देश में दशकों से जारी नक्सली आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई अब अपने निर्णायक दौर में पहुंच गई है। गृह मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, 2014 में माओवादी आतंकवाद प्रभावित 182 जिलों की तुलना में अक्टूबर 2025 में केवल 11 जिलों तक इनका आतंक रह गया है।
By: Arvind Mishra
Oct 19, 20252 hours ago
नई दिल्ली। स्टार समाचार वेब
देश में दशकों से जारी नक्सली आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई अब अपने निर्णायक दौर में पहुंच गई है। गृह मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, 2014 में माओवादी आतंकवाद प्रभावित 182 जिलों की तुलना में अक्टूबर 2025 में केवल 11 जिलों तक इनका आतंक रह गया है। मंत्रालय ने उम्मीद जताई कि 31 मार्च 2026 तक कुख्यात रेड कॉरिडोर भी इतिहास की बात हो जाएगी। बीते पांच दशक से नक्सलवाद की मार झेल रहे देश के तमाम जिलों और गांवों में अब पीएम मोदी के नेतृत्व में अभूतपूर्व विकास और प्रगति देखी जा रही है। इन जिलों को हिंसा नहीं अब विकास के जरिये परिभाषित किया जा रहा है। गृह मंत्रालय के मुताबिक बीते 75 घंटों में 303 नक्सल कैडर ने आत्मसमर्पण किया है। हाल के वर्षों में ये काफी बड़ी संख्या है। पीएम नरेन्द्र मोदी ने भी एक कार्यक्रम में कहा था कि वह दिन दूर नहीं जब देश पूरी तरह से नक्सलवाद से मुक्त हो जाएगा और इस बार इन इलाकों में नक्सली आतंकवाद से आजादी मिलने की खुशी में असल मायने में दिवाली का जश्न होगा।
पीएम मोदी ने कांग्रेस पर हमला करते हुए कहा था कि केंद्र में कांग्रेस शासन के दौरान अर्बन नक्सलियों का एक पूरा इकोसिस्टम काम करता था। ये अर्बन नक्सल तब और अब भी इस कदर हावी हैं कि वे नक्सली आतंकवाद की घटनाओं को छिपाने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चलाते हैं ताकि इनसे जुड़ी खबरें देशवासियों के सामने न आने पाएं। लाल आतंक के पीड़ितों में से कुछ के पैर नहीं थे, कुछ के हाथ कटे हुए थे, किसी ने आंख गंवा दी थी। इनमें वे ग्रामीण लोग, आदिवासी भाई और बहनें, किसानों के बेटे, माताएं और महिलाएं भी शामिल थीं, जिन्हें दोनों पैर कटवाने पड़े थे। ये लोग हाथ जोड़कर विनती कर रहे थे कि हमारी पीड़ा लोगों तक पहुंचाएं।
पीएम मोदी ने कहा कि ऐसा भी दौर था जब देश का लगभग हर राज्य नक्सल हिंसा और आतंकवाद से प्रभावित था। पूरे देश में संविधान लागू था, लेकिन रेड कारिडोर में ये पूरी तरह से गायब था। मैं पूरी जिम्मेदारी से कहता हूं कि जो लोग संविधान की किताब को अपने सिर पर लेकर नाचते हैं, वे आज भी दिन-रात इन नक्सली आतंक के हितों की रक्षा में लगे रहते हैं, जिनका संविधान में विश्वास ही नहीं है।
पीएम ने कहा कि सरकारें चुनी जाती थीं, लेकिन रेड कॉरिडोर में इनका कोई प्रभाव या वैधता नहीं होती थी। शाम ढलते ही घर से बाहर कदम रखना खतरनाक होता था और जनता की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार लोगों को भी सुरक्षा घेरे में चलना पड़ता था। बीते 50-55 साल में हजारों लोगों को नक्सली आतंकवाद की वजह से जान गंवानी पड़ी। असंख्य सुरक्षा कर्मियों को शिकार होना पड़ा।
इधर, बस्तर में 208 नक्सलियों के आत्मसमर्पण पर राजनीतिक हलचल है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राज्य की भाजपा सरकार और सुरक्षा बलों को बधाई देते हुए कहा कि नक्सलियों का मुख्यधारा में लौटना विश्वास-विकास-सुरक्षा नीति की सफलता का परिणाम है। बघेल ने कहा कि मुझे खुशी है कि सरकार और केंद्रीय गृह मंत्री ने पहले की तरह हमारी विश्वास-विकास-सुरक्षा नीति को आगे बढ़ाया है। बघेल ने कहा- बस्तर में माओवादियों का बड़े पैमाने पर आत्मसमर्पण इस राष्ट्रीय लड़ाई के अंत की दिशा में सकारात्मक कदम है। हम सब मिलकर जीतेंगे।
भूपेश बघेल के बयान पर राज्य के वन मंत्री केदार कश्यप ने कहा-तारीफ के लिए धन्यवाद भूपेश बघेल जी। बस यह स्पष्ट कर दीजिए कि यह आपकी निजी राय है या कांग्रेस का आधिकारिक बयान। आपकी पार्टी के प्रवक्ता तो इसे एक इवेंट बता रहे थे और प्रदेश अध्यक्ष असली-नकली नक्सली का प्रश्न उठाकर इस लड़ाई को कमजोर करने में लगे हैं। केदार कश्यप ने कहा कि जिस झीरम का आप जिक्र कर रहे हैं, उसी दरभा घाटी हमले में राहुल गांधी ने बिलासपुर में नक्सलियों को क्लीन चिट दे दी थी। आपकी पार्टी के नेताओं ने महेंद्र कर्मा जी का साथ देने के बजाय उनके सलवा जुडूम का विरोध किया था। अगर कांग्रेस ने तब समर्थन दिया होता तो यह लड़ाई इतनी लंबी नहीं चलती। कांग्रेस की यह दोहरी नीति देश के लिए खतरनाक है।