सतना (मैहर) जिले के बछौन गांव में स्थित 'फोर्ट ऑफ बछौन' को ब्रिटिश काल में एक अंग्रेज पुरातत्वविद् ने खोजा था और एएसआई की स्मारक सूची में शामिल किया गया था। लेकिन वर्षों की तलाश के बाद भी जब यह किला नहीं मिला तो केंद्रीय पुरातत्व विभाग ने इसे 'अनट्रेसेबल' मानते हुए स्मारक सूची से हटा दिया है।
By: Yogesh Patel
हाइलाइट्स
सतना, स्टार समाचार वेब
क्या आप जानते हैं कि सतना (अब मैहर जिला) जिले में फोर्ट आफ बछौन नाम का एक ऐसा स्मारक था, जिसकी तलाश पुरातत्व विभाग सालों से करता रहा है। लंबी खोजबीन के बाद भी जब पुरातत्व विभाग को बछौन किले का सुराग नहीं लगा तो उसे केंद्रीय पुरातत्व विभाग ने अपनी सूची से हटा दिया है।
बीते दिनों यह जानकारी लोकसभा में सामने आई जब सदन को बताया गया कि देश के 18 स्मारकों को केंद्रीय पुरातत्व विभाग की सूची से हटा दिया गया है, क्योंकि इन स्मारकों को अनट्रेसेबल पाया गया है। इस संबंध में एएसआई के सुप्रीटेंडिंग आर्कियोलाजिस्ट शशीकांत बाजपेयी ने बताया कि फोर्ट आफ बिछौन को ब्रिटिश काल में एक अंग्रेजी पुरातत्व शास्त्री ने एएसआई में शामिल किया था, लेकिन जो लोकेशन बताई गई है, वहां बिछौन किला अनट्रेसेबल पाया गया है। आर्केलॉजिकल सर्वे आॅफ इंडिया का प्रमुख काम राष्ट्रीय महत्व के प्राचीन स्मारकों और पुरातत्वीय स्थलों का रखरखाव करना है। एनशियेन्ट एंड हिस्टोरिकल मान्यूमेन्ट्स एंड आर्केलॉजिकल साइट्स एंड रिमेन्स (डिक्लेरेशन आफ नेशनल इम्पोर्टेंस) एक्ट, 1951 या राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 के जरिए कभी इन स्मारकों का राष्ट्रीय महत्व क ा घोषित किया गया था लेकिन बाद में विभाग ने इन स्मारकों को अनट्रेसेबल पाया जिसके बाद सतना समेत देश के 18 'खोये हुए' स्मारकों को सूची से पृथक कर दिया गया।
बांदा का स्मारक भी सूची से हटा, - इसी प्रकार सीमाई उप्र के बांदा शहर स्थित बंद कब्रिस्तान व कटरा नाका को भी स्मारकों की सूची से अलग किया गया है।
सर्वाधिक स्मारक उप्र के ही हटाए गए हैं। जानकारी के अनुसार उत्तर प्रदेश के गाजीपुर के भारंली गंगा तिर में वट वृक्ष स्थित प्राचीन स्मारक के अवशेष, झांसी के रंगून का बंदूकची बुर्किल की कब्र, लखनऊ शहर के गौघाट का कब्रिस्तान, लखनऊ के जहरीला रोड़ पर 6 से 8 मील पर स्थित कब्रिस्तान, लखनऊ-फैजाबाद रोड़ पर 3, 4 और 5 मील पर स्थित मकबरें, मिजार्पुर जिले के अहुगी में एक हजार ईसवीं के तीन छोटे लिंग मंदिर परिधि के अवशेष, वाराणसी का तेलिया नाला बौद्ध खंडहर, वाराणसी के कोषागार भवन में मौजूद तख्ती पट्ट (टेबलेट) प्रमुख हैं। इसके अलावा उत्तराखंड में अल्मोड़ा के द्वाराहाट का कुटुम्बरी क्षेत्र नालिस,राजस्थान के जयपुर जिले के नगर स्थित किले के भीतर का अभिलेख, राजस्थान के कोटा जिले का बारन स्थित 12वीं सदी का मंदिर, अरुणाचल प्रदेश के लखीमपुर जिले का सादिया के पास का ताम्र मंदिर, हरियाणा के गुरुग्राम जिले का कोस मिनार संख्या 13,हरियाणा के करनाल जिले का कोस मिनार, दिल्ली के इम्पीरियल सिटी का बारा खंबा कब्रगाह और दिल्ली के कोटला मुबारकपुर का इंचला वाली गुमटी को सूची से हटा दिया गया है।
आखिर कहां हैं लोकेशन- किले में प्राचीन शिलालेख मौजूद
सूची में दर्ज रहे फोर्ट आफ बछौन के संबंध में पुरातत्व विभाग में दर्ज जानकारी में बताया गया है कि यह सतना (अब मैहर जिला)अंतर्गत बछौहां गांव में स्थित था जिसकी दूरी मैहर से तकरीबन 25 किमी अमरपाटन की ओर है। पुरातत्व विभाग में फोर्ट आफ बिछौन के संबंध में वर्णित है कि चूना पत्थर से बने इस किले में प्राचीन शिलालेख व अनुपम कलाकृतियां मौजूद होने का जिक्र है। ब्रिटिश काल से इस किले का इंसक्रिप्शन दस्तावेजों में दर्ज है जिसे ‘इंसक्रिप्शन इन फोर्ट आॅफ बछौन’ के नाम से जाना जाता है। एएसआई के अधीन होने के कारण किले को कानूनी संरक्षण, रख-रखाव और अनुदान प्राप्त होता था। इसे केंद्रीय सूची में शामिल कर सरकारी फंड और कानूनी सुरक्षा इसी मंशा से दी जाती रही, ताकि क्षेत्रीय इतिहास, लोगों की स्थानीय पहचान और सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण किया जा सके, लेकिन एएसआई ने जब इसकी खोजबीन शुरू की तो न फोर्ट आफ बिछौन मिला और न ही वह इंसक्रिप्शन जिसे ब्रिटिश पुरातत्व शास्त्री ने शामिल किया था।
लंबी छानबीन के बाद भी जब एएसआई बछौन किले को ट्रेस नहीं कर पाई तो इसे ‘अनट्रेसेबल’ की सूची में डालकर ऐतिहासिक स्मारकों को संरक्षित सूची से हटा दिया।
यह सही है कि केंद्रीय पुरातत्व विभाग की सूची में सतना जिले के फोर्ट आफ बछौन किले का इंसक्रिप्शन स्मारक सूची में दर्ज था लेकिन इसे अनट्रेसेबल पाए जाने पर सूची से हटा लिया गया है। इसे किसी ब्रिटिश पुरातत्व शास्त्री ने स्मारकों की एएसआई सूची में शामिल किया था। जांच में यह किला नहीं पाया गया।
शिवकांत बाजपेई, सुप्रीडेंटिंग आर्कियोलाजिस्ट, एएसआई