सीधी जिले में अवैध लकड़ी कटाई और फर्नीचर कारोबार पर वन विभाग की मौन सहमति से सवाल खड़े हो रहे हैं। आरा मशीनों और फर्नीचर दुकानों पर कभी दबिश नहीं पड़ती, न ही आकस्मिक जांच होती है। अवैध कटाई, रेत-मुरुम उत्खनन और वन्यजीव असुरक्षा जैसी घटनाएं बढ़ रही हैं। विभागीय लापरवाही और आर्थिक गठजोड़ पर गंभीर आरोप लगे हैं।
By: Yogesh Patel
Sep 03, 20259:53 PM
हाइलाइट्स
सीधी, स्टार समाचार वेब
बीते कुछ दशकों से सीधी जिले में अवैध लकड़ी कटाई से लेकर उस वेश कीमती लकड़ी का आरा मशीनों में चीरा जाना और उसके उपरांत फर्नीचर की दुकानों में उसका वेश कीमती फर्नीचर बनाकर अवैध तरीके से बेचे जाने को लेकर वन विभाग की मौन सहमति देखी जाती रही है। वनमण्डल सीधी द्वारा वनों की सुरक्षा के दावे चाहे जितने किए जाएं लेकिन हकीकत ये है कि वनो की सुरक्षा में आंख मूंदकर कोताही बरती जा रही है। अवैध रूप से वृक्षों की कटाई, गौण खनिज रेत, मुरुम का अवैध परिवहन, वन्य प्राणियों की असुरक्षा व गर्मी के आते ही वनों में आगजनी की घटनाएं अक्सर होती हैं। विभाग की ओर से रेंज अफसरों को सुरक्षा के लिए हथियार भी दिए गए हैं इसके बावजूद लोगों में धरपकड़ का भय नहीं है। इसका कारण ये है कि वनों में न तो अमला मौजूद रहता है और न सर्चिंग पेट्रोलिंग आदि होती है। बीट गार्डों के भरोसे वन परिक्षेत्र रहता है। अधिकारियों को सीधी कार्यालय के चक्करों से फुरसत नहीं मिलती है। वनों की सुरक्षा के लिए शासन ने कई कार्ययोजनाएं भी बनाई थीं लेकिन आज तक समुचित ढंग से उनका भी पालन नहीं किया गया। वनों का रात्रिकालीन गश्त नियमित रूप से नहीं होता है। लोगों द्वारा निरंतर वनों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है लेकिन घुसपैठ कहां से और कैसे होती है विभाग ये जानने का भी प्रयास नहीं करता है।
नहीं होती आकस्मिक जांच पड़ताल
वनवृत्त के जंगलों की आकस्मिक जांच पड़ताल करने कई वर्षों पूर्व तक यहां उड़नदस्ता और वाहन उपलब्ध रहता था। दल के अधिकारी समय-समय पर जांच पड़ताल कर धरपकड़ करते रहते थे लेकिन अब न तो उडनदस्ता का पता है और न वाहन का। विभाग ने शायद उड?दस्ता की आवश्यकता समाप्त समझ ली है। दूर दराज तक फैले वनों की बिना आकस्मिक जांच और दविश के लोगों को पकड़ पाना सरल नहीं रहता है। बीटगार्ड तो पूरे वन का भ्रमण भी नहीं कर पाता है, इसके अलावा उससे अन्य कार्य भी लिए जाते हैं। वो वनों की सुरक्षा करने की बजाय डाक ढोता नजर आता है। उसका ग्रामीणों से भी रोजाना संपर्क नहीं हो पाता है उसे अवैध कटाई की जानकारी ही नहीं हो पाती है। यहां इधर कई वर्षों से उड़नदस्ता निष्क्रिय है इसी बात से प्रतीत होता है कि विभाग धरपकड़ के मामले को अधिक गंभीरता से नहीं ले रहा है।
न नाकेबंदी, न धरपकड़
रेत व मुरुम का अवैध उत्खनन करने के बाद माफिया के वाहन शहर की सड़कों की बजाय देहाती रास्तों से निकलते हैं। इनमें वन भूमि भी आती है लेकिन कहीं भी विभाग की नाकेबंदी नहीं रहती है। इसलिए अवैध रेत व मुरुम से लदे वाहन धड़ल्ले से वन सीमाओं को पार करते हुए वाहन निकाल ले जाते हैं। उन्हे रास्ते में वन विभाग का अमला नहीं मिलता है। बताया गया कि जंगली भूमि में लोगों को अच्छी मुरुम मिलती है इसलिए कुछ स्थानो में यहां की भी खुदाई कर परिवहन किया जाता है। रात के समय अधिकांशत: वाहन वन सीमाओं से गुजरते हैं। कुछ वर्षों पूर्व ये निर्णय लिया गया था कि ऐसे सभी मार्गों को चिन्हित कर उनमें नाकेबंदी की जाएगी लेकिन अभी तक न तो नाकेबंदी की गई और न धरपकड़ अभियान चलाया गया।
फर्नीचर की दुकानों में नहीं पड़ती दबिश
सीधी जिले भर में दर्जनों की संख्या में आरा मशीन और सैकड़ों की संख्या में फर्नीचर की दुकानों का का संचालन किया जा रहा है लेकिन वन विभाग के अमले के द्वारा यहां कभी न तो औचक निरीक्षण किया जाता है और न स्टॉक की जांच पड़ताल की जाती है। बताया जाता है कि वनों की अवैध कटाई चलती है और यहीं इमारती लकडिय़ों का व्यापार किया जाता है। नगर के अंदर ही जितने फर्नीचर मार्ट हैं यदि उनके यहां मौजूद लकड़ी का लेखा जोखा लिया जाए तो वे शायद ही खरीदी की वैधानिक रसीदें दिखा पाएंगे। व्यापक पैमाने पर वनों की लकड़ी यहां खप रही है लेकिन विभाग को जैसे चिंता ही नहीं है। सूत्रों का कहना है कि विभागीय अधिकारियों की इन दूकानों से आर्थिक गठजोड़ होने के कारण कार्रवाई करना जरूरी नहीं समझा जाता है।