अंतर्राष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी दिवस 2025 पर जानें क्यों ईमानदारी और निर्भयता से जीना बनता जा रहा है चुनौतीपूर्ण। भ्रष्टाचार के प्रभाव, समाज और सरकार पर असर और जागरूक नागरिक की जिम्मेदारी पर लेख।
By: Ajay Tiwari
Dec 04, 202512:19 PM
डॉ. प्रितम भि. गेडाम
जब कोई व्यक्ति भ्रष्टाचार करता है तब वह केवल अपना स्वार्थ साबित नहीं करता, बल्कि वह किसी अन्य का हक अनुचित तरीके से छिनता है, देश के विकास और सुव्यवस्था में अड़चने पैदा करता है, समाज में अपराध के बीज बोता है, साथ ही अन्याय करके पीड़ितों के सपनों को कुचलता है, जिसका असर संपूर्ण अर्थव्यवस्था पर पड़ता है, भ्रष्टाचार के कारण कई बार पूरे समाज को दशकों तक दुःख-दर्द झेलना पड़ता हैं। भ्रष्टाचार के कारण असंख्य मासूम जिंदगियां बर्बाद हो जाती है, संघर्षमय जीवन का चक्र अतितीव्र होते जाता हैं। सभी नागरिकों को विकसित होने का मौका मिलता है, समाज के हर वर्ग को मुख्य धारा में लाने के लिए सरकार प्रयत्नशील रहती हैं। कानून और सरकारी यंत्रणा इसके मजबूत स्तंभ है, जो हर पायदान पर नागरिकों के अधिकारों, सरकारी कार्यों एवं उपक्रमों का योग्य क्रियान्वयन कर विकास की नित नहीं कहानी लिखते हैं। अगर इस सुशासन में एक भी कड़ी अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ कर खुद के स्वार्थ के लिए कार्य करने लगे तो, संबंधित अनेक विभागों के लिए वह नासूर का काम करता है और धीरे-धीरे पूरे विभाग को खोखला कर देता हैं। ऐसा भ्रष्ट सरकारी कर्मचारी या पदाधिकारी समाज, सरकार, देश और समस्त मानवजाती का दुश्मन होता हैं। बहुत बार खबरों में देश के कई मामूली सरकारी कर्मचारी, नेता धनकुबेर जैसे अरबों का धन छुपाये बैठे है, ऐसा पता चलता हैं।
हमारा समाज और हम आधुनिकता का दम भरने वाले निकृष्ट सोच वाली विचारधारा के लोग किस विश्वसनीयता के स्तर पर आ गए है? मौलिकता, नैतिकता, सहजता, जागरूकता, नीतिमत्ता, निस्वार्थता, परोपकारिता, संस्कारशीलता, ईमानदारी को छोड़कर बुराई, कपट और स्वार्थ प्रवृत्ति को तेजी से अपना रहे हैं। लोगों की सोच ऐसी बन गई है कि, अनुचित कार्य या अपराध होने पर भी लोग अपराधी का पक्ष लेने के लिए उतारू हो जाते हैं। कुछ दिन पूर्व मैं एक शख्स से मिला, उस शख्स ने पैसे को लेकर अपने विचार मुझसे साझा किये, उन्होंने कहा कि, पैसा ही भगवान है, पैसा ही सब कुछ है, चाहे वह किसी भी मार्ग से आये, पैसे से इज्जत, शोहरत, नाम होता है, हर चीज खरीद सकते है, हर कोई अपने स्वार्थ के लिए जी रहा है, तो हम क्यों ईमानदारी दिखाए? कोई नहीं पूछता कि पैसा किस मार्ग से कमाया, पैसे के लिए अपराध करों, जेल जाओ, सजा भुगतो, लेकिन पैसा आने के बाद लोग आपके अपराध भी भूल जाते है, उन्हें सिर्फ पैसा दिखाई देता हैं। लोगों की इतनी खराब सोच तो सीधे-सीधे देश में कानून व्यवस्था को झुठलाकर अपराधीकरण को बढ़ावा देनेवाली है, ऐसे में तो हर ओर जंगलराज स्थापित होगा। आज देश में इस प्रकार के विचारधारा के लोगों की तादाद तेजी से बढ़ रही हैं। देश में हम कई बार देखते है कि चुनाव में संगीन गुनाहों के अपराधी उम्मीदवार को भी जनता चुनकर लाती है और दूसरी ओर उच्च शिक्षित निरपराध ईमानदार समाजसेवी उम्मीदवार की जमानत भी जप्त हो जाती हैं।
हमारे आसपास समस्याओं का अंबार लगा है, अक्सर भ्रष्टाचार और अनियमितता का बोलबाला हर ओर हम देखते है, अधिकतर लोग बुराई के खिलाफ आवाज उठाना पसंद नहीं करते। सरकारी अधिकारियों और ठेकेदारों की गैर जिम्मेदाराना हरकतों के कारण बहुत बार हादसे भी होते है, जिसमे जान-माल का भारी नुकसान होता हैं। हर साल देखते है कि, पहली बरसात में ही सड़कें सरकारी दावों की पोल खोल देती हैं। अरबों रुपये खर्च करके चलने वाली योजनाएं कुछ समय में ही दम तोड़ देती है, तय समयावधि में काम पुरे नहीं होते और उस कार्य का बजट बढ़ते जाता हैं। देश में आर्थिक विषमता की दूरी लगातार बढ़ ही रही हैं। अपने फायदे के लिए पार्टियां बदलने वाले राजनीतिक नेता दूसरों पर दोष मढ़ते हैं। सरकार के एक भी महत्वपूर्ण निर्णय लेने में देरी अनेक बार मासूमो की जान ले लेती है, भले ही मरने के बाद मृतक के परिवार को थोडासी आर्थिक सहायता दी जाती हो, परंतु मृतक की जान तो लौटकर नहीं आती हैं। हमारे देश में जितने गरीब किसान आत्महत्या करते है उतने किसी भी दूसरे देश में आत्महत्या नहीं करते, इसके मुकाबले कोई भी अन्य पेशेवर व्यवसायी भी इतनी बड़ी संख्या में आत्महत्याएं नहीं करते। चाहे कितने ही घोटाले या आपराधिक गतिविधियों में नाम आ जाए फिर भी देश को चलाने वाले नेता लोग इतना तनाव भी नहीं लेते कि आत्महत्या करनी पड़े।
ईमानदार व्यक्ति के हाथों अनजाने में छोटी सी भूल भी हो जाये तो बहुत पछतावा महसूस करते है, परंतु अनुचित तरीके से लाभ प्राप्त करने वाले भ्रष्ट लोग सुकून से जी कैसे लेते है? लोगों से नजरे मिलाकर स्वाभिमान से बात कैसे कर लेते है? परिवार, रिश्ते, अपनों के सामने आदर्श कैसे स्थापित करते है? क्या लोगों का जमीर मर चुका है? वस्तुएं, सेवाएं, रिश्ते-नाते में भी अब मिलावट नजर आता है, कब कौन धोखा दे जाये, कह नहीं सकते। आत्मसन्मान, इंसानियत, ईमानदारी, कर्तव्यपरायणता, सामाजिक जिम्मेदारी, नैतिकता का कोई मोल नहीं बचा? लोगों को दुख देकर बदले में हम अपना सुख खरीद नहीं सकते। सुकून भरी नींद, स्वाभाविक खुशी, निस्वार्थ प्रेम, मानसिक शांति और समाधानी मन से बढ़कर जीवन में कुछ अन्य की जरुरत नही है, यही असली आनंद है, जो हमें अपने आचरण द्वारा प्राप्त होता हैं। रोजाना अखबार और समाचार चैनलों पर बड़ी मात्रा में भ्रष्टाचार की खबरे रहती हैं। हम सभी अपने जीवन में कभी न कभी भ्रष्टाचार का दंश झेलते हुए आगे बढे है, भ्रष्टता सम्पूर्ण व्यवस्था को खत्म करने की ताकत रखती है, अगर इसे सत्ता की ताकत मिल जायें तो उस देश को बर्बादी से कोई नहीं बचा सकता।
लोग जागरूक बनें, अपने अधिकार और कर्तव्य को समझें। इंसान के रूप में जन्म लिया है तो इंसानियत का फर्ज निभाएं। दूसरे का हक छीन कर नहीं बल्कि ईमानदार और परोपकारी की भूमिका निभानी चाहिए। जो व्यक्ति जितने ऊंचे जिम्मेदार पद पर कार्यरत होता है, वह जनता के लिए उतना ही ज्यादा जवाबदेही होता है, जनता उससे नहीं बल्कि उसने जनता से डरना चाहिए, अगर अनुचित कार्य करें तो। जनता अपने कर द्वारा सरकार को आर्थिक ताकत प्रदान करती है, जनता को अधिकार है कि वह जिम्मेदारी अधिकारी या नेताओ को उत्तर मांगे। अपराधी और अनुचित कार्य करने वाले लोग डरकर रहना चाहिए ना कि सभ्य और ईमानदार लोग डर-डर कर जियें। भ्रष्टाचार करनेवाला व्यक्ति तो अपने स्वार्थ के लिए लाभ मांगता है लेकिन लाभ देने वाला व्यक्ति भी अपने स्वार्थ के लिए भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता हैं। अगर लाभ देना ही बंद कर दे तो लाभ मांगेगा किससे भ्रष्टाचारी? भ्रष्टाचार मुक्त वातावरण बनाने की जिम्मेदारी हर नागरिक ने खुद से ही करनी होगी। अपने देश के लिए भले ही थोड़ी तकलीफ सहनी पड़े, लेकिन देश का आनेवाला भविष्य बेहतर होगा, भावी पीढ़ी को उनका हक मिलेगा। राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय स्तर पर सरकार द्वारा भ्रष्टाचार विरोधी शाखाएं जनता के मदद के लिए तत्पर है, उनकी मदद लें। हम उनसे ऑनलाइन हेल्पलाइन नंबर, ईमेल आईडी और वेबसाइट पर संपर्क कर सकते हैं। रिश्वत न दें, न लेने दें, सतर्क रहें। राष्ट्रहित में सहयोग करें।