10 जुलाई को गुरु पूर्णिमा के अवसर पर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने गुरुओं के महत्व पर प्रकाश डाला। साथ ही, सिंगरौली की 'किताबों वाली दीदी' ऊषा दुबे और सीहोर के शिक्षक संतोष धनवारे जैसे मध्यप्रदेश के उन शिक्षकों के अभिनव प्रयासों को भी सराहा, जिन्होंने शिक्षा में मील के पत्थर स्थापित किए हैं।
By: Star News
Jul 09, 2025just now
भोपाल: स्टार समाचार वेब
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने 9 जुलाई 2025 को गुरु पूर्णिमा (10 जुलाई) पर गुरुओं के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि गुरु हमें अज्ञान के अंधकार से निकालकर ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाते हैं और भारतीय संस्कृति में गुरु को ईश्वर के समान माना गया है। उनके अनुसार, गुरु का शिक्षा का प्रकाश ही जीवन को सही दिशा दिखाता है। गुरु पूर्णिमा पर शिष्य अपने गुरुओं का पूजन करते हैं और उनका आशीर्वाद लेते हैं।
मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने बताया कि 10 जुलाई से प्रदेश के सभी जिलों में दो दिवसीय गुरु पूर्णिमा उत्सव कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे, जिनमें स्थानीय जनप्रतिनिधि, प्रबुद्ध नागरिक, गुरुजन और साधु-संत शामिल होंगे। यह दिन गुरु-शिष्य परंपरा की समृद्ध विरासत के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने का है। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने मध्यप्रदेश के उन शिक्षकों के उल्लेखनीय कार्यों की सराहना की, जिन्होंने अपने नवाचारों से शिक्षा के क्षेत्र में विशिष्ट पहचान बनाई है।
सिंगरौली के शासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बैढ़न में पदस्थ माध्यमिक शिक्षिका ऊषा दुबे ने एक अनोखी पहल की है। उन्होंने अपनी स्कूटी को 'चलती-फिरती लाइब्रेरी' में बदल दिया और मोहल्लों व गांवों में बच्चों तक किताबें पहुंचाईं। उनके इस प्रयास को बच्चों ने इतना सराहा कि उन्हें प्यार से 'किताबों वाली दीदी' कहने लगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' में उनके इस अभिनव प्रयास की प्रशंसा की है।
ऊषा ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि बच्चों को निरंतर पढ़ाई से जोड़े रखने के लिए उन्हें यह प्रेरणा मिली। उन्होंने गांव-गांव जाकर बच्चों में पढ़ने की आदत (रीडिंग हेबिट्स) विकसित की। उनके लिए यह गौरव का क्षण था जब प्रधानमंत्री ने उनके प्रयास का जिक्र किया। इस सफलता के बाद, उन्होंने गांवों में स्वच्छता जागरूकता के लिए 'साबुन बैंक' भी बनाया, जहाँ बच्चे अपने जन्मदिन पर साबुन दान करते हैं। इससे बच्चों में संस्कार के साथ आदतें भी बदलीं।
सीहोर जिले के भैरूंदा तहसील (नसरूल्लागंज) के माध्यमिक शिक्षक संतोष कुमार धनवारे ने भी अपने क्षेत्र के सैकड़ों बच्चों पर सफल प्रयोग किए हैं। वे छात्रों का जीवन संवारने और भविष्य बनाने के लिए लगातार प्रयास करते रहते हैं। उन्होंने बच्चों के लिए सपनों की डायरी, टीचिंग लर्निंग मटेरियल, फ्लैश कार्ड और पोर्टफोलियो तैयार किए हैं।
धनवारे ने बताया कि उन्होंने अपनी पदस्थापना वाले सरकारी स्कूलों में बच्चों के साथ घुल-मिलकर काम किया और पालकों के साथ भी संवाद स्थापित किया। उनकी सिखाने की कला ने टाटा ट्रस्ट के 'पराग' द्वारा प्रकाशित पत्रिका में भी जगह बनाई। उन्होंने अपने खर्च पर विद्यालय का वातावरण चित्रकला और रंगरोगन से बदला, जिसके परिणामस्वरूप शासन ने उनके स्कूल के विकास के लिए 5 लाख रुपये की राशि प्रदान की। उनके पढ़ाए हुए बच्चे आज जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों में सफल हो रहे हैं। उनका मानना है कि बच्चे कच्ची मिट्टी के समान होते हैं, जिन्हें एक अच्छा शिक्षक अपने परिश्रम से सही सांचे में ढाल सकता है।