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धीरेन्द्र सिंह राठौर का ब्लॉग
By: Star News
Jul 09, 20255 hours ago
उम्मीदों के बोझ तले 'बड़के साहब'
जिले के बड़के साहब इन दिनों खासे परेशान हैं, इनकी परेशानी का कारण और कोई नहीं बल्कि इनके मातहत स्वयं हैं। व्यवस्था में सुधार लाने की बड़ी उम्मीदों के साथ सतना आए साहब से लोगों को भी बड़ी उम्मीदें थीं, अब इन्हीं उम्मीदों के बोझ तले ‘साहब’ दब से गए हैं। साहब करना तो बहुत कुछ चाह रहे हैं, पर वर्तमान सिस्टम उन्हें कुछ नहीं दे रहा। साहब सिस्टम में सुधार लाने और व्यवस्था दुरुस्त करने आदेश- निर्देश भी खूब दे रहे हैं, पर जिन्हें इन आदेशों - निर्देशों को जमीन पर ले जाना है,उनके कांनों पर जूं तक नहीं रेंग रही है। यह अलग बात है कि अपने निर्देशों की अवहेलना देख साहब नोटिस और वेतन काटने के अपने हथियार भी खूब चलाते हैं, पर वर्षों से व्यवस्था को दीमक की तरह चाट रहे अधिकारियों ने अपना एक सिस्टम बना कर रखा है। हर अधिकारी किसी न किसी सत्ताधारी की गोद में बैठा है। ऐसे में साहब उम्मीदों के जाल में फंसे नजर आ रहे हैं।
साहब गांठ बांध लेते हैं
जनता से सीधे जुड़ाव वाले एक विभाग के साहब इन दिनों चर्चा में हैं। नब्ज टटोलते -टटोलते, कानूनी दांव-पेंच सीख कर आए साहब अपने ही मातहतों के बीच फूट डालो और राज करो की रणनीति अपनाए हुए हैं। साहब जिस पर मेहरवान हो गए वो ‘पहलवान’ हो जाता है और जिस पर नाराज हो गए उसका सब कुछ छीनकर ‘पैदल’ करने की हद तक चले जाते हैं। साहब के इसी रूप का शिकार उनके कुछ मातहत हुए हैं। अब इन मातहतों को यह समझ नहीं आ रहा कि साहब की नाराजगी की वजह क्या है लेकिन साहब के कोप भाजन बने मातहतों के बीच चर्चा आम है,कि साहब न जाने किस बात को गांठ बांध लें?
पार्टी को कहां ले जाएंगे 'फूफा जी'
कभी देश व प्रदेश की सत्ता की धुरी रही कांग्रेस आज सत्ता से बाहर चल रही है। इसकी सबसे बड़ी वजह है पार्टी के अंदर गुटबाजी और नेताओं के बीच आपसी खींचतान है, वर्षों पहले कांग्रेस को लगा यह रोग इन दिनों सत्तारूढ़ दल भाजपा के नेताओं में बखूबी नजर आ रहा है, जिले में सत्तारूढ़ नेताओं के बीच आपसी खींचतान जग जाहिर है। ऊपरी तौर पर देखने में पार्टी नेता जरूर एकजुट और साथ-साथ नजर आते हैं, ऊपर से सब कुछ ठीक-ठाक दिखता है, लेकिन जैसा दिख रहा है वैसा है नहीं। जैसे किसी बारात में ‘फूफा’ मौजूद तो रहते हैं पर नाराज और बारात से कटे-कटे कुछ वैसे ही हाल पार्टी नेताओं के हैं। हर नेता अपनी ढपली- अपना राग अलाप रहा है। जिससे पार्टी कार्यकर्ता भी भ्रमित हैं कि वे किस नेता के साथ खड़े नजर आएं? दरअसल कार्यकर्ता इस असमंजस में है कि जैसे लौटी बारात के बाद फूफा जी अपनी सेवा- सहाई से खुश हो जाते हैं, ठीक वैसे ही भले ही आज पार्टी में फूफा जी बने नेता इधर-उधर घूम रहे हैं, पर जैसे ही उन पर पार्टी के अनुशासन का चाबुक चलेगा वैसे ही वे सीधे रास्ते पर आ जाएंगे। जिले में अभी सत्तारूढ़ नेताओें के बीच जो आपसी खींचतान दिख रही है उससे पार्टी का निष्ठावान कार्यकर्ता सशंकित है कि आखिर पार्टी के फूफाजी भाजपा को ले कहां जाना चाहते हैं?
और मोटी हो गई विभाजन की रेखा
कहते हैं, नकल के लिए भी अकल की जरूरत होती है। कांग्रेस संगठन को मजबूत करने के लिए भाजपा की नकल तो करना चाह रही है, पर उसमें अपनी अकल जरा भी नहीं लगाना चाहती। संगठन की मजबूती के लिए पार्टी ने बीते दिनों संगठन सृजन अभियान चलाया, वैसे तो यह अभियान संगठन की मजबूती के लिए था, लेकिन जिस तरह से संगठन की कमान अपने हांथ में लेने के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं व नेताओं ने अपने- अपने दांव - पेंच चले उसने आपस में विभाजन की ऐसी रेखा खींच दी है जो अभी सामने तो नजर नहीं आ रही है, पर समय के साथ-साथ यह रेखा और मजबूत होती जाएगी। वैसे भी कभी समाजसेवा का एक माध्यम रही राजनीति आज पॉवर व स्टेटस सिम्बल बन गई है ऐसे में पार्टी के प्रति निष्ठा और समर्पण जैसे शब्द बेमानी नजर आने लगे हैं, अगर कुछ रह गया तो अपना और अपनों का विकास?