इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा की कैश कांड केस में मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं। उनके खिलाफ लोकसभा में अध्यक्ष ने महाभियोग प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। दावा किया जा रहा है कि प्रस्ताव पर 146 सदस्यों ने हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों के नेता शामिल है।
By: Arvind Mishra
Aug 12, 2025just now
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा की कैश कांड केस में मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं। उनके खिलाफ लोकसभा में अध्यक्ष ने महाभियोग प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। दावा किया जा रहा है कि प्रस्ताव पर 146 सदस्यों ने हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों के नेता शामिल है। दरअसल, भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे जस्टिस वर्मा के खिलाफ लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया है। साथ एक कमेटी के गठन का एलान किया है। इसी के साथ जस्टिस वर्मा के महाभियोग की प्रक्रिया शुरू हो गई है। तीन सदस्यीय कमेटी में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरविंद कुमार, मद्रास हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस मनिंद्र मोहन श्रीवास्तव और कर्नाटक हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता वीबी आचार्य शामिल हैं। अध्यक्ष ने कहा कि मुझे यह प्रस्ताव नियमों के अनुरूप मिला है जिसके बाद मैंने इस कमेटी का गठन किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस यशवंत वर्मा की उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें उन्होंने इन-हाउस जांच रिपोर्ट को चुनौती दी थी। इस रिपोर्ट में उनके पद से हटाने की सिफारिश की गई थी। मामला उस समय सुर्खियों में आया था जब इस साल की शुरुआत में जस्टिस वर्मा के आवास से बड़ी मात्रा में नकदी बरामद की गई थी। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने कहा कि इन-हाउस कमेटी का गठन और जांच प्रक्रिया में कोई गैरकानूनी पहलू नहीं पाया गया। कोर्ट ने साफ किया कि कमेटी की कार्यवाही संविधान के दायरे में रही है।
दरअसल, 14 मार्च को जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास में आग लग गई थी। वे तब दिल्ली हाईकोर्ट में थे। जहां दिल्ली फायर सर्विस की टीम उनके घर पहुंची। फायर ब्रिगेड ने आग पर तो काबू पा लिया, लेकिन इसके बाद चौंकाने वाला नजारा देखने को मिला। वर्मा के स्टोर रूम से 500-500 रुपए के जले हुए नोटों के बंडल मिले, जो कि बोरे में भरकर रखे गए थे।जस्टिस वर्मा ने कहा था कि उनके घर या स्टोर में नकदी नहीं थी। उन्हें साजिश के तहत फंसाया जा रहा है। इसके बाद 28 मार्च को जस्टिस वर्मा का ट्रांसफर इलाहाबाद हाईकोर्ट में कर दिया गया।
किसी हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के जज को हटाने के लिए संसद के दोनों सदनों में से किसी में भी महाभियोग प्रस्ताव लाया जा सकता है। महाभियोग प्रस्ताव सबसे पहले राज्यसभा के सभापति या लोकसभा स्पीकर के सामने पेश किया जाता है, फिर प्रस्ताव की जांच के लिए कमेटी का गठन किया जाता है। इसमें सुप्रीम कोर्ट के जज, हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और विशिष्ट विधि विशेषज्ञ को शामिल किया जाता है।