एनटीसीए ने दी बजट की मंजूरी; देश का पहला रिजर्व होगा जहां बाघ-तेंदुए-चीते साथ रहेंगे
By: Gulab rohit
Oct 28, 20255:38 PM
सागर। सागर और दमोह जिले में फैले वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिजर्व में अब चीतों को भी बसाया जाएगा। इसके लिए नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) ने सेंट्रल कैंपा फंड से बजट दे दिया है। टाइगर रिजर्व में चीतों के लिए 4 क्वारैंटाइन बोमा और 1 सॉफ्ट रिलीज बोमा तैयार किया जाएगा।
मुहली, सिंहपुर और झापन रेंज को चीतों की बसाहट के लिए सबसे अनुकूल माना गया है। यह देश का ऐसा पहला टाइगर रिजर्व होगा, जहां बाघ, तेंदुए और चीते एक ही जगह पर देखे जा सकेंगे।
2010 में हुआ था पहला सर्वे
वन विभाग सूत्रों के अनुसार, सिंहपुर रेंज को क्वारैंटाइन बोमा साइट के रूप में चुना जा सकता है। दरअसल, वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट आॅफ इंडिया (डब्ल्यूआईआई) ने देश में सबसे पहले सागर के इसी (तब नौरादेही अभयारण्य) टाइगर रिजर्व को चीतों के लिए चिह्नित किया था।
वर्ष 2010 में यहां पहला सर्वे हुआ था। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के डीआईजी डॉ. वीवी माथुर और डब्ल्यूआईआई के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने डिप्टी डायरेक्टर डॉ. एए अंसारी के साथ वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिजर्व की तीनों रेंज मुहली, झापन और सिंहपुर का दो दिन तक मैदानी मुआयना भी किया था।
कूनो के समय ही मिल चुकी थी मंजूरी: पीसीसीएफ
पीसीसीएफ (वाइल्ड लाइफ) शुभ रंजन सेन ने बताया कि नौरादेही (अब टाइगर रिजर्व का हिस्सा) को शुरूआत से ही चीता आवास के रूप में चिह्नित किया गया था। जब कूनों में चीते लाए गए थे, तभी सर्वे के आधार पर नौरादेही में शिफ्टिंग की मंजूरी लगभग मिल चुकी थी। जो बजट मिला है, उससे 4 क्वारैंटाइन बोमा और 1 सॉफ्ट रिलीज बोमा के अलावा अन्य तैयारियां की जाएंगी।
प्रदेश का सबसे बड़ा टाइगर रिजर्व
टाइगर रिजर्व में काफी पहले चीतों के प्राकृतिक वास के प्रमाण मिले हैं। यहां घास के खुले मैदान हैं, जो नौरादेही से गांवों के विस्थापन के साथ और फैल रहे हैं। यहां चीते लंबी दौड़ लगाकर आसानी से शिकार कर सकते हैं। टाइगर रिजर्व का कोर एरिया 1414 वर्ग किमी और बफर एरिया 925.120 वर्ग किमी है। यह क्षेत्रफल के लिहाज से प्रदेश का सबसे बड़ा टाइगर रिजर्व है। चीतों को रखने के लिए मैदान चिह्नित भी किए जा रहे हैं।
शिकार के लिए चिंकारा, चीतल, काले हिरण मौजूद
टाइगर रिजर्व में चीतों को शिकार के लिए चिंकारा, चीतल व काले हिरण पर्याप्त संख्या में हैं। यही वजह है कि यहां बाघों का कुनबा भी तेजी से बढ़ रहा है। अधिकारियों का मानना है कि यहां चीतों का बाघ-बाघिन से टकराव जैसी स्थिति बनने की आशंका कम है।