चित्रकूट के भगवान कामतानाथ मुखारविंद मंदिर की पवित्र भूमि पर अवैध कब्जे का मामला गंभीर होता जा रहा है। करोड़ों हिंदुओं की आस्था से जुड़ी इस जमीन पर मकान और दुकानें खड़ी कर दी गई हैं, जबकि राजस्व अभिलेखों में यह भूमि कलेक्टर प्रबंधक के रूप में दर्ज है। न्यायालय के आदेशों के बावजूद प्रशासन और राजस्व विभाग की निष्क्रियता पर सवाल उठ रहे हैं।
By: Star News
Aug 08, 202522 hours ago
हाइलाइट्स:
सतना, स्टार समाचार वेब
करोड़ों हिंदुओं की आस्था के प्रतीक भगवान कामतानाथ के मंदिर की पवित्र भूमि पर भूमाफियाओं ने मकानों और दुकानों का जाल बिछा दिया है, और चौंकाने वाली बात यह है कि प्रशासन इस सब पर मूक दर्शक बना बैठा है। न्यायालय के स्पष्ट आदेश और जमीन के शासकीय रिकॉर्ड के बावजूद प्रशासन की निष्क्रियता और राजस्व विभाग की संदिग्ध भूमिका ने इस पूरे मामले को बेहद गंभीर बना दिया है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, उक्त आराजी नंबर को सरकारी भूमि घोषित किए जाने की प्रक्रिया के खिलाफ कुछ निजी पक्षों ने न्यायालय में याचिका दाखिल कर रखी है। चौंकाने वाली बात यह है कि इस मुकदमे में राजस्व विभाग के अधिकारी और कर्मचारी न्यायालय में शासन का पक्ष प्रभावी रूप से रखने में नाकाम रहे हैं। जानकारों का कहना है कि यह विफलता केवल लापरवाही नहीं, बल्कि मिलीभगत का हिस्सा प्रतीत होती है।
संतों के आश्रम गिराए माफियाओं पर खामोशी
चित्रकूट के यज्ञवेदी क्षेत्र में निवार्णी अखाड़ा द्वारा 40 वर्ष पूर्व बनाए गए संत-महात्माओं के कमरों को तो अतिक्रमण बताते हुए गिरा दिया गया। यह आश्रम रामदास शास्त्री जैसे संतों की तपस्थली रहा है। लेकिन विडंबना देखिए कि जिन मकानों और दुकानों को असली अतिक्रमण कहा जाना चाहिए, जो भगवान कामतानाथ की आराजी नंबर 1004 पर बने हैं, उन्हें आज तक गिराने की कोई ठोस कार्यवाही नहीं की गई। प्राप्त जानकारी के अनुसार उक्त आराजी पर स्व. यज्ञदर्त्त शर्मा, पुजारी भरत शरण मिश्रा, नीरज मिश्रा, प्रेमचंद्र मिश्रा, मइयादीन यादव, रावेन्द्र गौतम समेत कई लोगों ने मंदिर की जमीन पर अवैध रूप से मकान और दुकानें तनी हैं, जबकि यह भूमि राजस्व अभिलेखों में कलेक्टर प्रबंधक के रूप में दर्ज है। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि कामतानाथ मंदिर में वहीं के पुजारियों ने भी अतिक्रमण कर मकान बना रखा है।
न्यायालय से बार-बार स्थगन आदेश राजस्व विभाग की चुप्पी रहस्यजनक
सूत्रों के अनुसार, मंदिर की आराजी को शासकीय भूमि घोषित किए जाने के खिलाफ न्यायालय में मामला विचाराधीन है। लेकिन हैरान करने वाली बात यह है कि राजस्व विभाग के अधिकारी और कर्मचारी न्यायालय में सरकार का पक्ष प्रभावी ढंग से रखने में पूरी तरह विफल रहे हैं। उनकी निष्क्रियता का ही परिणाम है कि भू-माफियाओं को न्यायालय से स्थगन आदेश (स्टे आॅर्डर) मिल जाता है। यह संयोग नहीं बल्कि एक सुनियोजित साजिश की ओर इशारा करता है । सवाल यह है क्या राजस्व विभाग के कुछ स्थानीय अधिकारी भू-माफियाओं से मिले हुए हैं? स्थानीय लोगों का कहना है कि जब भी राजस्व अधिकारी मौके पर पहुंचने की बात आती है, वे या तो नदारद रहते हैं या फिर महज औपचारिकता निभाकर लौट जाते हैं। ऐसे में भूमाफियाओं को खुली छूट मिल जाती है। इस क्रम में कई स्थायी और पक्के मकान बन चुके हैं, जिनका ध्वस्तीकरण न्यायालय ने आदेशित किया था।
मंदिर की जमीन को ‘थाली में सजाकर’ सौंपने की तैयारी?
स्थानीय लोगों और श्रद्धालुओं का कहना है कि ऐसा प्रतीत होता है कि राजस्व विभाग के कुछ कर्मचारी मंदिर की भूमि को ‘थाली में सजाकर’ निजी हाथों में सौंपने को बेताब हैं। प्रशासन की खामोशी, कार्रवाई में दोहरा मापदंड, और न्यायालय में ढुलमुल पैरवी इस संदेह को और बल देती है। जब करोड़ों हिंदुओं के आस्था के केंद्र कामतानाथ मंदिर की जमीन पर कब्जा हो जाए, और सरकार के नाम दर्ज भूमि पर माफियाओं के मकान तन जाएं, तो यह धार्मिक, सामाजिक और प्रशासनिक दृष्टिकोण से बेहद चिंताजनक है।
तो न्याय और शासन की होगी हार
चित्रकूट की पवित्र भूमि पर हो रहे इस तरह के कृत्य न केवल धार्मिक आस्था का अपमान हैं, बल्कि शासन-प्रशासन की विश्वसनीयता पर भी सीधा हमला हैं। यह मामला अब सिर्फ एक जमीन का नहीं, बल्कि एक धार्मिक विरासत, एक सांस्कृतिक पहचान और करोड़ों आस्थाओं का मामला बन चुका है। अब समय आ गया है कि जिला प्रशासन जागे, राजस्व विभाग अपनी जिम्मेदारी समझे और भगवान कामतानाथ की भूमि को माफियाओं के कब्जे से मुक्त कराया जाए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो यह धर्म, न्याय और शासन तीनों की हार होगी।
सुलगते सवाल?
एक ओर विकास के लिए जमीनों का टोटा तो दूसरी ओर कब्जा
आज जब सरकार चित्रकूट विकास प्राधिकरण गठित कर धर्मनगरी को विकास के पथ पर ले जाने की कवायद कर रही है तो दूसरी ओर यहां विकास के लिए जमीनों का टोटा है। अर्सा पूर्व पर्यटन विभाग का लाइट एंड साउंट प्रोजेक्ट चित्रकूट में इसलिए मूर्तरूप नहीं ले सका था क्योंकि यहां जमीन नहीं मिल सकी थी। एक ओर सरकार के पास जमीन का टोटा है तो दूसरी ओर सार्वजनिक महत्व की जमीनों पर कब्जा है। यह अकेला मामला नहीं है। धर्मनगरी चित्रकूट में जमीनों की लूट खसोट मची हुई है। श्रद्धालुओं की आस्था के केंद्रों पर अवैध कब्जे बढ़ते जा रहे हैं, जिन पर अंकुश लगा पाने में स्ािानीय राजस्व अमला नाकाम साबित हुआ है।