सतना में बाबा मेहर शाह दरबार के भव्य उद्घाटन समारोह में आरएसएस प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने राष्ट्रभक्ति, स्व-बोध और भारतीयता पर प्रेरक विचार रखे। उन्होंने कहा कि ‘स्व’ का भाव ही हमें सच्चा राष्ट्रभक्त बनाएगा। विविधता में एकता, भाषा और संस्कृति के संरक्षण को उन्होंने भारत की असली शक्ति बताया।
By: Star News
Oct 06, 2025just now
हाइलाइट्स
सतना, स्टार समाचार वेब
बाबा मेहर शाह दरबार के भव्य उद्घाटन समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परमपूज्य सरसंघचालक डॉ मोहन मधुकरराव भागवत उपस्थित हुए। उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि संत सबके गुण को देखते हैं और तिनका मात्र भी जो गुणवान होता है उसको पर्वत के समान दिखाते हैं। सतना की पुण्य धरा में संत संगम के सूत्रधार संत पुरुषोत्तम दास जी का आभार व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा की संतों की कृपा ही भारत को वैभवशाली बना रही है। गुरु के प्रति श्रद्धा ही व्यक्ति को भगवान से मिलाती है। गुरु के बिना ज्ञान संभव नहीं है। व्यक्ति भौतिकवाद की सुविधा में दौड़ लगा रहा है। भौतिकवाद में सुख की प्राप्ति नहीं होगी। भारत पर सिकंदर ने जब आक्रमण किया यहां सब कुछ पाया धन वैभव भोग किंतु वापस जाते समय मृत्यु के समय वह रोने लगा उससे लोगों ने पूछा क्यों रो रहे हैं तो उसने कहा कि अब मैं मर जाऊंगा लेकिन खाली हाथ ही जाऊंगा। व्यक्ति खाली हाथ आता है और खाली हाथ जाता है किंतु बुद्धि का सुख उसे भौतिकवाद में लगा देता है। टूटे हुए दर्पण में आप चेहरा देखेंगे तो आपका चेहरा भी टूटा हुआ दिखाई देगा। इसी तरह हिंदू समाज भी भ्रमित है और आपस में टूटा हुआ दिखाई दे रहा है। किंतु हम सब एक हैं सब अपने-अपने स्वार्थ में धर्म अर्थ काम मोक्ष आध्यात्मिक परंपरा का दर्पण देख रहे हैं। अहंकार और स्वार्थ से विजय का बोध गुरु कराते हैं। स्व के बोध से हम सभी एक साथ जुड़े हैं ।
डॉ भागवत ने ‘भाषा, भूषा, भजन, भ्रमण, भवन’ पर जोर देते हुए बताया की विविधता में एकता ही देश का श्रृंगार है। भाषा का जतन घर में होना चाहिए घर के अंदर हमारी भाषा का ज्ञान हमको होना चाहिए हम किसी भाषा के विरोधी नहीं है किंतु अपनी भाषा का ज्ञान अपनी भाषा का लिखना अपनी भाषा में बोलना पढ़ना यह हमारे लिए गौरव का विषय है। सभी को तीन भाषाएं आनी ही चाहिए अपनी मातृभाषा, अपनी राष्ट्रभाषा, जिस प्रांत में हम रहते हैं उस राज्य की भाषा। अपनी वेशभूषा अपना भजन सब के बारे में जानना चाहिए किंतु अपने राम कृष्ण बुद्ध के बारे में जानना यह हमारा परम कर्तव्य है। भोजन नित्य का भजन और भजन भ्रमण में भी हमें स्व का ज्ञान होना चाहिए। प्राण जाए फिर भी नहीं छोड़ना चाहिए।
अंग्रेजों ने देश की संस्कृति को नष्ट किया
भारत के ऊपर जब अंग्रेज आये तो संस्कृति को ही नष्ट किए। जाति पंथ सम्प्रदाय भाषा मे बाटा था संघ और संत समाज राष्ट्र के लिए आवश्यक कार्य कर रहे हैं संपूर्ण विश्व में समाज का सुविचार ही देश को परम वैभव तक पहुचायेगा। इतिहास में उत्पन्न स्वरूप से हमे शिक्षा लेनी होगी। मंच पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक सर संघचालक के साथ महंत पुरुषोत्तम दास, महामंडलेश्वर स्वामी हंसराम, महंत स्वामी खिमयादास महाराज, महंत गणेश दास, महंत स्वामी स्वरूप दास, महंत स्वामी अरजन दास, महंत अशोक दास, मंचासीन रहे महंत माधवदास, महाराज ने मंच का संचालन किया और अतिथि परिचय कराया।
धर्म को नहीं छोड़ना ही हमारा गौरव
राष्ट्र धर्म का स्व का भाव होना चाहिए।संतो के सहयोग के बिना कुछ सम्भव नही।1857 के स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आज तक संत मार्गदर्शन करते आ रहे हैं। जब देश को आवश्यकता लगी तब संत ही देश की स्वतंत्रता के लिए आगे आए थे उनके साथ गृहस्थ भी आगे आए थे। राष्ट्र मंदिर को परम वैभव के मंदिर पर ले जाने के लिए ही कार्य करना चाहिए।
‘हिंदुत्व’ को दी नई परिभाषा, बताया जीवन मूल्यों पर आधारित सांस्कृतिक दर्शन
भागवत ने हिंदुत्व की नई व्याख्या दी है। उनके अनुसार, हिंदुत्व भारतीयता का पर्याय है और एक ऐसी जीवन दृष्टि है जो सबको जोड़ती है, किसी को तोड़ती नहीं। उन्होंने कहा कि हिंदू राष्ट्र का अर्थ किसी के प्रति विरोध नहीं है, बल्कि विविधता में एकता ही सच्चा राष्ट्रवाद है। उनका दृष्टिकोण सांस्कृतिक के साथ-साथ राष्ट्रीय और आर्थिक भी है। वे आत्मनिर्भर भारत और स्वदेशी भावना के प्रबल समर्थक हैं। भागवत ने संघ को आधुनिक युग की आवश्यकताओं से जोड़ा है। उन्होंने तकनीक, पर्यावरण, शिक्षा और महिला सहभागिता जैसे विषयों पर संगठन को सक्रिय किया है। उनके नेतृत्व में शिक्षा, स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास और आपदा प्रबंधन में संघ की भूमिका और सशक्त हुई है। सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत भारतीय समाज और राष्ट्र जीवन के उस पक्ष का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो आत्मनिर्भरता, एकता और सांस्कृतिक चेतना पर आधारित है। वे केवल एक संगठन के प्रमुख नहीं, बल्कि उस विचारधारा के संवाहक हैं जिसने भारत की सांस्कृतिक आत्मा को जीवंत बनाए रखा है। 1925 में स्थापित आरएसएस का उद्देश्य भारतीय समाज में आत्मगौरव और राष्ट्रनिष्ठा की भावना को सुदृढ़ करना था । मोहन भागवत ने इसी परंपरा को आधुनिक समय की जरूरतों के अनुरूप व्याख्यायित किया है। उनकी नेतृत्व शैली पारंपरिक अनुशासन और आधुनिक व्यावहारिकता का संगम है। वे विचार थोपने के बजाय संवाद के माध्यम से स्वीकार्यता प्राप्त करने में विश्वास रखते हैं। यही कारण है कि वे केवल संघ के भीतर ही नहीं, बल्कि समाज के सभी वर्गों और बुद्धिजीवियों में भी सम्मानपूर्वक सुने जाते हैं।
‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भावना को सर्वव्यापी बनाने का श्रेय
मोहन भागवत ने संघ को आधुनिक युग के साथ तालमेल बैठाने की दिशा में आगे बढ़ाया है। उन्होंने तकनीक, पर्यावरण, शिक्षा और महिला सहभागिता जैसे विषयों पर भी संगठन को सक्रिय किया है। उनका कहना है कि भारत का पुनर्निर्माण केवल पुरुषों का नहीं, महिलाओं का भी समान उत्तरदायित्व है। भागवत के नेतृत्व में संघ ने शिक्षा, स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास और आपदा प्रबंधन जैसे कई सामाजिक सेवा प्रकल्पों को नई दिशा दी है । आज संघ के स्वयंसेवक हर क्षेत्र में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं, जो ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भावना को साकार करते हैं।
मोहन भागवत होने के मायने
मोहन भागवत होने का अर्थ केवल संघ का प्रमुख होना नहीं है बल्कि यह एक ऐसी भूमिका निभाना है जो भारत की आत्मा को जोड़ने का कार्य करती है। वे परंपरा और आधुनिकता के बीच सेतु हैं। उनका जीवन इस बात का उदाहरण है कि शक्ति का सर्वोच्च रूप सेवा है, और विचारधारा का सर्वोच्च लक्ष्य समरसता। सतना में उनका प्रवास इस विचार का सजीव प्रतीक है कि भारत का उत्थान केवल बड़े आयोजनों या नीतियों से नहीं, बल्कि समाज के प्रत्येक हिस्से से जुड़कर, उसे सम्मान देकर और आत्मीयता के साथ आगे बढ़ाने से होगा। डॉ. मोहन भागवत और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मिलकर आज भी उसी दिशा में काम कर रहे हैं । एक ऐसे भारत के निर्माण के लिए जो आत्मविश्वासी, एकजुट और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध हो।
मंच पर भावुक हुए पुरुषोत्तम दास
बाबा मेहर शाह धाम के मुख्य आयोजक संत पुरुषोत्तम दास ने सभी मंचासीन संतों का स्वागत किया । इस अवसर पर उन्होने शाल एवं स्मृतिचिन्ह प्रदान करते हुए सभी शिष्य मंडल और सामाजिक बंधुओ का भी आशीर्वाद प्रदान किया । श्रोताओं को आशीवर्चन देते हुए वे भावुक हो गए और उन्होंने बताया कि यह धाम कितना पुण्य और पवित्र है और उसमें कितने लोगों की सेवा और श्रम लगा हुआ है। संघ के शताब्दी वर्ष में पहुंचने पर शुभकामना भी दी और सर संघचालक की उपस्थिति को गरिमामयी बताया।
सिंध प्रांत से सतना आए थे बाबा मेहर शाह
आरएसएस प्रमुख ने जिस मेहर शाह दरबार का रविवार को लोकार्पण किया उसे समाज के सहयोग से भव्य रूप दिया गया है। आजादी के बाद हुए बंटवारे में बाबा मेहर शाह सिंध प्रांत से सतना आ गए और सिंधी कैंप में छोटा सा दरबार लगाना शुरू किया था। दरबार में आने वाले भक्तों की मुरादे पूरी हुई तो बाबा का दरबार भी समय के साथ विस्तार लेता गया। बाबा मेहर शाह के ब्रम्हलीन होने के बाद गद्दी पुरुषोत्तम दास जी को मिली। तब से उन्हीं के दरबार में भक्तों का तांता लगा रहता है।
जबलपुर व भीलवाड़ा से पहुंचे संत
संत समागम में राजस्थान के भीलवाड़ा से अखिल भारतीय सिंधी समाज के संरक्षक महामंडलेश्वर संत हंसराज महाराज ने अपने आशीर्वाद में कहा कि संघ धर्म ध्वजा को पूरे विश्व मे फहरा रहा है प्रत्येक वर्ग को साथ मे लेकर चल रहा है सभी की सेवा समान भाव से कर रहा है संघ सर्वमानव समाज के लिए कार्य करता हैं।अब समाज जाति पंथ में न बटे यही आशा है। जबलपुर से आये संत अशोक महाराज भी मंचासीन रहे । उन्होंने कहा आज का दिन पुण्य दिवस है संघ की स्थापना के 100 वर्ष के साथ ही यह कार्य हो रहा है । संघ आज तीव्र गति से भारत के और संस्कृति के हित में कार्य कर रहा है।
गोल्फ कार्ट में नहीं बैठे ‘भागवत’
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख डॉ. मोहन भागवत के जंक्शन में पहुंचने के दौरान पूरा स्टेशन छावनी में तब्दील रहा। एसपीजी से लेकर स्थानीय पुलिस व आरपीएफ एवं जीआरपी ने मोर्चा संभाले रखा। सतना जंक्शन में श्री भागवत को पैदल न चलना पड़े इसके लिए जबलपुर से गोल्फ कार्ट इलेक्ट्रिक कार मंगाई गई थी। लेकिन श्री भागवत इसमें नहीं बैठे और पैदल चलकर प्लेटफार्म में अपनी ट्रेन नागपुर जाने के लिए रीवा-इतवारी एक्सप्रेस पकड़ी।
पहले जांच फिर प्रवेश
कार्यक्रम स्थल में प्रवेश को लेकर भी प्रशासन अलर्ट मोड पर नजर आया। आयोजन स्थल में वही प्रवेश पा सका जिसके पास प्रवेश के लिए वैध अनुमति पत्र था। इस दौरान प्रवेश द्वार में कड़ी सुरक्षा देखी गई। प्रवेश करने वाले लोगों के अनुमति पत्र तो जांच ही गए साथ ही तलाशी भी ली गई।
छावनी बनी रही गलियां
संघ प्रमुख के प्रवास के दौरान वे गलियां और सड़कें छावनी बनी रही ं जहां से उन्हें गुजरना था। सिंधी कैंप स्थित मेहर शाह दरबार के लोकार्पण के दौरान सिंधी कैंप की ओर जाने वाली हर गली और सड़क संगीनों के पहरे में रही।