लक्ष्मी पूजन में स्थायी वास के लिए 15 से अधिक महत्वपूर्ण नियम, सामग्री और सावधानियाँ जानें। बैठी हुई मुद्रा, कमल का फूल, शुद्धता, दिशा (उत्तर/पूर्व), घी का दीपक और वर्जित कार्य (नशा/लोहा/उधार) की सम्पूर्ण जानकारी।
By: Ajay Tiwari
Oct 16, 20254:38 PM
लक्ष्मी पूजन, जिसे दीपावली के अवसर पर किया जाता है, हिंदू धर्म के सबसे शुभ और महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में से एक है। यह केवल एक पूजा नहीं, बल्कि माता लक्ष्मी को अपने घर में स्थायी रूप से आमंत्रित करने का एक तरीका है। शास्त्रों के अनुसार, कुछ विशेष बातों का ध्यान रखने से माँ लक्ष्मी अति शीघ्र प्रसन्न होती हैं और घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।
संपूर्ण स्वच्छता: माँ लक्ष्मी का वास उसी स्थान पर होता है जहाँ पूर्ण स्वच्छता और शुद्धता होती है। पूजन से पहले, पूरे घर और विशेष रूप से पूजा स्थल की अच्छी तरह से साफ़-सफ़ाई सुनिश्चित करें।
स्वयं की शुद्धता: स्नान करके शुद्ध और धुले हुए वस्त्र (नए वस्त्र सर्वोत्तम) धारण करें। पूजा के लिए लाल या पीला रंग अत्यंत शुभ माना जाता है।
शुभ दिशा: पूजा करते समय आपका मुख हमेशा उत्तर या पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए। उत्तर दिशा को धन आगमन की दिशा माना गया है।
बैठी हुई मुद्रा: माँ लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र हमेशा बैठी हुई (कमल पर विराजमान) मुद्रा में होनी चाहिए, न कि खड़ी हुई। खड़ी हुई लक्ष्मी को चंचल और अस्थायी माना जाता है।
त्रिदेव स्थापना: लक्ष्मी पूजन सदैव भगवान गणेश (बुद्धि के दाता) और भगवान विष्णु (स्थायित्व और पोषण के प्रतीक) के साथ किया जाना चाहिए।
गणेश जी: लक्ष्मी जी के दाईं ओर स्थापित करें।
विष्णु जी: लक्ष्मी जी के बाईं ओर स्थापित करें।
कलश स्थापना: मंगल कलश (वरुण देव का प्रतीक) को चावल की ढेरी पर स्थापित करना अनिवार्य है। कलश में गंगाजल, सिक्का, सुपारी और आम के पत्ते डालें।
कमल और कमल गट्टा: माँ लक्ष्मी को कमल का फूल सबसे प्रिय है। पूजा में कमल का फूल या कमल गट्टा (कमल के बीज) अवश्य समर्पित करें।
प्रिय भोग: भोग में खील, बताशे, गन्ना (ईख) और गाय के दूध से बनी खीर या शुद्ध मिठाई अवश्य शामिल करें।
अक्षत (चावल): लक्ष्मी जी को अक्षत समर्पित करते समय ध्यान रखें कि चावल टूटे हुए न हों।
घी का दीपक: पूजा में गाय के घी का दीपक जलाना सर्वश्रेष्ठ होता है। यह दीपक उत्तर दिशा की ओर मुख करके जलाना शुभ है और यह पूजा समाप्त होने तक, और संभव हो तो पूरी रात, अखंड जलता रहना चाहिए।
शांति और सौहार्द: पूजा के दौरान और पूरे दिन घर में गुस्सा, वाद-विवाद या लड़ाई-झगड़ा बिल्कुल न करें। माँ लक्ष्मी शांतिपूर्ण और सौहार्दपूर्ण वातावरण में ही वास करती हैं।
मंत्र जाप: पूजा के समय लक्ष्मी चालीसा, श्री सूक्त या कनकधारा स्तोत्र का पाठ करना अति उत्तम होता है, जो माँ लक्ष्मी को अति प्रिय है।
व्यसनों से दूरी: दीपावली के दिन किसी भी प्रकार का नशा (शराब, धूम्रपान आदि) या जुआ खेलना पूर्ण रूप से वर्जित है, क्योंकि इससे दरिद्रता आती है।
लोहे के बर्तन: लक्ष्मी पूजन में लोहे, प्लास्टिक या कांच के बर्तनों का उपयोग नहीं करना चाहिए। केवल सोने, चांदी, तांबे या पीतल के बर्तनों का उपयोग करें।
झाड़ू और जूते: पूजा स्थल के पास जूते, चप्पल या झाड़ू जैसी वस्तुएँ न रखें। झाड़ू को हमेशा छिपाकर रखें, क्योंकि यह दरिद्रता का प्रतीक मानी जाती है।
उधार देना/लेना: इस दिन किसी को भी उधार नहीं देना चाहिए, क्योंकि मान्यता है कि इससे घर की लक्ष्मी बाहर चली जाती है।
इन नियमों और सावधानियों का भक्तिभाव से पालन करने पर माँ लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं, जिससे आपके घर में धन, सुख और समृद्धि का स्थायी वास होता है।