करन उपाध्याय के कॉलम 'प्लेटफ़ॉर्म' में पढ़िए कि कैसे सतना जंक्शन पर संडे को हुई सफाई और व्यवस्थाओं ने यात्रियों को चौंका दिया। जो प्लेटफॉर्म महीनों से गड्ढों और गंदगी से भरा था, बड़े साहब के निरीक्षण प्रोग्राम के चलते एक दिन में चमचमाने लगा। वेंडरों की यूनिफॉर्म, ढके हुए खाने और चालू वाटर कूलरों को देखकर यात्री बोले—"काश यह व्यवस्था रोज रहती।" कर्मचारी भी बोले—"संडे हमारा आराम का दिन है, पर साहबों का दौरा ड्यूटी-डे बना देता है।" वहीं जादुई रोस्टर की चर्चा भी कर्मचारियों के बीच खूब हो रही है।
By: Yogesh Patel
Sep 04, 20258:32 PM
प्लेटफॉर्म करन उपाध्याय
कभी चुपके से भी आओ साहब!
संडे का दिन इस बार जंक्शन में कुछ खास था। स्टेशन के अंदर और बाहर चकाचक करवाने एक दिन पहले दिन-रात एक कर दिया गया। सुबह जंक्शन पहुंचने वाले यात्री सफाई कर्मी से भी पूछते रहे, अरे भाई आज क्या बात है। सफाई कर्मियों ने बताया कि जोन की मुखिया का दौरा होना है। साहब बात करने की भी फुर्सत नहीं है। निरीक्षण में जो भी मौजूद था उसके मुंह से बस एक ही शब्द निकलता था वाह... भई वाह...। लेकिन साहब सरकार जैसे ही डेहरी उतरे कि व्यवस्थाएं फिर से वही पुराने ढर्रे पर हो गई। एक दिन पहले ही फरमान जारी हो जाता है कि कोई भी स्टालों व प्लेटफार्म में वेंडर पुराने ड्रेस में नहीं नजर आएगा, सबके पास मुंह में मास्क, सर पे टोपी, हाथ में ग्लब्स होंगे। जनता खाना काउंटरों में सजा होगा। अखबार के कागजों में समोसे कोई नहीं परोसेगा। खाना ढका हुआ होगा। यात्री कहते हैं कि काश एक दिन की बजाय साल के 365 दिन ये व्यवस्था होती। कहते हैं कि हकीकत जाननी हो तो कभी चुपके से आओ साहब। जोन या डिवीजन के बड़े अधिकारियों के दौरे का प्रोग्राम मिलते ही स्थानीय अधिकारियों में कार्य की तूफानी गति आ जाती है। प्लेटफार्म में जो गढ्ढे 2-4 महीने में कागजी घोडेÞ दौड़ाने के बाद भी नहीं भरते वो बड़े साहबों के प्रोग्राम जारी होते ही चुटकियों में भर जाते हैं। साल-6 माह से शेड में लगे जाले एक फूंक में निकल जाते हैं। सभी वाटर कूलर सही हो जाते हैं, रात में ही नो पार्किंग जोन में एक्शन होने लगता है। खैर बड़े साहबों के दौरे में एकजुट होकर हर बार कार्य करने का मंत्र पढाया जाता है, भविष्य की प्लानिंग की रेखा खींची जाती है, व्यवस्थाएं कुछ दिनों के लिए टाइट हो जाती है, तभी तो रेलवे में हर बडेÞ अधिकारी का निरीक्षण प्रोग्राम समय- समय पर बनता है, ईमानदारी और मेहनत करने वाले सराहे जाते हैं।
संडे को न बनाओ प्रोग्राम
रेलवे अधिकारियों को संडे का नाम सुनते ही चेहरे पर मुस्कान आ जाती है, लेकिन ये मुस्कान तब गायब हो जाती है जब खबर मिलती है कि जोन के बड़े साहब का निरीक्षण प्रोग्राम है। अब कर्मचारी कहते हैं कि संडे को तो हम भी पटरी बदलना चाहते हैं, दफ्तर से घर की ओर मगर साहब हमें फिर से स्टेशन पर खड़ा कर देते हैं। हफ्ते के एक दिन तो रेस्ट मिलता है वो भी साहबों के दौरे में खप जाता है। रेलवे कर्मचारी कहते है कि मंडे - टू- फ्राइडे तक ख्ूाब आओ साहब। कहते है कि संडे को सब चाहते है थोड़ा चैन, थोड़ा आराम। साहबों के कई बार निरीक्षण प्रोग्राम ने संडे को ड्यूटी -डे बना दिया है।
विभाग का जादुई रोस्टर
कर्मचारियों के बीच इन दिनों बड़ी कानाफूसी चल रही है। कहते है कि एक जादुई रोस्टर है। रोस्टर में ड्यूटी लगी थी लेकिन असल में कर्मचारी छुट्टी पर था। विभाग में ड्यूटी रोस्टर कोई कागज का टुकड़ा नहीं, बल्कि जादुई पर्ची है। वहीं कहते हंै कि जिसको जिस समय ड्यूटी चाहिए, वही लाइन में आगे और जो खास हैं, उनका नाम अपने आप आराम वाली ड्यूटी में दर्ज हो जाता है। कर्मचारियों में ये भी चर्चा है कि असली ताकत उस कलम में है, जो रोस्टर बनाती है। एक कर्मचारी ने यह तक कहा कि हम चाहे कितनी ही मेहनत करें, पर लिस्ट में नंबर उसी का चमकेगा, जिसका चमचा चमकता हो। दूसरा हंसकर बोला यहां तो छुट्टी मांगने पर वो साहब ऐसे झल्ला जाते है जैसे कि कुत्ते के पूंछ में पैर रख गया हो।