सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक एतिहासिक फैसले में कहा कि आईपीसी की धारा 195 ए के तहत गवाह को धमकाने का अपराध संज्ञेय है, जिसके तहत पुलिस बिना अदालत की शिकायत की प्रतीक्षा किए सीधे एफआईआर दर्ज कर सकती है और जांच शुरू कर सकती है।
By: Arvind Mishra
Oct 28, 20252:13 PM
धमकाने वाले अपराध पर सुप्रीम कोर्ट सख्त
केरल हाईकोर्ट का फैसला किया खारिज
नई दिल्ली। स्टार समाचार वेब
सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक एतिहासिक फैसले में कहा कि आईपीसी की धारा 195 ए के तहत गवाह को धमकाने का अपराध संज्ञेय है, जिसके तहत पुलिस बिना अदालत की शिकायत की प्रतीक्षा किए सीधे एफआईआर दर्ज कर सकती है और जांच शुरू कर सकती है। जस्टिस संजय कुमार की अगुवाई वाली बेंच ने केरल हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि धारा 195अ के तहत गवाह को धमकाने के अपराध के लिए पुलिस एफआईआर दर्ज नहीं कर सकती और ऐसे अपराधों की सुनवाई केवल संबंधित अदालत द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 195 और 340 के तहत लिखित शिकायत के माध्यम से ही की जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दिए फैसले में हाई कोर्ट के इस नजरिये से असहमति जताते हुए कहा कि धारा 195 ए आईपीसी को जानबूझकर एक अलग और विशिष्ट अपराध के रूप में तैयार किया गया है, जिसका प्रक्रिया और रास्ता अलग है। यह अपराध संज्ञेय श्रेणी में आता है, और इसलिए पुलिस को सीधे गवाह के बयान के आधार पर एफआईआर दर्ज करने का अधिकार है।
अदालत ने फैसले में कहा कि किसी धमकाए गए गवाह से पहले अदालत में जाकर शिकायत दर्ज कराने की अपेक्षा करना प्रैक्टिकल नहीं लगता है। अगर उस व्यक्ति को संबंधित अदालत के समक्ष जाकर धमकी की सूचना देनी पड़े और इसके लिए धारा 195(1) सीआरपीसी के तहत शिकायत तथा धारा 340 सीआरपीसी के तहत जांच की जरूात हो, तो यह प्रक्रिया केवल न्यायिक प्रक्रिया को पंगु बना देगी। अदालत ने पुलिस की शक्ति को याद दिलाते हुए कहा कि धारा 195ए आईपीसी के तहत अपराध संज्ञेय है, और जब ऐसा है, तो सीआरपीसी की धारा 154 और 156 के तहत पुलिस की कार्रवाई करने की शक्ति पर कोई संदेह नहीं किया जा सकता।