विधानसभा में रामपुर विधायक विक्रम सिंह के सवाल पर राजस्व मंत्री ने स्वीकार किया कि सतना जिले में अब भी 214 गांव नक्शा विहीन हैं। मंत्री कोई समयसीमा तय नहीं कर पाए, जिससे विपक्ष और सत्ता पक्ष दोनों ने चिंता जताई। नक्शा विहीन गांवों के कारण विकास योजनाएं अटकती हैं और जमीन घोटाले पनपते हैं। क्या अब सरकार ठोस कार्य योजना लाएगी या फिर यह भी एक और वादा बनकर रह जाएगा?
By: Yogesh Patel
Jul 31, 20255:31 PM
हाइलाइट्स:
सतना, स्टार समाचार वेब
विधानसभा में बुधवार को सतना जिले के नक्शा विहीन गांवों का मुद्दा जोरदार ढंग से गूंजा। भाजपा विधायक विक्रम सिंह द्वारा उठाए गए सवाल के जवाब में राजस्व मंत्री करण सिंह वर्मा ने स्वीकार किया कि सतना जिले में अब भी 214 गांव नक्शा विहीन हैं। उन्होंने बताया कि अब तक 126 गांवों को डिजिटलाइज्ड किया जा चुका है और शेष 118 गांवों पर प्रक्रिया जारी है। हालांकि, मंत्री कोई स्पष्ट समय सीमा तय नहीं कर सके। यह मुद्दा उस वक्त और गर्मा गया जब विपक्ष के नेता ने चुटकी लेते हुए पूछा कि ‘क्या 6 साल का समय कम है?’ इस पर मंत्री का जवाब था कि ‘सत्यापन के बाद ही अंतिम निर्णय हो पाएगा।’
वहीं भाजपा के वरिष्ठ विधायक ओपी सकलेचा ने भी सवाल उठाया कि यह सब जान-बूझकर लटकाया जा रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि ‘कर्मचारी और अधिकारी अपनी मर्जी से फाइलें पेंडिंग रखते हैं,’ और समय सीमा तय न होने से प्रक्रिया लगातार लटक रही है। विधायक विक्रम सिंह ने सरकार से स्पष्ट तौर पर अनुरोध किया कि यदि समय सीमा तय कर दी जाए, तो जनता को कुछ भरोसा मिल सकेगा। इस पर भी मंत्री वर्मा कोई ठोस जवाब देने से बचते नजर आए और ड्रोन सर्वे की प्रक्रिया को समय लेने वाला बता कर पल्ला झाड़ गए। हालांकि स्थिति तब थोड़ी संभली जब संसदीय कार्य मंत्री व सतना जिले के प्रभारी मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने सदन में हस्तक्षेप कर कहा, कि इस मामले में जल्द कार्रवाई की जाएगी।ह्व लेकिन सवाल यह है कि क्या वाकई अब कुछ ठोस होने जा रहा है या फिर यह भी एक और बयान बनकर सरकारी फाइलों में ही दब जाएगा?
साजिश या सिस्टम फेल, इसीलिए है यहां बड़े जमीन घोटाले
गौरतलब है कि सतना जिले में नक्शा विहीन गांवों की संख्या सबसे ज्यादा है। करीब दो साल पहले ही यह खुलासा हुआ था कि पूरे प्रदेश में सबसे ज्यादा नक्शा विहीन गांव सतना में हैं। कई गांवों को जानबूझकर नक्शा विहीन बनाए रखने के आरोप भी लग चुके हैं, ताकि विवादों का निपटारा एसएलआर स्तर पर हो और स्थानीय स्तर पर जवाबदेही से बचा जा सके। सूत्रों के मुताबिक, सतना जिले में कई ऐसे मामले सामने आए हैं जहां पहले से मौजूद नक्शों के बावजूद दोबारा नक्शा बनवाया गया, जैसा कि रामपुर बाघेलान के बरती गांव के केस में हुआ। इसमें तत्कालीन कलेक्टर को हस्तक्षेप करना पड़ा था। ऐसे कई नक्शाविहीन गांवों ने यहां भूमाफियाओं को पनपने का अवसर दिया है और संभवत: इसीलिए प्रदेश में सबसे अधिक जमीनी घोटाले भी यहीं हैं।
जनता को उठानी पड़ रही परेशानी
गांव का नक्शा केवल जमीन का चित्र नहीं, बल्कि गांव की पहचान और विकास की बुनियाद होता है। नक्शा न होने से न तो भूमि विवादों का समाधान हो सकता है, न ही विकास योजनाएं ठीक से लागू हो सकती हैं। सरकारी योजनाएं अटक जाती हैं और लोग अपने ही खेत-खलिहानों के मालिकाना हक के लिए परेशान रहते हैं। अब जबकि सत्ता पक्ष के विधायक भी इस मुद्दे पर सवाल उठा रहे हैं और विपक्ष भी सख्त है, यह जरूरी है कि सरकार इस संवेदनशील मुद्दे को प्राथमिकता दे। सिर्फ बयानबाजी नहीं, एक स्पष्ट समय सीमा के साथ ठोस कार्य योजना तैयार की जाए, तभी जनता का भरोसा बहाल हो सकेगा।