शहडोल के बिरसा मुंडा शासकीय मेडिकल कॉलेज में करोड़ों की लागत से बनी बिल्डिंग और मशीनें हैं, लेकिन डॉक्टर, टेक्नीशियन और स्टाफ की भारी कमी है। एमआरआई, सीटी स्कैन और ब्लड बैंक जैसी सुविधाएं कागज़ों में हैं, लेकिन मरीजों को बाहर भटकना पड़ रहा है। 6 साल में भी व्यवस्था नहीं सुधरी, नौकरशाही की उदासीनता ने लोगों की जान जोखिम में डाल दी है।
By: Yogesh Patel
Jul 29, 20258 hours ago
हाइलाइट्स
शहडोल, स्टार समाचार वेब
मध्य प्रदेश सरकार द्वारा लोगों को अच्छी स्वास्थ्य सुविधा एवं उपचार के लिए जिला मुख्यालय से सटे चांपा में बिरसा मुंडा शासकीय मेडिकल कॉलेज की स्थापना की गई थी। जिससे संभाग के आदिवासी बहुल क्षेत्र के आसपास के विद्यार्थी मेडिकल कॉलेज में अध्ययन कर सके। सरकार द्वारा मेडिकल कॉलेज की बिल्डिंग भी लगभग 450 करोड़ रुपए में बना कर दी गई लेकिन इसका सम्पूर्ण लाभ नागरिकों को आज भी नहीं मिल पा रहा। बताया गया कि मेडिकल कॉलेज में तो बिल्डिंग, मशीन इत्यादि अन्य चीजें दे दी गई है लेकिन इन्हें चलाने वाले ना तो डॉक्टर हैं और ना ही टेक्नीशियन। जिससे लैब में पड़े मशीन खराब हो रही हैं और इनका उपयोग लोगों की उपचार के लिए नहीं किया जा रहा है। जिससे लोगों को इन मशीनों से जांच के लिए काफी दूर जिला चिकित्सालय व निजी क्लीनिक जाना पड़ रहा है।
एमआरआई और सीटी स्कैन के लिए जाना पड़ रहा बाहर
मेडिकल कॉलेज के बिल्डिंग में बकायदा सिटी स्कैन के लिए स्थान व मशीन भी उपलब्ध है लेकिन इसके बावजूद भी मेडिकल कॉलेज के मरीजों को इसकी सुविधा नहीं मिल पा रही है क्योंकि यहां यह सुविधा अभी तक प्रारंभ नहीं कि गई है। बताया गया है कि अगर किसी को भी सीटी स्कैन व एमआरआई कराना होता है तो वह जिला चिकित्सालय या किसी प्राइवेट क्लीनिक का सहारा लेता है। जहां पर मरीजों को प्राइवेट क्लीनिक पर खासी मोटी रकम देना पड़ता है लेकिन कुछ ऐसे भी मरीज रहते हैं जिनके पास पैसे की कमी के अभाव में वह जिला चिकित्सालय के आए दिन चक्कर काटते रहते हैं तब उन्हें जाकर कहीं सीटी स्कैन हो पता है फिर सिटी स्कैन होने के बाद मरीज को यह पता चलता है कि अब तो डॉक्टर साहब भी नहीं होंगे तो उन्हें अपना रिपोर्ट दिखाने के लिए फिर अगले दिन का इंतजार होता है। इतने में मरीजों की स्थिति काफी बिगड़ जाती है और कुछ तो रेफर हो जाते हैं कुछ तो मेडिकल कॉलेज में ही दम तोड़ देते हैं।
ब्लड बैंक होने के बावजूद जिला अस्पताल की दौड़
मेडिकल कॉलेज में ब्लड बैंक के लिए एक अच्छी बिल्डिंग और एक लैब होने के बावजूद भी वहां पर ब्लड बैंक चालू नहीं किया जा रहा है और भर्ती मरीज के परिजनों को ब्लड के लिए काफी मशक्कत करना पड़ रहा है। साथ ही खून की पूर्ति हेतु दलालों के चक्कर काटने पड़ रहे है। बताया गया कि मेडिकल कॉलेज में जब किसी भी व्यक्ति या मरीज को ब्लड की आवश्यकता पड़ती है तो मेडिकल कॉलेज से लगभग 5 से 6 किलोमीटर दूर जिला चिकित्सालय में लोगों को ब्लड लेने के लिए जाना पड़ता है, जब कभी ज्यादा इमरजेंसी आती है तो कभी कोई भी पर्ची में डॉक्टर का साइन करना भूल जाते हैं तो ब्लड बैंक वाले उन्हें फिर से उसी रास्ते से 5 से 6 किलोमीटर दूर चलकर वहां से उपस्थित डॉक्टर से दस्खत कराकर दुबारा जाकर लोगों को ब्लड मिल पाता है जिससे लोगों को काफी दिक्कत एवं समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इसके बावजूद मेडिकल कॉलेज के प्रबंधन द्वारा इसका समुचित व्यवस्था नहीं कराया जा रहा है कि जिससे लोगों को अच्छी स्वास्थ्य सुविधा के नाम पर सिर्फ परेशान होना पड़ रहा है।
नौकरशाही हावी, स्थिति जस की तस
नौकरशाही के कार्य-व्यवहार को जानने के लिए चंद दिनों की कुछ चर्चित घटनाओं पर चर्चा करते हैं। जिस पर अपने पदभार ग्रहण करने के बाद से अलग अलग मामलों में मेडिकल कॉलेज के डीन गिरीश रामटेके चर्चा में रहे है। अभी हाल ही में पानी समस्या को लेकर कमिश्नर से डॉक्टरों ने शिकायत की और कलेक्टर ने जायजा लेने मेडिकल कॉलेज पहुंचे और स्थिति पर जल्द सुधार करने निर्देश भी दिए, इसके बाद भी स्थिति जस की तस बनी हुई है। जानकरों की माने तो जबसे डीन आए है तब से स्थिति सुधरने के बजाय बिगड़ रही है।