हिंदी साहित्य के दिग्गज और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित विनोद कुमार शुक्ल का रायपुर एम्स में निधन हो गया। जानें उनके जीवन, प्रमुख उपन्यासों और साहित्यिक योगदान के बारे में।
By: Star News
Dec 23, 20257:03 PM
रायपुर | स्टार समाचार वेब
हिंदी साहित्य जगत के लिए आज का दिन एक अपूरणीय क्षति का है। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित और अपनी विशिष्ट शैली के लिए विख्यात छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल का 89 वर्ष की आयु में निधन हो गया। रायपुर स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में उन्होंने अंतिम सांस ली। सांस लेने में गंभीर तकलीफ के चलते उन्हें 2 दिसंबर को अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहाँ वे वेंटिलेटर सपोर्ट पर थे। मंगलवार को उनके निधन की खबर से साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई है।
1 जनवरी 1937 को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में जन्मे विनोद कुमार शुक्ल ने अध्यापन को अपना पेशा बनाया, लेकिन उनका संपूर्ण जीवन साहित्य को समर्पित रहा। उन्होंने अपनी पहली कविता 'लगभग जयहिंद' वर्ष 1971 में साझा की थी, जिसके बाद वे निरंतर लेखन के माध्यम से पाठकों के दिलों में उतरते चले गए। शुक्ल की लेखन शैली की सबसे बड़ी विशेषता उनकी सरल भाषा और गहरी संवेदनशीलता थी, जिसने आधुनिक मनुष्य की जटिलताओं को लोककथाओं के माध्यम से बड़ी सादगी से पेश किया।
विनोद कुमार शुक्ल के उपन्यासों ने न केवल पाठकों को प्रभावित किया बल्कि सिनेमा को भी नई दृष्टि दी। उनके चर्चित उपन्यास 'नौकर की कमीज' पर प्रसिद्ध फिल्मकार मणि कौल ने फिल्म बनाई थी। वहीं, उनके एक अन्य उपन्यास 'दीवार में एक खिड़की रहती थी' ने उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार दिलाया। 'खिलेगा तो देखेंगे' जैसे उपन्यासों के माध्यम से उन्होंने अपनी पीढ़ी के लेखकों के बीच एक ऐसी मौलिक भाषा गढ़ी, जिसने आलोचना की नई दृष्टियों को प्रेरित किया।
शुक्ल की सृजनशीलता को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, रज़ा पुरस्कार, शिखर सम्मान, राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान और हिन्दी गौरव सम्मान जैसे प्रतिष्ठित अलंकारों से नवाजा गया। वर्ष 2021 में उन्हें साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के सर्वोच्च सम्मान 'महत्तर सदस्य' (Fellowship) के रूप में चुना गया था। उन्हें मातृभूमि पुरस्कार और दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान से भी सम्मानित किया गया।
विनोद कुमार शुक्ल भले ही आज हमारे बीच शारीरिक रूप से मौजूद नहीं हैं, लेकिन उनकी उत्कृष्ट सृजनशीलता और भाषिक बनावट आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मार्गदर्शक स्तंभ के रूप में जीवित रहेगी।