मध्यप्रदेश सरकार जहां एक ओर धार्मिक स्थानों को पर्यटन के रूप में विकासित करने की कवायद में जुटी है। वहीं दूसरी ओर निजी कंपनियां लोगों की आस्था पर प्रहार करने से भी नहीं चूक रही हैं। इससे संत समाज के साथ ही साथ जनता में भी आक्रोश पनप रहा है।
By: Arvind Mishra

भोपाल। स्टार समाचार वेब
मध्यप्रदेश सरकार जहां एक ओर धार्मिक स्थानों को पर्यटन के रूप में विकासित करने की कवायद में जुटी है। वहीं दूसरी ओर निजी कंपनियां लोगों की आस्था पर प्रहार करने से भी नहीं चूक रही हैं। इससे संत समाज के साथ ही साथ जनता में भी आक्रोश पनप रहा है। राजधानी भोपाल में 120 साल पुराने शिव मंदिर को बिना लिखित आदेश ध्वस्त कर दिया है। इस घटना के बाद इलाके में तीन दिन से स्थिति तनावपूर्ण बनी है। रेलवे ने समदड़िया ग्रुप को लांड्री निर्माण का ठेका दिया है। जहां बिना किसी लिखित आदेश के ठेकेदार कंपनी समदड़िया ग्रुप के अधिकारी मौके पर पहुंचे और मंदिर को तोड़वा दिया।
दरअसल, भोपाल में रेलवे की लॉन्ड्री निर्माण परियोजना के लिए सौ साल पुराने शिव मंदिर को तोड़े जाने पर बवाल खड़ा हो गया है। हिंदू संगठनों ने ठेकेदार समदड़िया ग्रुप और रेलवे प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि मंदिर को बिना किसी लिखित आदेश के गिराया गया, जबकि पास की मजार को छुआ तक नहीं गया। ठेकेदार कंपनी ने मौखिक आदेश पर कार्रवाई की बात स्वीकारते हुए मंदिर के पुनर्निर्माण का आश्वासन दिया है। इलाके में तनाव को देखते हुए पुलिस तैनात की गई है। वहीं विश्व हिंदू परिषद के पदाधिकारियों ने जीआरपी थाने में शिकायत दर्ज कराई है।
हिंदू संगठनों ने ठेकेदार कंपनी समदड़िया ग्रुप और रेलवे प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि मंदिर को बिना लिखित आदेश के तोड़ा गया है। रेलवे की इस परियोजना के लिए ठेका समदड़िया ग्रुप को दिया गया था। शनिवार को कंपनी के अधिकारी, रेलवे, जीआरपी और पुलिस की टीम के साथ मौके पर पहुंचे और मंदिर तोड़ दिया। जब स्थानीय लोगों ने विरोध किया, तो बताया गया कि यह कार्रवाई रेलवे के आदेश पर की जा रही है। लेकिन बाद में कंपनी के साइट मैनेजर ने स्वीकार किया कि मंदिर तोड़ने का कोई लिखित आदेश नहीं था, यह काम मौखिक निर्देश पर किया गया।
मंदिर के महंत रामभूषण दास ने आरोप लगाया कि मंदिर के ठीक आगे स्थित मजारों छोड़ दिया गया, जबकि शिव मंदिर को पूरी तरह गिरा दिया गया। यह मंदिर सौ साल पुराना था और इससे स्थानीय लोगों की आस्था जुड़ी थी। प्रशासन ने मजारों को छोड़कर मंदिर को तोड़ दिया, यह सीधी धार्मिक असमानता है। वहीं संगठनों ने दो टूक शब्दों में कहा- अगर समदरिया समूह ने मंदिर का पुनर्निर्माण तत्काल शुरू नहीं किया तो उग्र आंदोलन किया जाएगा। यहां कोई निर्माण कार्य नहीं होने दिया जाएगा।