गुरु पूर्णिमा 2025: ज्ञान का प्रकाश पर्व, महत्व, पूजा विधि और गुरु-शिष्य परंपरा

10 जुलाई 2025 को मनाई जाएगी गुरु पूर्णिमा। जानें इस पावन पर्व का महत्व, महर्षि वेदव्यास जयंती, गुरु पूजन विधि और गुरु-शिष्य परंपरा का अनोखा उत्सव।

By: Star News

Jul 08, 20252 hours ago

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गुरु पूर्णिमा 2025: ज्ञान का प्रकाश पर्व, महत्व, पूजा विधि और गुरु-शिष्य परंपरा

स्टार समाचार वेब. फीचर डेस्क

10 जुलाई को देशभर में गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व बड़े ही श्रद्धाभाव और उत्साह के साथ मनाया जाएगा। यह दिन गुरु और शिष्य के पवित्र रिश्ते को समर्पित है, जो अनादि काल से भारतीय संस्कृति और परंपरा का आधार रहा है। गुरु पूर्णिमा का पर्व महर्षि वेदव्यास जी की जयंती के रूप रूप में भी मनाया जाता है, जिन्होंने वेदों का संपादन किया, महाभारत की रचना की और अठारह पुराणों का प्रणयन किया। उन्हें हिंदू धर्म के महानतम गुरुओं में से एक माना जाता है।

गुरु का महत्व: अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला

भारतीय संस्कृति में गुरु को ईश्वर से भी बढ़कर माना गया है। 'गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा, गुरु साक्षात् परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः' - यह श्लोक गुरु की महिमा का बखान करता है, उन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान और साक्षात परब्रह्म का स्वरूप बताता है। गुरु वह है जो अज्ञानता के अंधकार से निकालकर ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाता है। वे न केवल हमें शिक्षा देते हैं, बल्कि जीवन जीने की कला, नैतिकता और आध्यात्मिक मार्ग का भी बोध कराते हैं।

गुरु बिना ज्ञान अधूरा है। प्राचीन काल से ही भारत में गुरु-शिष्य परंपरा का विशेष महत्व रहा है, जहाँ शिष्य अपने गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण भाव रखता था और गुरु अपने शिष्य को सर्वश्रेष्ठ ज्ञान प्रदान करते थे। एकलव्य और द्रोणाचार्य, अर्जुन और कृष्ण, श्रीराम और वशिष्ठ जैसे उदाहरण इस परंपरा की महानता को दर्शाते हैं।

गुरु पूर्णिमा का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महर्षि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा के दिन हुआ था। उन्हें आदि गुरु का दर्जा प्राप्त है क्योंकि उन्होंने ही मानव जाति के कल्याण के लिए वेदों को चार भागों में विभाजित किया, जिससे उनका अध्ययन सरल हो गया। इसके अलावा, उन्होंने महाभारत और पुराणों की रचना कर ज्ञान के विशाल भंडार को सुलभ बनाया। यही कारण है कि इस दिन को 'व्यास पूर्णिमा' के नाम से भी जाना जाता है।

बौद्ध धर्म में भी गुरु पूर्णिमा का विशेष महत्व है। माना जाता है कि इसी दिन भगवान बुद्ध ने सारनाथ में अपने पहले पांच शिष्यों को प्रथम उपदेश दिया था, जिसके बाद वे 'धम्मचक्रप्रवर्तन' कहलाया। जैन धर्म में भी यह दिन गुरुओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का है।

गुरु पूर्णिमा मनाने की विधि और परंपरा

गुरु पूर्णिमा के दिन शिष्य अपने गुरुओं का विशेष सम्मान करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इस दिन विभिन्न तरीकों से गुरु की वंदना की जाती है:

  1. गुरु पूजन और सम्मान: शिष्य अपने गुरुओं के पास जाते हैं, उनके चरण स्पर्श करते हैं, उन्हें वस्त्र, फल, फूल और दक्षिणा अर्पित करते हैं।

  2. आशीर्वाद प्राप्त करना: गुरु अपने शिष्यों को ज्ञान, सद्बुद्धि और सफल जीवन का आशीर्वाद देते हैं।

  3. व्यास पूजा: घरों और मंदिरों में महर्षि वेदव्यास की पूजा की जाती है।

  4. स्वाध्याय और दान: इस दिन कई लोग शास्त्रों का अध्ययन करते हैं, ध्यान करते हैं और गरीबों व जरूरतमंदों को दान देते हैं।

  5. ज्ञान का प्रसार: कुछ लोग इस दिन गुरुओं की तरह ही ज्ञान बांटने का संकल्प लेते हैं, चाहे वह शिक्षा के माध्यम से हो या किसी अन्य प्रकार की सहायता से।

आधुनिक युग में गुरु का स्वरूप

आज के आधुनिक युग में गुरु का स्वरूप थोड़ा बदल गया है। अब केवल आध्यात्मिक या शैक्षणिक गुरु ही नहीं, बल्कि माता-पिता, बड़े भाई-बहन, मित्र, या कोई भी ऐसा व्यक्ति जो हमें सही मार्ग दिखाता है, प्रेरणा देता है या किसी भी रूप में हमारे जीवन को बेहतर बनाता है, वह गुरु समान है। गुरु पूर्णिमा हमें उन सभी व्यक्तियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर देती है, जिन्होंने हमारे जीवन को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

यह पर्व हमें याद दिलाता है कि ज्ञान की कोई सीमा नहीं होती और हमें हमेशा सीखने के लिए तत्पर रहना चाहिए। गुरु पूर्णिमा हमें विनम्रता, कृतज्ञता और ज्ञान के प्रति समर्पण का संदेश देती है।


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