सतना जिले के दो दर्जन गांवों के किसानों की जमीन लेकर 26 हजार हेक्टेयर भूमि को सिंचित करने की बाणसागर नहर परियोजना में मेंटेना कंपनी की लापरवाही से 8 साल बाद भी अधूरी नहरें और गड्ढे ही रह गए हैं। करोड़ों की लागत डूब चुकी है, किसानों को मुआवजा नहीं मिला, और ग्रामीणों को अब मुख्यमंत्री से उम्मीद है।
By: Star News
Jul 26, 20251:48 PM
हाइलाइट्स
सतना, स्टार समाचार वेब
बाणसागर की नहरों के जरिए तकरीबन दो दर्जन गांवों के 26 हजार हेक्टेयर कृषि रकबे को सिंचित करने की सरकार की महत्वाकांक्षी योजना पर जिम्मेदारों ने पलीता लगा दिया है। हालात यह हैं कि सैकड़ों किसानों की जमीनें तकरीबन 8 साल पहले नहर बनाने के लिए ले ली गर्इं लेकिन उनमें से अधिकांश किसानों को न तो मुआवजा मिला और न ही बाणसागर का पानी। आधी अधूरी नहरों को खोदकर हादसे को न्यौता दे दिया गया लेकिन नहरें पानी के लिए तरसती रहीं । करोड़ों रूपए गड्ढों ं में झोंक देने के बाद अब विभाग तकनीकी दिक्कतें बताकर पल्ला झाड़ रहा है। मामला कोटर से फरहद तक बनने वाली बाणसागर नहर का है जो 8 साल बीत जाने के बाद भी आकार नहीं ले सकी है। नहर निर्माण का काम करने वाली मेंटेना कंपनी व विभागीय अधिकारियों के रवैये से अब ग्रामीणों के बीच आक्रोश पनप रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि चंद सौ रूपए के बिजली बिल के लिए किसानों को जेल तक भेजने वाली सरकार करोड़ो रूपए बर्बाद करने वाले बाणसागर नहर के उन अधिकारियों पर क्यों मेहरबान है जिन्होने इसका एस्टीमेट तैयार कर सराकर के करोड़ो रूपए डुबा दिए हैं?
क्या है मामला?
दरअसल कोटर क्षेत्र से जुड़े मोहनिया, बहरी, बूंडा, सेमरी, बरा, कोटर, फरहद, गड़ौली, सेमरी, गहरी, उमरी, सुदामापुर, कठार, फरहद समेत दो दर्जन गांवों से नहर निकलनी थी ताकि उचाई पर बसे गांवों तक पानी पहुंचाया जा सके। चूंकि कई गांव उचाई में थे, इसलिए उस दौरान यह प्लान बनाया गया कि सेमरी में इंटक वेल का निर्माण करा पानी को लिफ्ट इरीगेशन के जरिए गांवों तक पहुंचाया जाएगा जिससे 26 हजार हेक्टेयर से अधिक कृषि भूमि जहां सिंचित होगी वहीं गांवों का भू-जल स्तर भी मेंटेन रहेगा। इस महत्वाकांक्षी योजना को जोर-शोर से प्रारंभ किया गया । समेरी में इंटक वेल बनाया गया और लिफ्ट इरीगेशन के लिए सेमरी में संब-स्टेशन बनाने की तैयारी करते हुए लाखों के ट्रांसफार्मर व सब स्टेशन के निर्माण के लिए सामग्री भी मंगा ली गई । इस दौरान किसानों की जमीन लेते हुए मुआवजा प्रकरण भी तैयार किए गए। बताया जाता है कि कोटर से फरहद तक नहर बनाने के लिए करोड़ो रूपए खर्च कर दिए गए लेकिन सेमरी के आगे नहर का निर्माण ही नहीं कराया जा सका । नहर के बजाय बड़ेबड़े गडढे खोद दिए गए जो बीते 8 सालों से ग्रामीणों का मुह चिढ़ा रहे हैं।
कभी लिफ्ट इरीगेशन तो कभी एक्वाडक्ट का बना प्लान, बरगी पर भी नजर
इस संबंध में विभागीय जानकारोंं का कहना है कि पुरवा में पानी की कमी व तकनीकी दिक्कत से पानी न चढ़ने की आशंका के चलते यह तय किया गया कि एक्वाडक्ट बनाकर पानी ले जाया जाएगा। इसके लिए एक्वाडक्ट के निर्माण की कवायद भी शुरू हुई और दो स्पान भी खड़े कर दिए गए, लेकिन इसके लिए साइफन को बंद करना जरूरी हो गया। बाद में यह योजना भी बनी कि इस नहर को बरगी से जोड़ा जाए लेकिन कोई भी प्लान अब तक परवान नहीं चढ़ सका है। काम बंद कर दिया गया है। सवाल यह है कि क्या नहर निर्माण के लिए करोड़ों का बजट खर्च करने का जिम्मा ऐसे अनाड़ियों को दिया गया था जो इस बात का आंकलन भी नहीं कर सके कि नहर का पानी चिन्हित गांवों में पहुंचेगा या नहीं? बताया जाता है कि उस दौरान एसडीओ देवेश पटेल ने ही इसका इस्टीमेट व योजना तैयार की थी। सवाल यह है कि उनका बनाया प्लान जब फेल हो चुका है और सरकार के तकरीबन 95 करोड़ खर्च हो चुके हैं तब विभाग या सरकार ने उन पर क्या कार्रवाई की है?
कई किसानों को मुआवजा तक नहीं, अब मुख्यमंत्री से आस
इस मामले का एक विडबनापूर्ण पहलू यह भी है कि सालों पहले केसरी द्विवेदी, दीनानाथ, रोहणी प्रसाद, संतोष , प्रवीण कुमार , आशराम , मिथलेश समेत जिन सैकड़ों किसानों ने अपनी जमीनें नहर निर्माण के लिए दी थीं उनमे से अधिकांश किसानों को मुआवजा भी नहीं मिला है। किसानों ने बताया कि उनका अवार्ड भी पारित हो चुका है लेकिल जिला प्रशासन द्वारा अब तक मुआवजे की राशि रिलीज नहीं की गई है। सूत्रों की माने तो अकेले सेमरी गांव का ही तकरीबन 85 लाख रूपए बकाया है। उधर सब-स्टेशन व इंटक वेल की तकवारी कर रहे चौकीदार को भी एक साल से वेतन नहीं मिली है। ग्रामीणों को अब मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव से आस है कि वे उनकी तकलीफों पर गौर कर समस्या के निदान में अहम भूमिका निभाएंगे।
मौत के गड्ढे खोदकर मेंटेना गायब
बरसात के मौसम आए दिन खुले गड्ढों व जलभराव वाले स्थलों पर डूबकर होने वाली मौतों के कई मामले प्रकाश में आने के बाद भी न तो बाणसागर नहर के अधिकारी और न ही जिला प्रशासन के अधिकारियों ने इस ओर ध्यान दिया है। ग्रामीणों का कहना है कि नहरों से एक बूंद पानी अब तक मिला नहीं लेकिन बरसात में ये नहर बनाने खोदकर छोड़े गए गड्ढों से हादसों की संभावना बढ़ गई है। उधर नहर के गड्ढे खोदकर मेंटेना कपनी गायब है जिससे हादसों की आशंका बढ़ गई है।
निश्चित तौर पर ग्रामीणों को समस्या है। अर्सा पहले इसका प्रोजेक्ट तेयार किया गया था। कुछ तकनीकी दिक्कतों के कारण काम में लेट लतीफी हुई है। हमारा प्रयास इसकी तकनीकी बाधा को दूर कर गांवों तक पहुंचाने का है।
विनोद ओझा, एक्जिक्यूटिव इंजीनियर, बाणसागर नहर परियोजना, देवलौंद
किसानों की भूअर्जन की कार्रवाई के बाद मुआवाज की प्रक्रिया पूरी कर ली गई है। अवार्ड भी पारित हुए हैं। जहां तक सवाल अधूरी नहर का है तो मेंटेना कंपनी ने काम को अधर में लटका रखा है। उम्मीद है कि जल्द ही हल निकलेगा।
जेपी पटारिया, एसडीओ बाणसागर परियोजना
हमारी जमीनें ले ली गईं और नहर भी नही बन पाई । हम 8 साल से मुआवजा राशि पाने कार्यालयों के चक्कर काट रहे हैं। अवार्ड के बाद भी जिला प्रशासन अब तक हमारी मुआवजा राशि नहीं दे सका है। अब हमारी उम्मीद प्रदेश के मुख्यमंत्री से है कि वे इस मसले का हल निकालकर कई गांवों की तकलीफ को दूर करेंगे।
केसरी द्विवेदी, किसान
हम कहां किसके पास फरियाद करें समझ में नहीं आता। नहर नहीं बनाई जमीन भी ले ली और मुआवजे की राशि भी लंबित है। नहर के गडढों में कोई बड़ा हादसा हो सकता है लेकिन किसी को हमारी फिक्र नहीं है। कई बार हमने कार्यालयों में अपनी पीड़ा बताई लेकिन समस्य का निदान नहीं हो सका।
रोहणी प्रसाद, किसान