सावन के अंतिम दिनों में मधुश्रवा नक्षत्र के साथ शुरू हुआ झूला महोत्सव। जानिए कृष्ण-राधा और शिव-पार्वती से जुड़ी झूले की धार्मिक और पौराणिक मान्यताएं। घरों और मंदिरों में कैसे हो रही है भगवान की सेवा और बाजार में उपलब्ध नए फैंसी झूले।
By: Star News
Jun 30, 20255:01 PM
स्टार समाचार वेब. धर्म डेस्क
सावन माह में 'मधुश्रवा' नक्षत्र के साथ ही मंदिरों और घरों में झूला महोत्सव का भव्य शुभारंभ हो गया है। जहां देवालयों में भगवान अपने प्राचीन और पारंपरिक झूलों पर विराजमान होकर भक्तों को दर्शन देते हैं, वहीं नागपंचमी से ही श्रद्धालु अपने-अपने घरों में भी प्रभु के लिए झूले डालकर उनकी दिन-रात सेवा में लीन हो जाते हैं। यह परंपरा, जो सदियों से चली आ रही है।
धार्मिक ग्रंथों और मान्यताओं के अनुसार, सावन के महीने में झूले की परंपरा का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने राधा रानी को सावन की रिमझिम फुहारों के बीच झूला झुलाया था, तभी से यह मधुर परंपरा भक्तों द्वारा अनवरत निभाई जा रही है। भगवान कृष्ण और राधा रानी के इस प्रेममयी स्वरूप को याद करते हुए भक्तगण झूले झूलते समय मधुर भजन और गीत गाते हैं, जिससे वातावरण भक्तिमय हो उठता है।
पौराणिक कथाओं में सावन के झूलों का संबंध भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती से भी बताया गया है। मान्यता है कि स्वयं भगवान शिव ने माता पार्वती के लिए झूला डाला था और उन्हें झुलाया था। यह प्रसंग दिव्य प्रेम और प्रकृति के साथ परमात्मा के जुड़ाव को दर्शाता है।
सावन में झूले चारों ओर हरियाली और सुहाना मौसम मन को प्रसन्नता से भर देता है। इस आनंदित मन से जब भगवान को याद किया जाता है, तो बिना प्रयास के ही ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जो आत्मिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है।
सावन मास में भगवान लड्डू गोपाल की सेवा और श्रृंगार किया जाता है। छोटी खाट से लेकर मच्छरदानी वाली सेज, फोल्डिंग वाले झूले और डिजाइनर सिंहासन सजाए जाते हैं। यह महोत्सव केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि ईश्वर के प्रति प्रेम, समर्पण और प्रकृति के सौंदर्य का अद्भुत संगम है।