मध्य प्रदेश में भी विवि में कुलपति शब्द की जगह कुलगुरु शब्द को अपनाने का प्रस्ताव पास हो चुका है। अब राज्य में कुलपति को कुलगुरु ही कहा जाता है।
By: Star News
Jun 03, 202512:48 PM
-बनी सहमति: विश्वविद्यालय लौटेगी भारतीय परंपरा
भोपाल/नई दिल्ली। मध्यप्रदेश की तर्ज पर अब जेएनयू में भी कुलगुरु की भारतीय परंपरा लौटेगी। दरअसल, जवाहरलाल नेहरू विवि ने फैसला लिया है कि अब विवि में कुलपति नहीं, बल्कि कुलगुरु कहा जाएगा। यह बदलाव सिर्फ शब्दों का नहीं है, बल्कि सोच और परंपरा से भी जुड़ा हुआ है। यूनिवर्सिटी की मौजूदा कुलपति प्रो. शांतिश्री धुलीपुडी पंडित ने खुद इस प्रस्ताव को विवि की एग्जीक्यूटिव काउंसिल की बैठक में रखा, जिसे सहमति भी मिल गई है। हालांंकि यह पहला मौका नहीं है, जब किसी विवि ने कुलपति को कुलगुरु कहने की बात की हो। इससे पहले मध्य प्रदेश में भी विवि में कुलपति शब्द की जगह कुलगुरु शब्द को अपनाने का प्रस्ताव पास हो चुका है। अब राज्य में कुलपति को कुलगुरु ही कहा जाता है।
फैसला 2025 से ही लागू होगा
जेएनयू के फैसले को 2025 से ही लागू किया जाएगा। इसका मतलब यह है कि अब से यूनिवर्सिटी के सभी आफिशियल डॉक्यूमेंट्स, जैसे डिग्री सर्टिफिकेट, नियुक्ति पत्र या अन्य सरकारी कागजों में कुलपति शब्द की जगह कुलगुरु लिखा जाएगा। प्रो. शांतिश्री जब किसी डॉक्यूमेंट पर साइन करेंगी, तो उनके नाम के साथ कुलगुरु लिखा नजर आएगा।
इसलिए किया गया बदलाव
फैसले के पीछे दो बड़े कारण हैं। पहला-जेंडर न्यूट्रलिटी (लैंगिक समानता) और दूसरा-भारतीय शैक्षिक परंपरा से जुड़ाव। कुलपति शब्द का मतलब होता है-कुल का पति यानी परिवार का पुरुष प्रमुख। यह शब्द पुरुष प्रधान सोच को दशार्ता है। वहीं कुलगुरु शब्द में ऐसा कोई लिंग निर्धारण नहीं है। यह एक ऐसा शब्द है जो किसी भी महिला या पुरुष के लिए समान रूप से इस्तेमाल किया जा सकता है।
भारतीय परंपरा से जुड़ाव
कुलगुरु शब्द की जड़ें भारत की प्राचीन गुरु-शिष्य परंपरा में हैं। पुराने समय में शिक्षा का केंद्र गुरुकुल होता था। वहां शिक्षा देने वाले को कुलगुरु कहा जाता था। वह सिर्फ शिक्षक ही नहीं, बल्कि मार्गदर्शक भी होते थे। इस परंपरा में गुरु को सिर्फ ज्ञान देने वाला नहीं, बल्कि नैतिक और मानसिक रूप से मजबूत करने वाला माना जाता था।
इनका कहना है
भारतीय मॉडल में शिक्षा सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं होती, यह सोच, व्यवहार और संस्कृति को भी गढ़ती है। इसलिए कुलगुरु शब्द इस परंपरा के अधिक नजदीक है। यह बदलाव समावेशी सोच को बढ़ावा देने के लिए किया जा रहा है, जिससे किसी को भी सिर्फ लिंग के आधार पर अलग महसूस न हो। हमें ऐसी भाषा का उपयोग करना चाहिए जो सबके लिए सम्मानजनक हो।
प्रो. शांतिश्री धुलीपुडी पंडित,कुलपति, जेएनयू