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कलयुग में बढ़ता हुआ नंदी महाराज का मंदिर: जानिए यागंती उमा महेश्वर मंदिर का रहस्य और इतिहास

आंध्र प्रदेश का यागंती उमा महेश्वर मंदिर अपने रहस्यमयी नंदी महाराज के कारण प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि यहां पत्थर के बने नंदी महाराज का आकार हर 20 साल में बढ़ता है। जानिए मंदिर का इतिहास, रहस्य और मान्यता।

By: Ajay Tiwari

Nov 08, 20254:46 PM

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कलयुग में बढ़ता हुआ नंदी महाराज का मंदिर: जानिए यागंती उमा महेश्वर मंदिर का रहस्य और इतिहास

धर्म डेस्क. स्टार समाचार वेब

आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले में स्थित यागंती उमा महेश्वर मंदिर अपनी अनोखी मान्यता और रहस्यमयी नंदी महाराज के कारण विश्वभर में प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि इस मंदिर में विराजमान पत्थर के नंदी महाराज का आकार समय के साथ धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है। वैज्ञानिक भी इस घटना का स्पष्ट कारण नहीं बता पाए हैं।

यह मंदिर विजयवाड़ा से लगभग 359 किमी और हैदराबाद से करीब 308 किमी की दूरी पर स्थित है। भक्त यहां अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए दूर-दूर से आते हैं।

मंदिर का इतिहास और स्थापत्य कला

माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 15वीं शताब्दी में संगम वंश के राजा हरिहर बुक्का राय ने करवाया था। मंदिर की दीवारों पर पल्लव और चोल वंश की सुंदर नक्काशी देखने को मिलती है। मंदिर परिसर के चारों ओर अनेक गुफाएं हैं, जिनमें ऋषियों और मुनियों ने तपस्या की थी।

इन गुफाओं में से कई को पवित्र स्थल माना जाता है, और भक्त इनके दर्शन के लिए बड़ी श्रद्धा से आते हैं।

कलयुग में जीवित नंदी महाराज का रहस्य

मंदिर का सबसे बड़ा आकर्षण है – नंदी महाराज की पत्थर की प्रतिमा, जो हर 20 वर्ष में लगभग एक इंच बढ़ जाती है। जब प्रतिमा बड़ी होती है, तो उसके आसपास के खंभों को हटाना पड़ता है।

मान्यता है कि नंदी महाराज कलयुग के प्रतीक हैं, और जब कलयुग का अंत होगा, तब यह प्रतिमा जीवित रूप धारण करेगी। इस नंदी को स्थानीय भाषा में ‘रंका’ भी कहा जाता है।

महर्षि अगस्त्य से जुड़ी कथा

कहा जाता है कि यहीं पर महर्षि अगस्त्य ने घोर तपस्या की थी। वे भगवान वेंकटेश्वर का मंदिर स्थापित करना चाहते थे, लेकिन प्रतिमा के अंगूठे में दरार आ जाने से वह खंडित हो गई। तब भगवान शिव ने उन्हें दर्शन देकर कहा कि वे यहां उनका कैलाश स्वरूप मंदिर बनाएं। इसी से इस मंदिर का नाम यागंती उमा महेश्वर पड़ा।

मंदिर में नहीं आते कौवे

इस मंदिर की एक और अद्भुत विशेषता है कि यहां कौवे दिखाई नहीं देते। मान्यता है कि जब महर्षि अगस्त्य तपस्या कर रहे थे, तब एक कौवे ने उन्हें परेशान किया। तब उन्होंने कौवों को इस स्थान से शाप देकर दूर कर दिया। आज भी मंदिर और उसके आसपास के क्षेत्र में कोई कौवा नहीं दिखता।


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