तेलंगाना की रेवंत सरकार को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है। कोर्ट ने सरकार की उस अर्जी को खारिज कर दिया जिसमें अन्य पिछड़ा वर्ग, या ओबीसी, समुदायों के लिए बढ़े हुए आरक्षण पर हाई कोर्ट के अंतरिम स्टे को चुनौती दी गई थी।
By: Arvind Mishra
Oct 16, 20254 hours ago
नई दिल्ली। स्टार समाचार वेब
तेलंगाना की रेवंत सरकार को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है। कोर्ट ने सरकार की उस अर्जी को खारिज कर दिया जिसमें अन्य पिछड़ा वर्ग, या ओबीसी, समुदायों के लिए बढ़े हुए आरक्षण पर हाई कोर्ट के अंतरिम स्टे को चुनौती दी गई थी। दरअसल, तेलंगाना सरकार ने राज्य में ओबीसी के लिए आरक्षण सीमा को बढ़ाकर 50 फीसदी कर दिया था। सरकार के इस फैसले को इससे पहले तेलंगाना हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। हालांकि, हाईकोर्ट ने सरकार के इस फैसले पर अंतरिम रोक लगा दी थी। इसके बाद सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। लेकिन यहां से भी सरकार को झटका लगा। हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इंकार करने के साथ सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की याचिका को खारिज कर दिया। साथ ही कहा- जाति आधारित आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक नहीं की जा सकती है। इस बात का ध्यान रखना होगा। गौरतलब है कि 1992 के इंदिरा साहनी केस में सुप्रीम कोर्ट ने जातिगत आरक्षण को 50 प्रतिशत कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान राज्य ने तर्क दिया कि कोटा बढ़ाने का उद्देश्य लोकल बॉडी चुनावों के लिए ओबीसी को 42 फीसदी आरक्षण देना है। राज्य सरकार ने अपने फैसले को एक सही पॉलीसी करार दिया। राज्य सरकार की ओर से पेश वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि सभी पार्टियों का एकमत प्रस्ताव इस पॉलिसी का समर्थन करता है। बिना दलील के इस पर रोक कैसे लगाई जा सकती है।
सिंघवी ने जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ से कहा कि ये लोग कौन होते हैं बिना दलील के रोक लगाने वाले, जब इसे विधानसभा ने सर्वसम्मति से पास किया था। हालांकि, राज्य सरकार के दलील के बाद भी सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज कर दिया। अब हाईकोर्ट की ओर से आरक्षण बढ़ाने के फैसले पर लागू ये अंतरिम आदेश जारी रहेगा। हाईकोर्ट ने 9 अक्टूबर को इस मामले में सुनवाई की थी और राज्य सरकार से 4 हफ्ते में जवाब मांगा था।
तेलंगाना सरकार ने हाल में ही ओबीसी को मिलने वाले आरक्षण की सीमा को बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दिया था। विधानसभा में इसको लेकर एक प्रस्ताव भी लाया गया था। इसको विधानसभा से पारित कर दिया गया। हालांकि, कांग्रेस सरकार के इस कदम के खिलाफ हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई और आरक्षण सीमा को बढ़ाने को चुनौती दी गई। इस मामले में जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने राज्य सरकार की अर्जी को खारिज कर दिया।