सतना शहर के प्राचीन शंकर मंदिर की दान की गई जमीन को बेचे जाने की कोशिशों से शिवभक्तों में आक्रोश है। 1956 के दानपत्र के बावजूद जमीन पर वारिसों द्वारा कब्जा कर बिक्री की कोशिशें की जा रही हैं। मामले की जांच एसडीएम सिटी को सौंपी गई है।
By: Star News
Jul 19, 20253:47 PM
पूर्वजों ने किया दान अब वारिस बेचने पर उतारू
सतना, स्टार समाचार वेब
शहर के मध्य स्थित एक ऐतिहासिक शिव मंदिर और उससे जुड़ी जमीन की बिक्री को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। मामला सर्किट हाउस के पीछे पश्चिम दिशा में स्थित प्राचीन मुन्नालाल पंसारी का बाड़ा और शंकर मंदिर से जुड़ा है, जिसे वर्षों पूर्व एक धार्मिक दानपत्र के माध्यम से देवाधिदेव महादेव को समर्पित किया गया था, लेकिन अब दानदाता के वारिसों ने शंकर मंदिर को खुर्द-बुर्द करते हुए इसकी बिक्री की कवायदें शुरू की है, जिसकी शिकायत कलेक्टर के यहां की गई है, जिसकी जांच का जिम्मा एसडीएम सिटी को सौंपा गया है। अब देखना यह है कि जिला प्रशासन इस मुद्दे पर किस तरह से कार्रवाई करता है। क्या शिवभक्तों की आस्था की रक्षा होगी या लालच के आगे आस्था की यह बेशकीमती विरासत नीलाम हो जाएगी? जवाब आने वाले दिनों में सामने आएंगे, लेकिन फिलहाल शहर की निगाहें कलेक्टर और एसडीएम की कार्रवाई पर टिकी हैं।
दानपत्र बनाकर गठित किया था न्यास
शहर के प्रमुख व्यवसायी रहे मुन्नालाल पंसारी के उत्तराधिकारी अर्जुनदास खंडेलवाल ने दिनांक 16 अप्रैल 1956 को बम्हनगवां मौजा की आराजी क्रमांक 232 तथा सतना की आराजी क्रमांक 142, 143 को एक पंजीकृत दानपत्र के माध्यम से भगवान शंकर को समर्पित कर दिया था। इसके साथ ही एक धार्मिक ट्रस्ट की भी स्थापना की गई, जिसका उद्देश्य मंदिर और उससे जुड़ी संपत्ति की देखरेख करना था। इस धार्मिक स्थल की लोकप्रियता समय के साथ बढ़ती गई और यह जगह शहर के शिवभक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र बन गई। यहां श्रद्धालु पूजा अर्चना के लिए आते, और स्थानीय समुदाय के बीच यह स्थान सांस्कृतिक और आध्यात्मिक गतिविधियों का केंद्र बना रहा। अर्जुनदास खंडेलवाल के निधन के बाद वर्ष 1967 में उनके ही परिजन देवीशंकर खंडेलवाल ने ट्रस्ट की जिम्मेदारी संभाली।
जमीन पर शुरू हुई लालच की राजनीति
समय के साथ जैसे-जैसे इलाके की जमीन की कीमतें बढ़ती गईं, वैसे-वैसे ट्रस्ट से जुड़ी इस भूमि पर खंडेलवाल परिवार के वारिसों की नजरें टेढ़ी होती गईं। शिकायतकर्ता शरद सिंह के अनुसार, वर्ष 1982 में रहस्यमयी तरीके से कुछ नए दस्तावेज तैयार कराए गए, जिनके आधार पर उक्त जमीन को टुकड़ों में बांटकर बेचे जाने का षड्यंत्र शुरू हुआ। इसमें राजस्व विभाग की संदिग्ध भूमिका पर भी गंभीर सवाल उठे । शिकायतकर्ता का कहना है कि ट्रस्ट या दानपत्र से जुड़ी संपत्ति को बेचना अवैध है, ऐसे में यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा कि इस बिक्री को किस आधार पर वैध ठहराया गया।
शंकर मंदिर के दरवाजे पर ताले, दर्शन पर रोक
इस विवाद के केंद्र में कामना खंडेलवाल पत्नी रामप्रसाद खंडेलवाल का नाम सामने आ रहा है, जिन पर आरोप है कि वे वर्तमान में इस पवित्र स्थल को बेचने की कोशिश कर रही हैं। इसके लिए मंदिर परिसर के प्रवेश द्वार को ताले डालकर बंद कर दिया जाता है। शिकायत में बताया गया कि शिव प्रतिमा के दर्शन करने आने वाले भक्तों को मंदिर के बाहर से ही लौटा दिया जाता है। स्थिति इतनी गंभीर हो चुकी है कि मंदिर से जुड़े कक्ष और हॉल तक को ध्वस्त कर दिया गया है। अब खबरें हैं कि मंदिर और उससे जुड़ी दुकानों को भी तोड़कर बेचा जाने वाला है।
जांच शुरू, उम्मीदों की डोर अभी बाकी
शिवभक्तों की शिकायत पर कलेक्टर ने इस पूरे मामले को गंभीरता से लेते हुए जांच का जिम्मा एसडीएम सिटी राहुल सिलाड़िया को सौंपा है। यह जांच कई सवालों के उत्तर तलाशेगी—क्या ट्रस्ट की संपत्ति को बेचना कानूनन संभव है? यदि नहीं, तो फिर इस संपत्ति के क्रय-विक्रय की प्रक्रिया को राजस्व अमले ने क्यों नजरअंदाज किया? कहीं इसमें अंदरूनी सांठगांठ तो नहीं?
सवाल जो मांग रहे जवाब