बेंगलुरु की नम्मा मेट्रो इस बार सिर्फ सवारी नहीं, जिंदगी बचाने के भी काम आयी। शहर में पहली बार, एक बेहद जरूरी लिवर ट्रांसप्लांट के लिए मेट्रो का इस्तेमाल किया गया। मामला हेपेटाइटिस से जूझ रहे एक मरीज का है, जिसे लिवर ट्रांसप्लांट की सख्त जरूरत थी।
By: Arvind Mishra
Aug 03, 20251 hour ago
नई दिल्ली। स्टार समाचार वेब
कहते हैं कि चलती का नाम ही जिंदगी है। अक्सर लोग क्यों कहते हैं आज यह सिद्ध हो गया कि वास्तव में चलती का नाम जिंदगी है...। दरअसल, बेंगलुरु की नम्मा मेट्रो इस बार सिर्फ सवारी नहीं, जिंदगी बचाने के भी काम आयी। शहर में पहली बार, एक बेहद जरूरी लिवर ट्रांसप्लांट के लिए मेट्रो का इस्तेमाल किया गया। मामला हेपेटाइटिस से जूझ रहे एक मरीज का है, जिसे लिवर ट्रांसप्लांट की सख्त जरूरत थी। लिवर एक 24 वर्षीय एक्सीडेंट पीड़ित द्वारा दान किया गया था, जिसे व्हाइटफील्ड से स्पर्श अस्पताल तक ले जाना था। बेंगलुरु की ट्रैफिक को चकमा देने के लिए टीम ने नम्मा मेट्रो का सहारा लिया और 31 किलोमीटर की दूरी, 30 मेट्रो स्टेशनों को पार करते हुए लिवर को सिर्फ 55 मिनट में अस्पताल पहुंचा दिया गया।
लिवर ट्रांसप्लांट का वीडियो अब सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। वायरल क्लिप में देख सकते हैं कि मेट्रो के आखिरी डिब्बे से एक टीम उतरती है और आॅर्गन कंटेनर लेकर तेजी से बाहर निकलती है। इस रेस को सफल बनाने के लिए मेट्रो के दोनों सिरों पर ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया। व्हाइटफील्ड मेट्रो से अस्पताल तक 5.5 किमी की दूरी थी और आरआर नगर मेट्रो से स्पर्श अस्पताल तक 2.5 किलोमीटर।
स्पर्श अस्पताल ने बयान जारी कर बताया कि यह ऐतिहासिक पल था, जब ट्रैफिक को हराकर मेट्रो ने वक्त पर अंग पहुंचाकर एक जान बचाई। बेंगलुरु की नम्मा मेट्रो के जरिए एक गंभीर रूप से बीमार मरीज तक शहर के ट्रैफिक से बचते हुए समय पर लिवर पहुंचाने का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। शहर में पहली बार ऐसी मेडिकल इमरजेंसी के लिए मेट्रो का इस्तेमाल किया गया।
मरीज हेपेटाइटिस से जुड़ी गंभीर लिवर की समस्या से जूझ रहा था। दान किए गए लिवर को मेट्रो के जरिए आरआर नगर स्थित स्पर्श अस्पताल पहुंचाकर उसे नया जीवन दिया गया। यह आॅर्गन, एक 24 वर्षीय दुर्घटना पीड़ित से प्राप्त किया गया, जिसे व्हाइटफील्ड से अस्पताल तक 31 किलोमीटर और 30 मेट्रो स्टेशनों को पार करते हुए मात्र 55 मिनट में पहुंचाया गया।
शहर में भारी ट्रैफिक की वजह से अस्पताल को डर था कि अगर लिवर समय पर नहीं पहुंचा, तो वह खराब हो सकता है और मरीज की जान पर बन आएगी। ऐसे में मेडिकल टीम ने तुरंत फैसला लिया कि लिवर को मेट्रो के जरिए पहुंचाया जाए।
स्पर्श अस्पताल की टीम ने नम्मा मेट्रो की पर्पल लाइन के आखिरी डिब्बे में लिवर को रखा। बीएमआरसीएल ने इस मिशन के लिए पूरा सहयोग दिया और अंतिम कोच को खास मेडिकल टीम के लिए रिजर्व कर दिया गया। पूरी सुरक्षा और ग्राउंड स्टाफ के साथ मिशन को अंजाम दिया गया।
सोशल मीडिया पर वायरल हो रही क्लिप में देखा जा सकता है कि अस्पताल की टीम मेट्रो से उतरती है और तेजी से लिवर लेकर बाहर जाती है। मेट्रो स्टेशन से अस्पताल तक का रास्ता भी पहले से तैयार किया गया था, ताकि एक मिनट की देरी न हो।
स्पर्श अस्पताल के डॉ. महेश गोप शेट्टी ने बताया-अगर हम सड़क से जाते तो ट्रैफिक में फंसने का खतरा था। मेट्रो ने हमें सबसे तेज और सुरक्षित रास्ता दिया। बीएमआरसीएल और एसओटीटीओ कर्नाटक ने जिस तेजी और समर्पण से मदद की, वो काबिले तारीफ है। लिवर ट्रांसप्लांट की सर्जरी पूरी रात चली और सुबह 3 बजे खत्म हुई। फिलहाल मरीज आईसीयू में है और उसकी हालत स्थिर बताई जा रही है।