मालेगांव ब्लास्ट मामले में एनआईए कोर्ट ने साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, कर्नल पुरोहित सहित सभी आरोपियों को बरी कर दिया। जानें 17 साल बाद आए इस फैसले के मायने, 'भगवा आतंकवाद' का विवाद और न्याय प्रणाली पर उठते सवाल।
By: Star News
Aug 01, 202511:08 AM
मालेगांव ब्लास्ट मामले में एनआईए कोर्ट का आज का फैसला कई मायनों में ऐतिहासिक और विचारणीय है। यह वही मामला था, जिसने पहली बार हिंदू आतंकवाद या भगवा आतंकवाद जैसे विवादास्पद शब्दों को राजनीतिक और सामाजिक विमर्श में ला खड़ा किया था। विस्फोट के आरोपियों में एक साध्वी (प्रज्ञा सिंह ठाकुर), एक सैनिक (लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित) और संघ से जुड़े कुछ स्वयंसेवकों के नाम शामिल थे, जिससे यह मामला और भी सनसनीखेज बन गया।
हिंदुस्तान के इतिहास में यह पहला अवसर था जब साधु की चादर, सैनिक की वर्दी और स्वयंसेवक की टोपी पर आतंकवाद का छींटा फेंका गया। मालेगांव ब्लास्ट न केवल एक आपराधिक घटना थी, बल्कि उस परिकल्पना पर भी हमला था जो इन तीनों संस्थाओं को राष्ट्र की रीढ़ मानती है।"
साध्वी प्रज्ञा को इस मामले में मुख्य आरोपी बनाया गया और उन्हें वर्षों तक कानूनी और शारीरिक प्रताड़ना झेलनी पड़ी। यह वही दौर था जब पूरे विश्व में हिंदू समाज की शीलता, सहिष्णुता और संयम पर प्रश्नचिह्न लगाए गए। पुलिस जांच की दिशा और राजनीतिक मंशाओं पर भी उंगलियां उठीं, लेकिन न्याय की तुला पर सबूत हल्के साबित हुए। पहले महाराष्ट्र एटीएस और फिर एनआईए दोनों जांच एजेंसियां अदालत में यह साबित नहीं कर सकीं कि इन आरोपियों का मालेगांव विस्फोट से कोई प्रत्यक्ष संबंध था। अंततः कोर्ट ने साक्ष्य के अभाव में सातों आरोपियों को बरी कर दिया।
बेशक, इस फैसले पर भी सवाल उठेंगे। जैसे हाल ही में मुंबई लोकल ट्रेन ब्लास्ट केस के निर्णय पर उठे। लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि झूठ के पांव नहीं होते। आरोपों की भट्ठी में तपने के बाद साध्वी, सैनिक और स्वयंसेवक आज बेदाग होकर निकले हैं। सत्यमेव जयते की गूंज एक बार फिर सुनाई दी है।
सत्रह साल बाद आया यह फैसला न केवल साधु-संत समाज में संतोष का विषय बना, बल्कि बीजेपी खेमे में भी राहत की लहर दौड़ गई। अब असली चुनौती एनआईए के सामने है, उसे यह सिद्ध करना होगा कि मालेगांव धमाके के असली गुनहगार आखिर कौन थे। जिस तरह से मुंबई ट्रेन ब्लास्ट के आरोपियों को ढूंढने की कोशिश हो रही है, उसी गंभीरता से इस विस्फोट की तह तक जाना अब न्याय प्रणाली का अगला पड़ाव होना चाहिए।
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