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रतन टाटा की पहली पुण्यतिथि: नैनो, आर्किटेक्ट और अविवाहित जीवन के 5 अधूरे सपने

9 अक्टूबर को रतन टाटा की पहली पुण्यतिथि पर जानें उनके जीवन के 5 सबसे बड़े मलाल: नैनो कार की विफलता, आर्किटेक्ट बनने का अधूरा सपना, निजी जीवन का अकेलापन और नैतिक व्यापार का संतुलन।

By: Ajay Tiwari

Oct 09, 20254:39 PM

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रतन टाटा की पहली पुण्यतिथि: नैनो, आर्किटेक्ट और अविवाहित जीवन के 5 अधूरे सपने

रतन टाटा: सपने जो अधूरे रह गए—लोकप्रियता के शिखर पर भी मलाल

स्टार समाचार वेब. फीचर डेस्क

टाटा समूह के पूर्व चेयरमैन रतन टाटा की आज, 9 अक्टूबर, को पहली पुण्यतिथि है। एक साल पहले 86 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया था। एक ऐसे दौर में जब भारत ने आर्थिक सुधारों की शुरुआत की, रतन टाटा ने 1991 में जेआरडी टाटा से समूह का नेतृत्व संभाला और टाटा को वैश्विक स्तर पर पहुँचाया। उन्होंने टेटली (2000), कोरस (2007) और जगुआर लैंड रोवर (JLR) (2008) जैसी कंपनियों का अधिग्रहण कर भारतीय कॉर्पोरेट जगत के लिए नए मानक स्थापित किए। इन अपार सफलताओं के बावजूद, उनके जीवन में कुछ ऐसे सपने और निर्णय थे जिनका उन्हें हमेशा मलाल रहा।

नैनो का बिग ड्रीम जो टूट गया

रतन टाटा का सबसे बड़ा सपना था कि हर भारतीय परिवार अपनी खुद की कार खरीद सके। इसी सपने के साथ उन्होंने दुनिया की सबसे सस्ती कार—टाटा नैनो—को लॉन्च किया। नैनो को टाटा मोटर्स ने 'भारत में डिज़ाइन और निर्मित पहला कार मॉडल, इंडिका' के बाद एक महत्वपूर्ण परियोजना के रूप में प्रचारित किया। हालांकि, इंडिका व्यावसायिक रूप से सफल रही, नैनो को शुरुआती सुरक्षा मुद्दों और मार्केटिंग की गलतियों के कारण भारी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। अपेक्षित बिक्री न होने के कारण लॉन्च के एक दशक बाद नैनो को बंद करना पड़ा, जिसका मलाल रतन टाटा को हमेशा रहा।

निजी जीवन में अकेलापन

व्यावसायिक और परोपकार के क्षेत्र में असाधारण सफलता हासिल करने वाले रतन टाटा ने अपना जीवन अविवाहित ही बिताया। सिमी ग्रेवाल के साथ एक टॉक शो में उन्होंने खुलकर स्वीकार किया था कि इस कारण उन्हें कई बार अकेलापन महसूस होता था और वे पत्नी या परिवार न होने के लिए तरसते थे। उन्होंने बताया कि काम में अत्यधिक डूबे रहने के कारण कई बार शादी के करीब आकर भी बात नहीं बन पाई, और हालांकि उन्हें आजादी पसंद थी, लेकिन कई बार अकेलापन उन पर भारी पड़ता था।

आर्किटेक्ट बनने का अधूरा ख्वाब

रतन टाटा ने 1959 में कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से आर्किटेक्चर की डिग्री ली थी और दो साल तक आर्किटेक्ट के रूप में काम भी किया। एक वीडियो इंटरव्यू में उन्होंने खुलासा किया था कि आर्किटेक्चर उनका पसंदीदा पेशा था, लेकिन पिता की इच्छा के कारण उन्हें इंजीनियरिंग की पढ़ाई करनी पड़ी। हालांकि उन्होंने कॉर्पोरेट जगत में महान सफलता हासिल की, लेकिन उन्हें इस बात का अफसोस रहा कि वह ज्यादा समय तक अपने चुने हुए पेशे (आर्किटेक्चर) में नहीं रह पाए।

युवाओं को विश्वस्तरीय शिक्षा न दे पाना

रतन टाटा हमेशा भारतीय युवाओं को विश्वस्तरीय शिक्षा देने और प्रोत्साहित करने के लिए तत्पर रहे। उनका मानना था कि उच्च शिक्षा ही देश की प्रगति की कुंजी है। हालांकि, टाटा समूह विभिन्न ट्रस्टों और स्कॉलरशिप योजनाओं के माध्यम से छात्रों की सहायता करता रहा, लेकिन सीमित पहुँच उनके लिए अफसोस का विषय रही। उन्हें महसूस होता था कि विश्वस्तरीय शिक्षा और अवसरों की मांग और वास्तविक आपूर्ति के बीच का अंतर बहुत विशाल है, जिसे केवल परोपकार से भरना कठिन है। उनका सपना था कि गरीबी या संसाधनों की कमी के कारण कोई युवा अपने सपनों से वंचित न रहे।

नैतिक व्यापार से धीमी गति

रतन टाटा ने हमेशा व्यापार में नैतिकता को पहली प्राथमिकता दी। उन्होंने तेजी से विस्तार के लिए कभी भी शॉर्टकट या अनैतिक मार्ग नहीं अपनाया। इसी वजह से टाटा समूह का विस्तार शायद उतनी तेजी से नहीं हो पाया, जितना अन्य कंपनियों का हुआ। इस संतुलन का उन्हें कभी-कभी मलाल रहा। उन्होंने कहा था, “अंत में हमें केवल उन अवसरों का अफसोस होता है जिन्हें हमने नहीं बनाया।” यानी जिन व्यापारिक या निजी मौकों को वे पूरी तरह भुना नहीं पाए, वे उनके मन में हमेशा मलाल बने रहे।

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