहने पहनाकर सोनभद्र के पास भेजा। सोनभद्र ने जोहिला को नर्मदा समझ लिया और उससे प्रेम करने लगे। जब नर्मदा को इस धोखे का पता चला, तो वह अत्यधिक क्रोधित हुईं। उन्होंने आजीवन कुंवारी रहने का प्रण लिया और उसी समय से नाराज होकर विपरीत दिशा (पश्चिम) में बहना शुरू कर दिया, और अंततः अरब सागर में जा मिलीं।
नर्मदा को सदियों से एक कुंवारी नदी के रूप में पूजा जाता है। इसका विशेष धार्मिक महत्व इसलिए भी है क्योंकि माना जाता है कि नर्मदा के दर्शन मात्र से ही उतना पुण्य प्राप्त होता है, जितना अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने से। इसीलिए इसे विशेष रूप से भगवान शिव की प्रिय नदी और 'शंकर की बेटी' के रूप में पूजा जाता है। इसके तटों पर स्थित ओंकारेश्वर जैसे ज्योतिर्लिंग नर्मदा के आध्यात्मिक और धार्मिक अस्तित्व को और भी अधिक महत्वपूर्ण बना देते हैं।