मध्य प्रदेश के सतना जिले के मझगवां और चित्रकूट वन परिक्षेत्र में 30 से अधिक बाघों की उपस्थिति दर्ज की गई है, लेकिन वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए ठोस कदम अब तक नाकाफी रहे हैं। इंटरनेशनल टाइगर डे पर बाघों के संरक्षण की सिर्फ बातें होती हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत डरावनी है — आए दिन बाघ हादसों का शिकार बन रहे हैं। क्या मझगवां को टाइगर रिज़र्व घोषित किया जाना चाहिए?
By: Yogesh Patel
Jul 29, 20259:12 PM
हाइलाइट्स
सतना, स्टार समाचार वेब
आज अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस है। आज एक बार पुन: वन विभाग व वन्य प्राणियों की हितैषी बताने वाली संस्थाएं बाघों की जंगल में मौजूदगी का महत्व बताने के साथ साथ उनके संरक्षण का संकल्प दोहराएंगी। ऐसा हर साल होता है लेकिन ‘ दिवस’ बीतने के साथ ही उन संकल्पों को भुला दिया जाता है। सतना जिले के मझगवां व चित्रक्ूट वन परिक्षेत्र मौजूदा समय पर बाघों की चहलकदमी से गुलजार हो रहा है, जहां 8 शावकों के साथ तकरीबन 28 बाघ चहलकदमी कर रहे हैं। बीते समय में कई बाघ मौत की नींद भी सो चुके हैं, बावजूद इसके उन इंतजामों को पुख्ता करने का कोई प्रयास नहीं हुआ जिससे बाघों के जीवन को बचाया जा सकता है। वन््य प्राणी विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक जमीनी स्तर पर टाइगर को संरक्षित करने के प्रयास नहीं होंगे तब तक ऐसे दिवसों’ का आयोजन अप्रासंबिक ही बना रहेगा।
पन्ना टाइगर रिजर्व-रानीपुर अभयारण्य का कारीडोर
सतना जिले का मझगवां वन परिक्षेत्र पन्ना टाइगर रिजर्व और उप्र स्थित रानीपुर अभयारण्य के बीच टाइगर मूवमेंट का कारीडोर है। चूंकि पन्ना टाइगर रिजर्व में मौजूदा समय पर 50 से अधिक बाघ हो गए हैं जो नए ठिकानों की खोज में पन्ना टाइगर रिजर्व के बाहर आ जाते हैं और वाया बरौंधा, चितहरा होकर सरभंगा जंगल से सटे रानीपुर वन्य प्राणी अभयारण्य की सीमा में प्रवेश कर जाते हैं। इस बीच सड़क व रेलमार्ग को भी बाघों को पार करना पड़ता है जहां वे हादसों का शिकार बनकर दम तोड़ देते हैं। वर्ष 2016 में चितहरा स्टेशन के निकट एक बाघ कटने की घटना अभी भी लोगों के जेहन में कैद है। इस ट्रैक पर एक साल में ही अलग-अलग 10वन्य प्राणियों की मौत हा ेचुकी है। बीते दिनों भी एक बाघ ट्रैक पर मिला था जिसे मुकुंदपुर सफारी ले जाया गया था।
सरभंगा प्रदेश का इकलौता खुला जंगल
सतना जिले में 28 बाघों व 8 शावकों की उपस्थिति विभाग ने दर्ज की है। सरभंगा का जंगल मध्य प्रदेश का एकमात्र खुला जंगल माना जाता है। यहां बड़ी संख्या में बाघ निवास करते हैं। फिलहाल इस क्षेत्र में कुल 28 बाघों की उपस्थिति दर्ज की गई है। इनमें 25 नर बाघ और 3 मादा बाघिन शामिल हैं। इसे रिजर्व फारेस्ट बनाने की तैयारी जरूर चल रही है लेकिन इस वन में वन्य प्राणियों की सुरक्षा फिलहाल सिफर है।
आयोजन तो ठीक पर प्लान पर भी हो अमल
मप्र को टाइगर स्टेट का रूतबा हासिल है और यह यूं ही नहीं है बल्कि प्रदेश के विभन्न टाइगर रिजर्व में बढ़ते बाघ के कुनबे के कारण मिल रहा है। बेशक मझगवां-चित्रकूट वन परिक्षेत्र टाइगर रिजर्व नहीं बनाया जा रहा है लेकिन 30 से अधिक बाघों की मौजूदगी बताती है कि यह क्षेत्र भी टाइगर रिजर्व बनने का माद्दा रखता है। सबसे अहम बात यह है कि पहले इस क्षेत्र को केवल कारीडोर माना जाता था लेकिन अब टाइगर्स को इस वन परिक्षेत्र की आबोहवा रास आने लगी है और वे रानीपुर अभयारण्य की ओर जाने के बजाय सरभंगा क्षेत्र के जंगलों को ही अपना ठीहा बना रहे हैं। ऐसे में आवश्यक है कि बाघों के संरक्षण की ठोस रणनीति बने और उन सुरक्षा उपायों पर संजीदगी से अमल हो जो वन्य प्राणियों की सुरक्षा के लिए पूर्व में तय हो चुके हैं। ऐसे में रेलवे, वन विभाग और जिला प्रशासन मिलकर इस गंभीर समस्या का स्थायी समाधान निकाले और वन्यजीव संरक्षण को प्राथमिकता में शामिल करें, अन्यथा इंटरनेशनल -डे जैसे आयोजन केवल आयोजन ही बनकर रह जाएंगे, इनका कोई प्रयोजन नहीं निकलेगा।
पूर्व के निर्णय जो नहीं चढ़े परवान