एंग्ज़ाइटी या चिंता सबसे बुनियादी इंसानी अनुभवों में से एक है. ख़तरनाक या चुनौतीपूर्ण हालात के प्रति यह एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया होती है.
By: demonews
May 17, 20251 hour ago
कभी कभार होने वाली एंग्ज़ाइटी ज़िंदगी का एक सामान्य हिस्सा है, जो हमें संभावित ख़तरों का सामना करने के लिए तैयार करता है.
लेकिन जब यह अधिक हो और लगातार हो और नियंत्रित करने में मुश्किल आने लग जाए या वास्तविक हालात के अनुपात से अधिक हो तो यह समस्या भी पैदा कर सकती है.
अगर हम एक स्वस्थ जीवन को बढ़ावा देना चाहते हैं तो इससे गुज़रने वाले लोगों, सहायता नेटवर्कों और समाज को.. इसके अलग अलग रूपों को समझना बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है.
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मनोवैज्ञानिक नज़रिये से एंग्ज़ाइटी चिंता, डर और बेचैनी की भावना है.
से ख़तरे से उपजी आशंका, तनाव और बेचैनी के रूप में भी परिभाषित किया जा सकता है और यह ख़ुद के विचारों या आसपास की घटनाओं से पैदा होती है.
वियतनाम और अमेरिका में मनोविज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में काम कर चुके फुओंग ली ने बीबीसी को बताया, "एंग्ज़ाइटी इतनी तीव्र हो सकती है कि इससे गुज़रने वाले कुछ लोगों का कहना है कि यह शारीरिक दर्द जैसा होता है और यह मानसिक स्वास्थ्य पर इसके अहम असर और इससे निजात पाने की बेचैनी को दर्शाता है."
वह बताते हैं कि हल्की एंग्ज़ाइटी फ़ायदेमंद हो सकती है क्योंकि यह संभावित ख़तरे के प्रति आपको सतर्क करती है, तैयार करती है और इस पर ध्यान देने की ज़रूरत बताती है.
हालांकि जब भविष्य की घटनाओं को लेकर डर बहुत अधिक या अवास्तविक हो जाता है तो सामान्य जीवनचर्या प्रभावित होने लगती है और यह मानसिक विकार का संकेत भी हो सकता है.
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आमतौर पर तनाव, मौजूदा चुनौतियों जैसे कि काम की समय सीमा या पारिवारिक समस्याओं के चलते पैदा होता है और जब ये समस्याएं समाप्त होती हैं तो तनाव भी ख़त्म हो जाता है.
जबकि एंग्ज़ाइटी अक्सर बिना स्पष्ट कारण के, मन में चल रहे विचारों की वजह से पैदा होती है और तनाव के मुक़ाबले अधिक देर तक रहती है.
एंग्ज़ाइटी में ख़ौफ़, बेचैनी, आशंका और अत्यधित चिंता या डर की भावना होती है.
लंबे समय तक रहने के कारण एंग्ज़ाइटी का असर हमारे पूरे स्वास्थ्य और ज़िंदगी की गुणवत्ता पर पड़ता है.
फुओंग ली कहते हैं कि लंबे समय तक रहने वाला तनाव, एंग्ज़ाइटी जैसे मनोविकार का सबसे बड़ा कारण हो सकता है.
वो कहते हैं, "लंबे समय तक बहुत अधिक तनाव मूड के संतुलन के लिए ज़िम्मेदार.. मस्तिष्क में न्यूरोट्रांसमीटर्स के नाज़ुक संतुलन को बिगाड़ सकता है. लगातार दबाव आख़िकार लंबी अवधि की स्वास्थ्य समस्याओं को पैदा करता है, जिसमें मूड बदलना और एंग्ज़ाइटी विकार दोनों आते हैं."
वो कहते हैं कि शोध ये भी बताते हैं कि तनावपूर्ण घटनाएं एंग्ज़ाइटी की संवेदनशीलता को बढ़ाती हैं और अधिक तनाव में रहने वाले लोगों में एंग्ज़ाइटी का ख़तरा अधिक होता है.
उनके अनुसार, "भविष्य में एंग्ज़ाइटी और अन्य मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से बचने के लिए तनाव को प्रभावी तरीक़े से मैनेज करना महत्वपूर्ण है."
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पूरी सेहत पर एंग्ज़ाइटी पर बड़ा असर हो सकता है.
फुओंग ली कहते हैं कि गंभीर एंग्ज़ाइटी का संबंध कार्डियोवस्कुलर समस्याओं से है जिनमें दिल की बीमारी, हार्ट अटैक, हाई ब्लड प्रेशर और स्ट्रोक शामिल हैं.
एंग्ज़ाइटी से पाचन तंत्र में भी दिक्कतें आ सकती हैं जैसे कि इरिटेबल बाउल सिंड्रोम, अल्सर, मितली, डायरिया और कब्ज़.
गंभीर एंग्ज़ाइटी प्रतिरोधी तंत्र को भी कमज़ोर कर सकता है इससे संक्रमण और बीमारियों का ख़तरा बढ़ जाता है. इससे नींद की समस्या भी पैदा होती है और यह पलटकर एंग्ज़ाइटी को और बढ़ा सकती है.
जब हम बेचैन होते हैं तो सिर दर्द और शरीर में दर्द बढ़ जाता है और इसीलिए कहा जाता है कि क्रॉनिक एंग्ज़ाइटी और ऑटो इम्यून बीमारी के बीच एक संबंध हो सकता है. इससे संक्रमण से लड़ने की क्षमता प्रभावित होती है.
एंग्ज़ाइटी से डिप्रेशन और नशे जैसे विकार भी पनप सकते हैं.
बहुत गंभीर एंग्ज़ाइटी में लोगों को अपनी जान लेने का ख़तरा भी बढ़ सकता है.
एंग्ज़ाइटी को कम करने का सबसे असरदार तरीक़ा क्या है?
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एंग्ज़ाइटी का एक सामान्य शारीरिक लक्षण है सांस तेज़ होना. गहरी सांस लेने की तकनीक का अभ्यास इस पर काबू पाने में मदद करता है.
छोटे छोटे और हासिल हो सकने वाले लक्ष्यों में धीरे धीरे डर का सामना करना, एंग्ज़ाइटी से निबटने और आत्मविश्वास बढ़ाने में मददगार हो सकता है.
कुछ लोगों को दिन में एक विशेष 'वरी टाइम' की योजना बनाना उपयोगी लगता है, ताकि बाकी समय चिंता को हावी होने से रोका जा सके.
एंग्ज़ाइटी कब कब आती है और इसका क्या कारण है डायरी में लिखने से बहुत अहम जानकारी मिल सकती है.
भरोसेमंद दोस्तों, परिवार के सदस्यों या मेंटल हेल्थ हेल्पलाइन से अपने अहसास के बारे में बात करना मददगार साबित हो सकता है और सुने जाने की संतुष्टि देता है.
सपोर्ट ग्रुप अनुभवों को साझा करने की सुरक्षित जगह और ये समूह एक जैसी समस्याओं से जूझते लोगों के अनुभव से सीखने का मौका मुहैया करा सकते हैं.
जिस चीज़ में आनंद आता हो और रिलैक्स करने वाली आदतें एंग्ज़ाइटी को कम कर सकती हैं.
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सीबीटी एंग्ज़ाइटी को मैनेज करने का तरीक़ा है ताकि परेशान करने वाली विचार प्रक्रिया को पहचाना जा सके और उससे उबरा जा सके.
इसमें एक संतुलित नज़रिया पाने के लिए नकारात्मक विचारों के पक्ष विपक्ष में तथ्यों की जांच परख शामिल है.
माइंडफ़ुलनेस (सचेतन) में हम बिना धारणा बनाए विचारों को देखते हैं, जिससे भावनात्मक संतुलन में सुधार होता है.
यह एक सीबीटी टेक्नीक है जिसमें मूड को बेहतर बनाने और एंग्ज़ाइटी कम करने में सार्थक गतिविधियों और खुद को पुरस्कृत करने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है.
एंग्ज़ाइटी विकार के लिए एक्सपोज़र थेरेपी सीबीटी का एक मुख्य तत्व है, जिसमें ख़तरनाक हालात, विचारों, संवेदनाओं और भावनाओं का धीरे धीरे सामना किया जाता है ताकि टाल जाने वाले व्यवहार में कमी लाने और सहन करने की क्षमता बढ़ाई जा सके.
सीबीटी में विभिन्न प्रचार की रिलैक्सेशन और तनाव कम करने वाली तकनीक होती हैं ताकि नर्वस सिस्टम को शांत किया जा सके और आम एंग्ज़ाइटी को मैनेज किया जा सके.
डायरी या विचारों का रिकॉर्ड रखने से हमें नकारात्मक भावनाओं पर नज़र रखने और उनके ढर्रे को पहचानने में मदद मिल सकती है.
इसमें नकारात्मक विचार वाले ढर्रे पर कड़ी नज़र रखी जाती है और उनके बारे में मददगार और यथार्थवादी तरीक़े से पुनर्विचार किया जाता है.
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सर्ट्रेलाइन (इसका एक ब्रांड है लस्ट्रल) और फ़्लूऑक्सेटिन (इसका एक ब्रांड है प्रोज़ैक) जैसी सेलेक्टिव सेरोटोनिन रीअपटेक इनहिबिटर (एसएसआरआई) दवाएं मस्तिष्क में सेरोटोनिन के स्तर को संतुलित करने में मदद करती हैं.
सेरोटोनिन एक केमिकल है जो मूड और भावनाएं नियंत्रित करता है. इसकी कमी से एंग्ज़ाइटी और डिप्रेशन होता है. एसएसआरआई दवाएं मस्तिष्क में सेरोटोनिन तेज़ी से अवशोषित होने को रोकती हैं जिससे ज़रूरी सेरोटोनिन उपलब्ध रहता है.
फुओंग ली सलाह देते हैं कि इन दवाओं के साथ अन्य तरीके भी आज़माने चाहिए.
उनके अनुसार, "इनमें सीबीटी, जीवनशैली में बदलाव जैसे व्यायाम और नियंत्रित भोजन, सचेतन और रिलैक्सेशन टेक्नीक और तनाव कम करने वाले तरीक़े शामिल हैं."
उनका कहना है कि दवाओं से हर किसी को फ़ायदा नहीं होगा, "कई लोगों के लिए, एंटीडिप्रेसेंट (जिसमें एसएसआरआई दवाएं शामिल हैं) जैसी दवाएं मूड को सुधारने और एंग्ज़ाइटी का सामना करने में मदद कर सकती हैं."
उनका कहना है कि ये दवाएं डॉक्टर की सलाह पर लेनी चाहिए क्योंकि वे ही बता सकते हैं कि ये काम कैसे करती हैं और इसके साइड इफ़ेक्ट्स क्या हैं. और आपकी ज़रूरत के मुताबिक़ सबसे अच्छा तरीक़ा खोजने में मदद कर सकते हैं.
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फुओंग ली का कहना है कि युवा पीढ़ी में चिंता में बढ़ोत्तरी को अक्सर कमज़ोरी समझ लिया जाता है. हालांकि अच्छी बात है कि अधिक जागरूकता और मदद लेने की इच्छा की वजह से संख्या अधिक दिखती है.
अत्यधिक सूचनाएं, सोशल मीडिया, पढ़ाई का तनाव और सामाजिक बदलाव विशेष रूप से नौजवानों को प्रभावित करते हैं.
फुओंग ली इस बात पर ज़ोर देते हैं कि तथ्यों के साथ एंग्ज़ाइटी के बारे में ग़लतफ़हमियों को दूर किया जाना चाहिए. एक आम धारणा है कि एंग्ज़ाइटी में बहुत अधिक प्रतिक्रिया देना या ज़रूरत से अधिक चिंता करना आता है.
वो कहते हैं, "सच्चाई यह है कि एंग्ज़ाइटी विकार गंभीर बीमारी है जिसमें थोड़ी देर की चिंता या डर के अलावा बहुत कुछ होता है. इसमें दिमाग के काम करने का तरीक़ा और उसकी प्रकृति में बदलाव भी हो सकता है."
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एक और ग़लतफ़हमी है कि कमज़ोर लोग ही बेचैन होते हैं. सच्चाई यह है कि यह किसी को भी प्रभावित कर सकता है और अक्सर इसके पीछे जैविक, पर्यावरणीय और अनुवांशिक वजहें होती हैं.
वह इस धारण के बारे में भी चेताते हैं कि बहुत से लोगों में एंग्ज़ाइटी अपने आप चली जाती है.
उनके मुताबिक़, "बिना इलाज के एंग्ज़ाइटी लंबे समय तक रह सकती है और समय के साथ और बदतर हो सकती है, जबकि इलाज से इसमें काफ़ी सुधार हो सकता है."
हालांकि इलाज एक विकल्प है लेकिन यही एकमात्र प्रभावी इलाज है, यह धारणा भी ग़लत है.
मनोचिकित्सा, लाइफ़स्टाइल में बदलाव और अन्य अभ्यास को शामिल करना प्रभावी तरीक़े हैं.
एक और ग़लत धारणा है कि एंग्ज़ाइटी के बारे में चर्चा करने से यह और बढ़ जाती है, जबकि इससे समझने में आसानी होती है, सपोर्ट मिलता है और व्यक्तियों को मदद लेने के लिए प्रोत्साहन मिलता है और वे अलग थलग महसूस नहीं करते.
फुओंग ली का कहना है कि एक और मिथ ये है कि एंग्ज़ाइटी विकार किसी किसी को होता है. जबकि यह सबसे आम मानसिक विकार की श्रेणी में आता है और इससे शरीर में कई लक्षण पैदा होते हैं जिससे पूरा शरीर प्रभावित होता है.