मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले के कई सरकारी स्कूल खंडहर में तब्दील हो चुके हैं। बरसात के दिनों में बच्चों की जान खतरे में है, लेकिन ना मरम्मत हुई और ना ही वैकल्पिक व्यवस्था बनाई गई। दीवारों की दरारें, टपकती छत और बिजली-पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं के अभाव में मासूम बच्चे जान जोखिम में डालकर पढ़ाई कर रहे हैं। जिम्मेदार अधिकारी निरीक्षण तक नहीं कर रहे।
By: Yogesh Patel
Jul 29, 20259 hours ago
हाइलाइट्स
सिंगरौली, स्टार समाचार वेब
जिले में सरकारी विद्यालयों की स्थिति बरसात के दिनों में बदहाल बनी हुई है। जर्जरों हो चुके भवनों की छतें टपक रही हैं,दिवारों में दरार पड़ा है। इस बीच छोटे-छोटे बच्चे अपनी जिंदगी दांव पर लगाकर अपना भविष्य संवारने में लगे हैं। लेकिन सवाल उठता है कि क्या जिले के जिम्मेदार अधिकारी इन विद्यालयों का कभी भ्रमण कर वस्तुस्थिति से अवगत हुए।
बताते चले कि जिले में कई सरकारी स्कूल खंडहर में तब्दील हो चुके हैं। यहां टपकती छत,गिरता प्लास्टर और बिजली,पानी की कमी है। छात्र जान जोखिम में डालकर पढ़ाई कर रहे हैं लेकिन विभागी इसे नजर अंदाज कर रहा है। जर्जर भवन में पढ़ाई चल रही है। जन शिक्षा केंद्र गन्नई के शासकीय प्राथमिक पाठ शाला टोला स्कूल की हालत भयावह है। शिक्षा के मंदिर कहे जाने वाले स्कूल का भवन जर्जर हो चुका है कभी भी गिर सकता है। यहां पढ़ने वाले छोटे-छोटे बच्चों की जान पर खतरा मंडरा रहा है। दीवारों में दरारें, छतें जर्जर हो चुकी हैं।
मासूमों का भविष्य स्कूल भवन की ताÞा तस्वीरें स्थिति को स्पष्ट रूप से दर्शाती हैं। दीवारों में गहरी दरारें, छत का प्लास्टर झड़ना और खुले तारों के बीच बच्चों का पढ़ाई करना एक बड़े हादसे को निमंत्रण दे रहा है। शिक्षकों और छात्रों को हर दिन डर के साये में समय बिताना पड़ता है। प्रशासन की अनदेखी, बच्चों का भविष्य अंधेरे में स्थानीय लोगों और अभिभावकों ने शासन-प्रशासन की उदासीनता पर गहरी नाराजगी जताई है। मध्यप्रदेश में शिक्षा को प्राथमिकता देने के सरकारी दावों के बीच यह स्कूल उपेक्षा का शिकार है। ना भवन की मरम्मत हुई ना ही वैकल्पिक व्यवस्था बनाई गई। स्कूल में टॉयलेट,पानी, बिजली जैसी मूलभूत सुविधाएं भी नदारद हैं।
जिम्मेदार मौन
ग्रामीणों का कहना है कि यदि भवन कि छत किसी दिन गिर गया और जानमाल की हानि हुई, तो उसकी पूरी जिम्मेदारी शासन-प्रशासन की होगी। स्कूल के शिक्षक भी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं, लेकिन बजट और मरम्मत स्वीकृति के अभाव में कुछ कर पाने में असमर्थ हैं। शिक्षा विभाग के जिम्मेदार अधिकारी कभी निरीक्षण करने आते ही नहीं। प्रशासन कब जागेगा और इन मासूमों को सुरक्षित शिक्षा का अधिकार दिलाने की दिशा में कौन पहला कदम उठाएगा। यह एक बड़ा सवाल है।