मैहर नगर पालिका अध्यक्ष गीता सोनी पर नामांकन पत्र के शपथ-पत्र में तथ्य छुपाने का गंभीर आरोप है। शिकायत 2024 में दर्ज हुई थी, लेकिन चार बार आदेश भेजने के बावजूद जिला प्रशासन ने राज्य निर्वाचन आयोग को पूरी जांच रिपोर्ट नहीं भेजी। आयोग ने जून 2025 में भेजी गई रिपोर्ट को भी अधूरी बताते हुए अस्वीकार कर दिया। शिकायतकर्ता ने इसे भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने और लोकतंत्र के अपमान से जोड़ा है।
By: Yogesh Patel
Aug 31, 20259:44 PM
हाइलाइट्स
मैहर, स्टार समाचार वेब
मध्यप्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग के लगातार निर्देशों ं के बावजूद मैहर जिला प्रशासन द्वारा कार्रवाई न करने का मामला सुर्खियों में है। यह पूरा विवाद नगर पालिका मैहर की पार्षद एवं वर्तमान अध्यक्ष गीता सोनी से जुड़ा है, जिन पर नामांकन पत्र के साथ दिए गए शपथ-पत्र में तथ्य छुपाने का गंभीर आरोप है।
नादन निवासी शिकायतकर्ता रविशंकर द्विवेदी ने 23 दिसंबर 2024 को सबसे पहले कलेक्टर और एसडीएम मैहर को आवेदन देकर शिकायत दर्ज कराई थी। आरोप था कि गीता सोनी ने अपने नामांकन के समय महत्वपूर्ण जानकारियों का खुलासा नहीं किया। लेकिन स्थानीय स्तर पर किसी भी प्रकार की कार्रवाई नहीं हुई और मामला राज्य निर्वाचन आयोग पहुच गया।
चार बार आदेश भेजने के बाद भी जांच अधूरी
इसके बाद मामला राज्य निर्वाचन आयोग तक पहुँचा। तब आयोग ने सबसे पहले 02 जनवरी 2025 को कलेक्टर मैहर को शिकायत की जांच कर प्रतिवेदन भेजने का आदेश दिया। इसके बाद 11 फरवरी 2024, 14 मई 2025 और 09 जुलाई 2025 को भी स्मरण-पत्र जारी किए गए। लेकिन चार बार आदेश भेजने के बावजूद अब तक आयोग को जांच रिपोर्ट नहीं मिली। आयोग के पत्रों में साफ उल्लेख किया गया कि शिकायत का निराकरण तभी संभव है जब जिला प्रशासन अपनी जांच रिपोर्ट अभिमत सहित भेजे। यहां तक कि 19 जून 2025 को अपर कलेक्टर मैहर द्वारा भेजी गई रिपोर्ट को भी आयोग ने अधूरी और अस्पष्ट बताते हुए अस्वीकार कर दिया। इसके बाद भी कलेक्टर कार्यालय की ओर से चुप्पी साध ली गई।
शिकायत कर्ता के आरोप
शिकायतकर्ता रविशंकर द्विवेदी का आरोप है कि उन्होंने कई बार कलेक्टर से मुलाकात कर दस्तावेज सौंपे, लेकिन प्रतिवेदन जानबूझकर आयोग को नहीं भेजा जा रहा। उनका कहना है कि यह सब पार्षद को बचाने और भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने की कोशिश है। उन्होंने कहा कलेक्टर लोकतंत्र और जनता की गरिमा की रक्षा करने में नाकाम साबित हो रहे हैं। आयोग के आदेशों की अनदेखी कर भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देना जनता के अधिकारों का हनन है।