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चंद्रशेखर आजाद जयंती: एक अमर क्रांतिकारी की शौर्यगाथा | 23 जुलाई को जानें आजाद का बलिदान

23 जुलाई को चंद्रशेखर आजाद जयंती पर पढ़ें भारत के महान क्रांतिकारी की शौर्यगाथा। जानें उनका जीवन, स्वतंत्रता संग्राम में योगदान और "आजाद ही रहा हूँ, आजाद ही मरूँगा" का संकल्प।

By: Ajay Tiwari

Jul 22, 20254:51 PM

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चंद्रशेखर आजाद जयंती: एक अमर क्रांतिकारी की शौर्यगाथा | 23 जुलाई को जानें आजाद का बलिदान

स्टार समाचार वेब. फीचर डेस्क

23 जुलाई को भारत के महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की जयंती मनाई जाती है। यह दिन हमें उस वीर सपूत की याद दिलाता है, जिसने अपनी छोटी सी उम्र में ही देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने का दृढ़ संकल्प लिया और अपने प्राणों की आहुति दे दी। उनका जीवन, संघर्ष और बलिदान आज भी हर भारतीय को देश प्रेम और निडरता की प्रेरणा देता है।

प्रारंभिक जीवन और क्रांतिकारी पथ

23 जुलाई, 1906 को मध्य प्रदेश के भाबरा (अब आजाद नगर) में जन्मे चंद्रशेखर आजाद का मूल नाम चंद्रशेखर तिवारी था। बचपन से ही उनमें निडरता और अन्याय के खिलाफ लड़ने का साहस कूट-कूट कर भरा था। 15 साल की छोटी उम्र में जब उन्हें असहयोग आंदोलन के दौरान गिरफ्तार किया गया, तो उन्होंने मजिस्ट्रेट के सामने अपना नाम "आजाद" और पिता का नाम "स्वतंत्रता" बताया। तभी से वे चंद्रशेखर आजाद के नाम से जाने गए।

उन्होंने जलियांवाला बाग हत्याकांड और ब्रिटिश सरकार के अत्याचारों से आहत होकर क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेना शुरू किया। वे हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) में शामिल हुए और बाद में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के साथ मिलकर इसे हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) में बदल दिया।

प्रमुख क्रांतिकारी गतिविधियाँ

आजाद एक कुशल रणनीतिकार और संगठनकर्ता थे। उन्होंने कई महत्वपूर्ण क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय भूमिका निभाई, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:

  • काकोरी कांड (1925): यह ब्रिटिश राज के खिलाफ एक बड़ा कदम था, जिसमें क्रांतिकारियों ने सरकारी खजाने को लूटा था।

  • लाला लाजपत राय की मौत का बदला: साइमन कमीशन के विरोध के दौरान लाला लाजपत राय पर हुए लाठीचार्ज में उनकी मौत का बदला लेने के लिए आजाद ने भगत सिंह और अन्य साथियों के साथ मिलकर ब्रिटिश पुलिस अधिकारी सॉन्डर्स की हत्या की योजना बनाई।

"आजाद ही रहा हूँ, आजाद ही मरूँगा"

चंद्रशेखर आजाद का दृढ़ संकल्प था कि वे कभी भी जीवित अंग्रेजों के हाथ नहीं आएंगे। 27 फरवरी, 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क (जिसे अब आजाद पार्क के नाम से जाना जाता है) में वे ब्रिटिश पुलिस से घिर गए। उन्होंने बहादुरी से मुकाबला किया और कई पुलिसकर्मियों को मार गिराया। जब उनके पास केवल एक गोली बची, तो उन्होंने उस गोली से खुद को मारकर अपने "आजाद" रहने के वचन को पूरा किया।

विरासत और प्रेरणा

चंद्रशेखर आजाद का बलिदान भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय है। उनकी शहादत ने हजारों युवाओं को देश के लिए कुछ कर गुजरने की प्रेरणा दी। वे केवल एक क्रांतिकारी नहीं, बल्कि एक ऐसे आदर्श थे, जिन्होंने देश प्रेम, साहस और निस्वार्थता का सर्वोच्च उदाहरण प्रस्तुत किया। उनकी जयंती पर हम सभी को उनके आदर्शों को याद करना चाहिए और उनके दिखाए पथ पर चलकर एक मजबूत और समृद्ध भारत के निर्माण में अपना योगदान देना चाहिए।

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