देश की राजधानी में जनता का दम घुट रहा है। लोगों ने घरों से बाहर निकलना छोड़ दिया है। सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद भी पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने पर रोक नहीं लग पाई है। दरअसल, दिल्लीवासियों को इन दिनों भारी प्रदूषण का सामना करना पड़ रहा है। राजधानी की हवा खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है।
By: Arvind Mishra
Oct 30, 202510:15 AM
नई दिल्ली। स्टार समाचार वेब
देश की राजधानी में जनता का दम घुट रहा है। लोगों ने घरों से बाहर निकलना छोड़ दिया है। सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद भी पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने पर रोक नहीं लग पाई है। दरअसल, दिल्लीवासियों को इन दिनों भारी प्रदूषण का सामना करना पड़ रहा है। राजधानी की हवा खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, गुरुवार सुबह आनंद विहार का एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) 409 दर्ज किया गया, जो गंभीर श्रेणी में आता है। इलाके में धुंध की मोटी परत छाई हुई है और दृश्यता बेहद कम हो गई है। लोधी रोड पर भी हवा की गुणवत्ता बेहद खराब हो गई है, जहां एक्यूआई 325 रिकॉर्ड किया गया है। प्रदूषण को कम करने के लिए यहां ट्रक-माउंटेड वॉटर स्प्रिंकलर तैनात किए गए हैं।
एम्स के आसपास भी हालत खराब है। यहां ड्रोन विजुअल्स में चारों ओर धुंध की मोटी परत नजर आ रही है। सीपीसीबी के आंकड़ों के मुताबिक, इस इलाके में एक्यूआई 276 दर्ज किया गया है, जो खराब श्रेणी में आता है। इंडिया गेट के पास भी हवा की स्थिति चिंताजनक है। यहां एक्यूआई 319 रिकॉर्ड किया गया, जो बहुत खराब श्रेणी में है। वहीं, आईटीओ क्षेत्र में एक्यूआई 359 तक पहुंच गया है, जिससे आम लोगों को आंखों में जलन और सांस लेने में परेशानी की शिकायतें बढ़ने लगी हैं।
इधर, 2022 में भारत में मानव-जनित पीएम 2.5 प्रदूषण के कारण 17 लाख से अधिक लोगों की मौत हुई। यह चौंकाने वाला आंकड़ा स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन पर लैंसेट की एक रिपोर्ट में सामने आया है। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण 2024 में प्रत्येक व्यक्ति ने लगभग सात दिन अतिरिक्त लू वाले दिनों का सामना किया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि मानव-जनित पीएम 2.5 प्रदूषण 2022 में भारत में 17,18,000 मौतों के लिए जिम्मेदार था, जो 2010 से 38 प्रतिशत अधिक है। 2020-2024 के दौरान, भारत में प्रति वर्ष औसतन 10,200 मौतें जंगल की आग से होने वाले पीएम 2.5 प्रदूषण के कारण हुईं, जो 2003-2012 की दरों से 28 प्रतिशत अधिक है। वहीं, जीवाश्म ईंधन के कारण 7,52,000 (44 प्रतिशत) मौतें हुईं। सड़क परिवहन के लिए पेट्रोल के उपयोग से 2.69 लाख मौतें हुईं ।