बाबिल का एक वीडियो वायरल हो रहा है जिस पर उनकी टीम ने सफ़ाई दी है
By: demonews
May 17, 20253 hours ago
बीते रविवार यानी तीन मई की शाम को लंदन में 'यूके एशियन फ़िल्म फ़ेस्टिवल' में निर्माता शूजित सरकार की फ़िल्म 'द उमेश क्रॉनिकल्स' का प्रीमियर था.
इस फ़िल्म में अमिताभ बच्चन और दिवंगत इरफ़ान ख़ान के होनहार माने जा रहे बेटे बाबिल ख़ान का छोटा मगर अहम रोल है.
फ़िल्म में एक मार्मिक सीन में अमिताभ और बाबिल आमने-सामने आते हैं. डायलॉग नहीं है मगर वो सीन एक एहसास था, जिसने फ़िल्म पीकू में अमिताभ-इरफ़ान के सीन की याद दिला दी.
स्क्रीनिंग के बाद निर्देशिका पूजा कौल के साथ मेरी बातचीत हुई तो उन्होंने बाबिल की तारीफ़ करते हुए कहा कि अपने पिता इरफ़ान की ही तरह, वो बेहद गहरे और प्रतिभाशाली हैं.
इमेज कैप्शन,बाबिल मशहूर एक्टर इरफ़ान के बेटे हैं
इस वायरल वीडियो को देखकर एक झटका-सा लगा. ये वो बाबिल नहीं थे जो कुछ घंटे पहले पर्दे पर चमक रहे थे और उम्मीद जगा रहे थे. ये कोई और था टूटा हुआ, बिखरा हुआ सा.
वीडियो में बाबिल तक़रीबन इमोशनल ब्रेकडाउन की हालत में, बॉलीवुड के लिए बेहद सख़्त और तीखे शब्द इस्तेमाल कर रहे थे. उनकी हर बात जैसे कोई अंदरूनी घाव उजागर करती महसूस हो रही थी.
इमेज स्रोत,Getty Images
इस मामले में बुनियादी रूप से दो सवाल सबसे ज़्यादा अहम हैं. पहला- नेपोटिज़्म की बहस, जो एक बार फिर सिर उठाकर खड़ी हो गई है.
बाबिल ने जिन नामों का ज़िक्र किया, उनमें ज़्यादातर फ़िल्मी परिवारों से हैं. तो क्या बाबिल उस "कैंप" का हिस्सा नहीं बन पाए और यही उनकी मुश्किलों का कारण है?
दूसरा सवाल बाबिल की मानसिक स्थिति से जुड़ा हुआ है. वीडियो देखने के बाद कई लोगों ने कहा, ये सिर्फ़ ग़ुस्सा नहीं था बल्कि एक टूटा हुआ मन था, जो मदद के लिए पुकार रहा था. सोशल मीडिया पर लोग उनके लिए फ़िक्रमंद हो उठे. सवाल पूछे जा रहे हैं- क्या बाबिल अंदर ही अंदर घुट रहे हैं?
इस वीडियो से उठे हंगामे को समझने के लिए इन्हीं दो सवालों पर बात करना ज़रूरी है.
वायरल वीडियो के बाद कई लोग कह रहे हैं कि बाबिल बॉलीवुड के कैंप्स और भाई-भतीजावाद से टूटे हैं. लेकिन इस बहस में एक कड़वी सच्चाई ये भी है कि बाबिल ख़ुद उसी व्यवस्था का हिस्सा हैं.
बाबिल ख़ुद भी उसी नेपोटिज़्म से फ़ायदा उठा चुके हैं. वो एक मशहूर एक्टर इरफ़ान के बेटे हैं.
वो इरफ़ान जिन्होंने वर्षों तक कड़ा संघर्ष किया और तब जाकर अपना मका़म बना पाए. शायद उसी विरासत के चलते बाबिल को इंडस्ट्री में वो शुरुआती जगह मिली, जो सैकड़ों प्रतिभावान कलाकारों को सालों की मशक्कत के बाद भी नहीं मिलती.
बात ये नहीं कि नेपोटिज़्म नहीं है. बात ये है कि क्या हम हर उलझन की जड़ वहीं तलाशते रहेंगे?
ये बात सही है कि सिनेमा की दुनिया को मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को लेकर संवेदनशील होना चाहिए, लेकिन दुर्भाग्यवश हमारा पूरा समाज ही इस संवेदनशीलता से बहुत दूर है. और फ़िल्म इंडस्ट्री जो पहले ही भारी दबाव, अनिश्चितता और लगातार तुलना से भरी दुनिया है, वो मानसिक स्वास्थ्य के लिहाज़ से एक बेहद चुनौतीपूर्ण जगह बन जाती है.
सच्चाई यही है कि यह इंडस्ट्री हमेशा से ही कड़ी प्रतिस्पर्धा से भरी रही है और शायद आगे भी रहेगी. इसलिए बाबिल के हालिया व्यवहार को सिर्फ़ इंडस्ट्री की साज़िशों या भाई-भतीजावाद के चश्मे से देखना ग़लत होगा.
इमेज स्रोत,Getty Images