दरअसल, दावा किया जा रहा है कि भाजपा के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव 21 जुलाई को संसद के मानसून सत्र की शुरुआत से पहले हो सकता है। अगले हफ्ते से इस दिशा में कवायद तेज हो जाएगी।
By: Star News
Jun 12, 20251:24 PM
नई दिल्ली। देश की सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा के नए अध्यक्ष के चुनाव को लेकर बार-बार तारीख बढ़ती जा रही है। जेपी नड्डा के मोदी सरकार के मंत्री बनने के बाद से लगातार नए अध्यक्ष के नाम और चुनाव की तारीखों को लेकर अटकलें लगाई जा रही है। हालांकि इस बीच खबर सामने आ रही है कि जुलाई महीने में पार्टी को नया राष्ट्रीय अध्यक्ष मिल सकता है। हालांकि इससे पहले आधे से ज्यादा राज्यों के चुनाव भी संपन्न कराने हैं। यहां सबसे खास बात यह है कि भाजपा के नए अध्यक्ष की दौड़ में आठ चेहरे शामिल हो गए हैं। इसमें चार महिला नेत्रियां हैं और चार पुरुष दिग्गज है। कोई भी चेहरा सत्ता-संगठन के अनुभव में कमजोर नहीं हैं। अब यहां देखना दिलचस्प होगा कि क्या एक बार फिर भाजपा चौंकाएगी। इस पर सबकी नजरें टिकी हैं। दरअसल, दावा किया जा रहा है कि भाजपा के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव 21 जुलाई को संसद के मानसून सत्र की शुरुआत से पहले हो सकता है। अगले हफ्ते से इस दिशा में कवायद तेज हो जाएगी। लगभग 10 राज्यों में नए प्रदेश अध्यक्ष चुन लिए जाएंगे। इसके तुरंत बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष की चुनाव प्रक्रिया शुरू होने की उम्मीद है। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की तरफ से अनौपचारिक बातचीत में इसके साफ संकेत मिले हैं कि नए अध्यक्ष का चुनाव अब टाला नहीं जाएगा। संसद का मानसून सत्र 21 जुलाई से शुरू हो रहा है। लिहाजा, संगठन में इससे पहले नया राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनने की प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी।
गौरतलब है कि बतौर राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल जून 2024 को खत्म हो चुका है। वह एक्सटेंशन पर हैं। वहीं, वह केंद्र सरकार में मंत्री भी हैं, इस वजह से भाजपा जल्द नया अध्यक्ष चुनने की तैयारी में जुटी है। जेपी नड्डा को 2019 में कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था और जनवरी 2020 में वे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थे।
15 अगस्त के बाद बिहार चुनाव को लेकर हलचल शुरू हो जाएगी। इसलिए भाजपा इससे पहले नया राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनना चाहेगी, क्योंकि बिहार के विधानसभा चुनाव नए राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर असमंजस की स्थिति नहीं रहे। दस प्रदेश अध्यक्षों के चुनाव को लेकर तेजी से काम हो रहा है। 21 जून तक कई प्रदेशों में नए अध्यक्ष चुन लिए जाएंगे जिसके बाद, राष्ट्रीय अध्यक्ष की चुनाव प्रक्रिया शुरू हो जाएगी।
स्मृति ईरानी: कई अहम मंत्रालय संभालने के साथ प्रशासनिक अनुभव है। पार्टी के लिए मजबूत महिला चेहरा। आरएसएस के साथ अच्छे संबंध और हिंदी बेल्ट के साथ दक्षिण भारत में भी प्रभावी।
वानति श्रीनिवासन: वर्तमान में भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। ऐसे में संगठनात्मक कार्यों में उनका अनुभव है। 1993 से भाजपा से जुड़ी हुई हैं। तमिलनाडु में भाजपा को मजबूत करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। संघ और भाजपा की करीबी हैं।
तमिलिसाई सौंदर्यराजन: 1999 से भाजपा से जुड़ी हुई हैं। राष्ट्रीय सचिव समेत कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया है। तमिलनाडु में भाजपा की प्रदेश अध्यक्ष रह चुकी हैं। पीएम मोदी और गृह मंत्री शाह के करीबी नेताओं में गिनी जाती हैं।
डी. पुरंदेश्वरी: पूर्व सीएम और टीडीपी संस्थापक एनटी रामाराव की बेटी हैं। उन्होंने पहले कांग्रेस में रहकर केंद्रीय मंत्री के रूप में काम किया, फिर भाजपा में शामिल हुईं। अभी आंध्र प्रदेश भाजपा अध्यक्ष हैं। इनको राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने से पार्टी को तेलुगु राज्यों में फायदा मिल सकता है।
शिवराज सिंह चौहान: छह बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। 4 बार मप्र के मुख्यमंत्री रहे। 13 साल की उम्र में संघ से जुड़े और आपातकाल के दौरान जेल भी गए। ओबीसी कैटेगरी से हैं। 2005 में मध्य प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष रहे हैं। आरएसएस की सूची में सबसे ऊपर हैं।
सुनील बंसल: 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के सह प्रभारी और फिर 2017 में प्रभारी की जिम्मेदारी रहते हुए पार्टी को कामयाबी दिलाई। ओडिशा, बंगाल और तेलंगाना के प्रभारी के रूप में मिली कामयाबी भी बड़ा प्लस पॉइंट है। संघ से नजदीकी के साथ-साथ संगठन में भी अच्छी पकड़ है।
धर्मेन्द्र प्रधान: वर्तमान में केंद्रीय शिक्षा मंत्री और भाजपा के एक अनुभवी संगठनकर्ता हैं। ओडिशा से आते हैं, जहां भाजपा अपनी पकड़ और भी ज्यादा मजबूत करना चाहती है। मोदी और शाह की टीम के भरोसेमंद सदस्य। 40 साल का राजनीतिक अनुभव, बड़े ओबीसी नेता है। दो बार लोकसभा और 2 बार राज्यसभा सदस्य बने।
रघुवर दास: झारखंड के पहले गैर-आदिवासी सीएम रहे। झारखंड में 5 साल का स्थिर शासन दिया, जो राज्य में पहली बार हुआ। उनकी जमीनी कार्यकर्ताओं और भाजपा संगठन में मजबूत पकड़ है। ओबीसी समुदाय से आने के कारण भाजपा को सामाजिक समीकरण में नई बढ़त मिल सकती है। उनकी वजह से पूर्वोत्तर में भाजपा को विस्तार मिल सकता है।