सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस आफ इंडिया बीआर गवई पर जूता फेंकने की घटना को एक महीना हो गया है। घटना को अंजाम देने वाल राकेश किशोर दो दिन से मध्यप्रदेश के खजुराहो में हैं। वजह- वे उसी विष्णु भगवान के जवारी मंदिर में पूजा करने के लिए आए हैं, जिसके बारे में सीजेआई ने 16 सितंबर को टिप्पणी की थी।
By: Arvind Mishra
Nov 05, 202512:48 PM
छतरपुर। स्टार समाचार वेब
सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस आफ इंडिया बीआर गवई पर जूता फेंकने की घटना को एक महीना हो गया है। घटना को अंजाम देने वाल राकेश किशोर दो दिन से मध्यप्रदेश के खजुराहो में हैं। वजह- वे उसी विष्णु भगवान के जवारी मंदिर में पूजा करने के लिए आए हैं, जिसके बारे में सीजेआई ने 16 सितंबर को टिप्पणी की थी। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई की ओर जूता उछालने की कोशिश करने वाले वकील राकेश किशोर बुधवार सुबह खजुराहो के जवारी मंदिर पहुंचे, जहां थोड़ी देर वो बैठे और बाहर आकर संवाददाताओं से चर्चा की। इस दौरान उन्होंने कहा-हम सभी सनातनी हैं। कोई जातिगत बात नहीं है। जात-पात की करो विदाई, हम सब हिंदू भाई-भाई। यहां वह भारतीय संस्कृति की वेशभूषा में नजर आए। उनके साथ संतों का एक समूह भी साथ था। इस दौरान सिविल ड्रेस में खजुराहो पुलिस और एएसआई की टीम भी मौजूद रही।
किशोर ने कहा- मैं यहां सीजेआई के गवई के कहने पर ही आया हूं। मैं यहां ध्यान लगाऊंगा और पूजा-पाठ भी करूंगा। यह पत्थर पर मेरी पहली चोट है। मैंने सभी सनातनियों से आह्वान किया है कि वे बड़ी संख्या में आएं, लेकिन बिना शोर-शराबे, बैनर या लाठी-डंडों के। मेरा किसी तरह की रैली, आत्मदाह या अनशन करने का इरादा नहीं है। मेरे साथ मेरी पत्नी और गोरखपुर से एक मित्र भी आए हैं। मैं किसी संगठन से जुड़ा नहीं हूं, इसलिए मेरे साथ राजनीतिक या धार्मिक दल नहीं है।
एक सवाल पर राकेश किशोर ने कहा- यह सब सितंबर में शुरू हुआ, जब राकेश नाम के व्यक्ति ने याचिका लगाई थी। न मेरी उनसे कोई बात हुई, न मुलाकात। जब मैंने भगवान विष्णु के बारे में अपशब्द सुने, तो मन में भाव उठा। शायद वह ईश्वरीय प्रेरणा थी। यह ख्याल मेरे अंदर कहां से आया, यह केवल परमात्मा जानते हैं। अगर, उन्होंने 100 करोड़ हिंदुओं में से मुझे चुना, तो शायद भगवान की यही इच्छा थी।
राकेश ने कहा कि अगर विष्णु भगवान की मूर्ति के सिर लग जाए, तब भी वह खंडित रहेगी। इसके बगल में एक और मूर्ति लग जाए और उसकी पूजा होनी चाहिए। या फिर इस मूर्ति को निकालकर गंगा में विसर्जित करें और बिल्कुल ऐसी ही मूर्ति लगाई जाए।