रीवा कलेक्ट्रेट की 3000 स्क्वेयर फीट ज़मीन इंडियन काफी हाउस को मात्र ₹500 के स्टांप पर लीज पर दे दी गई, वो भी बिना खसरा नंबर दर्ज किए। अनुबंध में नियमों की भारी अनदेखी की गई है। प्रशासनिक अफसरों की हड़बड़ी और मनमानी ने पूरे सिस्टम पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
By: Yogesh Patel
Aug 05, 202510 hours ago
हाइलाइट्स
रीवा, स्टार समाचार वेब
करोड़ों की जमीन कौड़ियों के दाम जिला प्रशासन ने इतनी हड़बड़ी में दी कि नियम कायदे ध्यान में नहीं रखे गए। कलेक्टर, एसडीएम खुद दूसरे के प्रकरणों का फैसला करते हैं। जनता को नियम कायदों का पाठ पढ़ाते हैं लेकिन एग्रीमेंट में ही गड़बड़ी कर दी गई। जमीन का रकबा तो दर्ज किया गया लेकिन खसरा नहीं बताया गया। इस गड़बड़ी ने पूरे एग्रीमेंट पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं।
आपको बता दें कि रीव कलेक्ट्रेट की 3 हजार स्क्वेयर फीट जमीन इंडियर काफी हाउस को कौड़ियों के दाम पर दे दी गई। लीज एग्रीमेंट भी सिर्फ 500 रुपए के स्टाम्प पर की गई। इस एग्रीमेंट को इतनी सोची समझी साजिश के तहत किया गया कि इसके अनुबंध शर्तों को ही देखकर कोई भी हैरान रह जाएगा। शर्तों के सारे बिंदू इंडियन काफी हाउस के पक्ष में रखकर लिखे गए हैं। इस अनुबंध में इतनी सारी गड़बड़ियां कि गई है जो अधिकारियों के कार्य प्रणाली पर भी सवाल खड़े करने लगे हैं। अनुबंध में रजिस्ट्रेशन एक्ट 1908 के सेक्शन 21 के अंतर्गत यदि किसी सम्पत्ति का पंजीयन योग्य डीड या अनुबंध किया जाता है तो उसमें पहचान योग्य विवरण जैसे खसरा नंबर, प्लाट नंबर, एरिया, डायरेक्शन, बाउण्ड्री आदि दर्ज करना अनिवार्य होता है। यदि ऐसा नहीं किया जाता तो इसे इंडियन कान्ट्रेक्ट एक्ट 1872 सेक्शन 29 के तहत अवैध माना जाता है। कुल मिलाकर जो अधिकारी लोगों को नियमों का पाठ पढ़ाते हैं। सही गलत ठहराते हैं, वही एग्रीमेंट में नियमों का पालन नहीं कर पाए। इतनी सारी गलतियों के बाद भी आनन फानन में इंडियन काफी हाउस को करोड़ों की जमीन दे दी गई।
पानी, नाली की व्यवस्था सब कलेक्ट्रेट करेगा
अनुबंध में इंडियन काफी हाउस को सारी सुविधाएं मुहैया कराने का एग्रीमेंट सिर्फ 5 हजार रुपए महीने के किराए में किया गया है। इतने कम किराए में दो कमरे का रीवा में मकान नहीं मिलता और मुख्य मार्ग की 3 हजार स्क्वेयर फीट जमीन जिला प्रशासन ने इंडियन काफी हाउस को दे दी गई। इस इंडियन काफी हाउस के आने से रीवा के लोगों को फायदा तो कुछ नहीं हुआ लेकिन जो कीमती जमीन थी, वह भी 15 साल के लिए इनके पास चली गई। हद तो यह है कि इस अनुबंध में कलेक्ट्रेट को ही पानी और ड्रेनेज की भी व्यवस्था करनी है। यदि पानी उपलब्ध नहीं करा पाए तो बोर की भी अनुमति का जिक्र किया गया है। बोर करने का काम इंडियन काफी हाउस में भवन निर्माण के पहले ही कर लिया था।