गंजबासौदा। दीपावली के अगले दिन परमा पर्व पर वार्ड-2 स्थित कारसदेव मंदिर से मौनी पार्टी के 15 ग्वालों ने मौन वात लेकर 12 गांवों की परिक्रमा शुरू की। सुबह 9 बजे गंगाजल का आचमन कर मौन बत लिया। इसके बाद करीब 51 किलोमीटर लंबी परिक्रमा के लिए नंगे पैर दौड़ते हुए रवाना हुए।
ग्वालों ने हरदूखेड़ी, बेहलोट, परसौरा, कांचरोद, भडेरू, सेमरा, डायला, इमलधाम, महागौर, पंचपीर, चक स्वरूप नगर सहित 12 गांवों की परिक्रमा पूरी की। शाम को मंदिर लौटकर पूजा और आरती के बाद मौन व्रत तोड़ा। ग्वाले पारंपरिक परिधान में थे। कमर पर मोरपंख, हाथों में गरवा की इंडियां, घटियों की गूंज और जय गोवर्धन नाथ के जयघोष के साथ दौड़ते रहे। यह आयोजन गी पूजन और संरक्षण से जुड़ा है। परमा के दिन पालक अपनी गायों को नहलाकर सजाते हैं। गले में घंटियां पहनाते हैं। ग्वाले गांव पहुंचकर गायों का पूजन करते हैं और भगवान गोवर्धन नाथ की आराधना करते हैं।
मौनी पार्टी... करीब 150 साल पुरानी है परंपरा
पुरानी मौनी पार्टी के पन्नालाल कुशवाह ने बताया, यह परंपरा करीब 150 साल पुरानी है। उनके दादा बसंतीलाल जी ने इसे शुरू किया था। उन्होंने 60 साल तक निभाया। पत्रालाल पिछले 30 वर्षों से इसे निभा रहे हैं। अब तीसरी पीढ़ी से मोहित कुशवाह भी पिछले 8 वर्षों से पार्टी का हिस्सा हैं। पिछले साल मंदिर समिति से मतभेद हुए थे, जिन्हें इस बार सुलझा लिया गया। हर साल परमा पर्व पर यह टोली नगर की सदियों पुरानी आस्था, परंपरा और गो-संरक्षण की भावना को जीवित रखे हुए हैं।
ग्रामीणों ने दही, महा और दूध पिलाकर स्वागत किया
वयोवृद्ध रामगोपाल यादव ने बताया, जो सदस्य एक बार इस मौन व्रत में शामिल होता है, उसे लगातार 12 वर्षों तक हर साल भाग लेना होता है। ग्वाले मानते हैं कि वे गोवर्धन परिक्रमा कर रहे हैं। 11 वर्षों तक यह परिक्रमा करने के बाद बारहवें वर्ष ब्रज जाकर वास्तविक गोवर्धन परिक्रमा कर शपथ पूरी करते हैं। इस बार आयोजन का नेतृत्व पन्नालाल कुशवाह ने किया। उनके साथ घनश्याम, मनोज, सरवन, दुर्जन, संदीप, भगवान दास, भगीरथ, धनराज, मोनू, सोनू, अंकित और सुनील रैकवार सहित दो दर्जन ग्वाल शामिल हुए। परिक्रमा के दौरान ग्वालों ने गांव-गांव में गायों का पूजन किया। ग्रामीणों ने दही, मट्ठा और दूध पिलाकर स्वागत किया। किसी ने रास्ते में विश्राम नहीं किया। न खुद रुके, न किसी को रुकने दिया।