जगदीप धनखड़ ने पिछले दिनों देश के उपराष्ट्रपति के पद से इस्तीफा दे दिया। धनखड़ के इस फैसले ने देश की राजनीति में एक नई चर्चा को जन्म दे दिया। पूर्व उपराष्ट्रपति के इस्तीफे के बाद सियासी पारा हाई है। इस बीच एक बड़ी खबर सामने आई है।
By: Arvind Mishra
Jul 25, 202522 hours ago
जगदीप धनखड़ ने पिछले दिनों देश के उपराष्ट्रपति के पद से इस्तीफा दे दिया। धनखड़ के इस फैसले ने देश की राजनीति में एक नई चर्चा को जन्म दे दिया। पूर्व उपराष्ट्रपति के इस्तीफे के बाद सियासी पारा हाई है। इस बीच एक बड़ी खबर सामने आई है। दरअसल, जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के तीन दिन दिन बाद उनके सचिवालय को बंद कर दिया है। इसके अलावा उनके साथ काम करने वाले कई अधिकारियों को उनके मूल कैडर भी भेज दिया गया है। हालांकि, अधिकारियों द्वारा स्पष्ट किया है कि उपराष्ट्रपति भवन के किसी भी कमरे को सील नहीं किया गया है। धनखड़ का अचानक इस्तीफा देना जितना चौंकाने वाला था, उतना ही कई राजनीतिक संकेतों से जुड़ा हुआ भी दिखा। उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए अपना पद छोड़ा, लेकिन जिस तेजी से इस्तीफे के बाद सचिवालय खाली कराया गया और अधिकारी हटाए गए, उससे यह स्पष्ट हुआ कि यह कदम कई दिनों से तैयारी में था। यह सिर्फ स्वास्थ्य का मामला नहीं, बल्कि सत्ता के गलियारों में गहराती खींचतान का परिणाम भी प्रतीत होता है। नवनिर्मित उपराष्ट्रपति एन्क्लेव जहां कभी सत्ता का दूसरा सबसे बड़ा पद सुशोभित था, अब सन्नाटा ओढ़े हुए है। अधिकतर अफसरों को उनके मूल कैडर में वापस भेज दिया गया। चाबियां सौंप दी गईं और एन्क्लेव को एक प्रतीकात्मक विराम दे दिया गया।
धनखड़ के इस्तीफे के बाद न तो सत्ता पक्ष और न ही विपक्ष ने कोई विशेष सहानुभूति दिखाई। मल्लिकार्जुन खड़गे, शरद पवार जैसे विपक्षी नेता उनसे मिलना चाहते थे, लेकिन उन्होंने किसी को समय नहीं दिया. विपक्ष के साथ उनके संबंध पहले ही विवादों से भरे थे। राहुल गांधी ने तो उनकी भूमिका को पक्षपातपूर्ण करार दिया था, जिससे वे हमेशा एक टकराव की स्थिति में रहे।
धनखड़ ने अपने पत्र में स्वास्थ्य देखभाल को इस्तीफे का कारण बताया, लेकिन अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक उनके पास कोई विकल्प नहीं था। सत्ता के केंद्र में बने रहने के लिए सत्ता के साथ तालमेल जरूरी होता है, और धनखड़ इस संतुलन को खो चुके थे। सरकार के भीतर की नीतिगत असहमतियां उनके विरुद्ध लामबंदी में बदल गईं।